Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 605
________________ संख्या ६] . मनी . मुन्नी. रही थी। उसने मुन्नी को सामने छोड़ दिया। वह उसी उसमें मैं अमरत्व पा सकता हूँ-अपने अधिकार की कौनकी ओर देखती रही। सी बात–हम गरीबों में भी शक्ति है। कल सीता वहाँ ___फिर वह नदी की दौड़ती हुई लहरों को देखने लगा, नहीं रहेगा । वह प्रसन्न था। मैंने एक अाह ली । मुन्नी जैसे वह कोई कवि हो। वह कहने लगा- खूब दौड़ ने इधर देखा । मुझसे आँखें चार हुई। वह इधर ही बढ़ी। लो लहरो। तुम भी तनिक भी रुकतीं तो सीता की मा ऊपर मैं भी बढ़ा। वह उसे पकड़ने के लिए बढ़ा, किन्तु मुझे श्रा जाती । एक पर एक तुम अाती ही रहती हो। वह बढ़ते हुए देखकर उसने कहा---यह आपकी बिल्ली है बेगार में गई थी। तुम लोगों ने कैसे उसे पा लिया ? यह रमा बाबू ? भी एक रहस्य ही है। यही वह जगह है बिल्ली ! तुम खूब मैंने कहा-हाँ। आई । बिल्ली, मैं अब समझा। यह जीवन एक संग्राम है। जीवन का गान लेखक, कुँवर सामोश्वर सिंह, बी० ए०, एल-एल० बी० "दो दिन का यह वैभव है दो दिन की यह लाली है" गाती मेरे जीवन की गाथा यह मतवाली है। . कलियों पर जाकर प्रतिदिन मधुकर मत मँडराया कर हो मस्त देख मेघों को तू मोर न इतराया कर। पागल-सी चपल तरङ्गो, नाचो मत उछल उछल कर है चाँद तुम्हें ललचाता नाहक ही निकल निकल कर । . जल जल पतङ्ग दीपक पर फूले मत फूल वृथा ही हसरत न मिटा दे अपनी अपने इस लघु जीवन पर सपनों के पीछे प्रणयी संसार चकित है सारा रातें न बिता दे अपनी । इस अनुपम भोलेपन पर। - "दो दिन का यह वैभव है दो दिन की यह लाली है" "दो दिन का यह वैभव है दो दिन की यह लाली है" ' गाती मेरे जीवन की गाथा यह मतवाली है। गाती मेरे जीवन की गाथा यह मंतवाली है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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