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संख्या ६]
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नई पुस्तकें
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५-सौंदरनन्द-महाकाव्य-लेखक, अध्यापक राम- की सी नहीं जान पड़ती। अनुवादक महोदय ने सम्भवतः दीन पाण्डेय एम० ए०, बी० एड ० राँची कालेज (बिहार) इसे अपनी ओर से जोड़ दिया है, जो उचित नहीं है।
और प्रकाशक गङ्गा-पुस्तकमाला-कार्यालय, लखनऊ हैं। अश्वघोष को टक्कर के महाकवियों की रचनाओं को मूल्य सादी पुस्तक का ।।) अाठ पाने और सजिल्द का वास्तविक रूप में ही प्रकाशित करना साहित्य के लिए १) एक रुपया है।
हितकर है। अपनी मौलिक प्रतिभा की आभा तो स्वतन्त्र ___ यह पुस्तक महाकवि अश्वघोष के इसी नाम के संस्कृत ग्रन्थ लिखकर भी दिखलाई जा सकती है। काव्य का सारांश है। मूल पुस्तक संस्कृत के श्लोकों में
ठाकुरदत्त मिश्र है और अनुवाद हिन्दी-गद्य में किया गया है। इस काव्य के नायक सुन्दर जिनका दूसरा नाम नन्द भी था, बौद्ध- ६-११-'गीता-प्रेस', गोरखपुर की ६ पुस्तकें धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के छोटे भाई थे। बुद्ध जैसे किसी भी प्राणी या पदार्थ की उन्नति या प्रचार त्यागशील तथा विषय-वासना से परे थे, सुन्दर वैसे ही उद्योग से तो होते ही हैं, परन्तु साथ में भाग्य का प्राबल्य भोग-निरत । क्षण भर के लिए भी अपनी परम सुन्दरी और ईश्वर की सदिच्छा का सहारा भी काम करता है। पत्नी का वियोग उन्हें सह्य नहीं था। अन्त में बुद्ध के इस समय के साहित्यिक साधनों में उक्त काम के लिए सिद्धान्तों ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया और वे प्रबल प्रयत्न किये जाते हैं, किन्तु उन्नति या प्रचार में सांसारिक सुखों से सर्वथा विरक्त हो गये।
उपर्युक्त सहारा न हो तो सौ में दो सफल होते हैं। सौन्दरनन्द महाकाव्य अठारह सर्गों में समाप्त हुअा गीता-प्रेस' से प्रकाशित होनेवाले साहित्य की दिनोंदिन है। इसके द्वारा जहाँ हमें बहुत-सी ऐतिहासिक बातों की उन्नति होने में भी मैं तो उसी सहारे को मुख्य मानता हूँ। जानकारी प्राप्त होती है, वहीं काव्य का भी आनन्द कहा जा सकता है कि साहित्यिक सामग्री का वे लोग प्राप्त होता है। बौद्ध-धर्म के सिद्धान्तों का तो इसे सुचारु चुनाव करते हैं, परन्तु वह भी तो उसी हृद्गत ख़ज़ाना ही समझना चाहिए। इस पुस्तक में मनोवैज्ञानिक ईश्वर का ही प्रकाश है। अस्तु । 'गीता-प्रेस' की छः अध्ययन की यथेष्ट सामग्री है। बहुत ही नयनाभिराम तथा पुस्तकों मेंशरीर को सुसजित करनेवाले अनेक तरह के अंगरागों तथा (१) वर्तमान शिक्षा के लेखक हनूमानप्रसाद वस्त्राभरण से सुसज्जित प्राणाधिक प्रिया पत्नी से ज़रा देर जी पोद्दार हैं । इसमें आधुनिक शिक्षा प्रणाली के गँदले या के लिए अवकाश लेकर नन्द का गुरु की पूजा के लिए शुद्धतम पानी का बहाव कैसा और किस रुख का है, उसका जाना, लौटने में विलम्ब होने के कारण मन ही मन दुःखी सल्यस्वरूप स्पष्ट शब्दों में प्रकट किया है। वर्तमान शिक्षा होना तथा बौद्ध-धर्म की दीक्षा ग्रहण करना और अन्त में से वर्तमान के बालक-बालिका या बड़े विद्यार्थी किस प्रेमाभिनय के तरह तरह के अप्रिय दृश्य देखकर सांसारिक सीमा तक अपने पुरुषाओं के आचार-विचार, चरित्र-रक्षा,
होना श्रादि किसी भी मनोविज्ञान के देश-प्रेम या आत्मज्ञान आदि का स्मरण रखते या बिगडतेविद्यार्थी के लिए बहुत रोचक प्रमाणित होंगे। सुधरते हैं आदि का संक्षेप में भी अच्छा दिग्दर्शन करा ___अनुवादक महोदय ने काव्य को संक्षिप्त कर दिया दिया है । इस अमूल्य शिक्षाप्रद ५० पृष्ठ की पुस्तिका का है। इससे अश्वघोष जैसे जगत्प्रसिद्ध कवि की रचना का मूल्य ) है। सौन्दर्य कहाँ तक सुरक्षित रह सका है, यह विचारणीय है। (२) शतपञ्च चौपाई-तुलसी-कृत रामायण के हाँ, कथा का सन्दर्भ अवश्य नहीं टूटने पाया । भाषा भी उत्तरकाण्ड में जो (११४ दोहा से १६ दोहों के अन्तर्गत सुन्दर है। किन्तु अनुवादक महोदय ने कदाचित् कहीं आई हुई हैं) १०५ चौपाइयाँ हैं और उनमें रामचरितमानस कहीं महाकवि की शब्दावली को बदल दिया है। यथा- के सम्पूर्ण विषयों का सारभूत अंश भलीभाँति भरा है ये वृक्ष 'अरेबियन नाइट' के भूगर्भस्थित उद्यान के वृक्षों उनके अमृतोपम श्राशय को 'भावप्रकाशिनी' टीका में को भी मात कर रहे थे । (पृ० ५०) यह उक्ति अश्वघोष प्रकाशित किया है । हर एक चौपाई के प्रत्येक शब्द का
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