Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 620
________________ ( ६०४ ) . प्रतियोगियों की बातें कुछ नई शङ्कायें नीच नहीं होता। हाँ, अधिकांश नीच वृत्ति धारण कर १-बली क्यों, छलो क्यों नहीं ? लेती हैं। पर इससे यह नहीं कह सकते कि इनका उद्देश श्रीयुत सम्पादक जी। ही नीच है। संकेत में जो 'ही' शब्द रक्खा हुआ है वह मार्च १९३७ की वर्ग-पहेली में बायें से दाहने नं० साफ़ बतलाता है कि उसका नीच उद्देश के सिवा उच्च -६ में बली एव छली दो शब्द बनते हैं। इसका संकेत उद्देश हो ही नहीं सकता। कई वेश्यायें अपना उद्देश 'कृष्ण को बहुतेरे ऐसा समझते हैं', यह दिया गया है। उच्च कोटि का रखती हैं तथा प्रत्येक मनुष्य पर उनकी अब हमें इस पर विचार करना है। इज्ज़त का प्रभाव पड़ता है। ऐसी अवस्था में पातर हो कोई भी बलयुक्त शरीरी बली हो सकता है, न कि ही नहीं सकता। कृष्ण ही । साथ ही संस्कृत-काव्य-साहित्य में बली शब्द अब 'पामर' को लीजिए। पामर का पर्यायवाची कृष्ण के लिए प्रयुक्त नहीं किया गया है । इसके विपरीत शब्द 'नीच' होता है। नीच वही मनुष्य कहलाता है हिन्दी ही नहीं, संस्कृत-काव्य-साहित्य में भी कृष्ण को जो हमेशा ही नीच कार्य करता रहता और नीच बातें छलिया-छली कहकर अधिकांश में सम्बोधित किया गया है। ही सोचा करता है। नीच का उद्देश ही नीच होता है। फिर "कृष्ण को बहुतेरे ऐसा समझते हैं", इसके लिए यदि किसी मनुष्य का उद्देश नीच न हो तो वह नीच कभी बली शब्द प्रयुक्त करना संयोजक पहेली की नई सूझ है। नहीं कहा जा सकता । इसलिए इसका उद्देश ही नीच है', -रमेशचन्द्र शर्मा देहली इस संकेत में 'पामर' ही ठीक जमता है, 'पातर' नहीं। २-स्त्रीलिङ्ग या पुंल्लिङ्ग हरकिशनलाल अग्रवाल, हेड मास्टर, पचमढ़ी। श्रीमान् सम्पादक जी, वर्ग नं० ९ के 'अटकन' शब्द को लीजिए । बाबू पामर' और 'पातर के कर्तव्यों और उद्देशों पर भी रामचन्द्र वर्मा जी उसे पुँल्लिङ्ग बनाये बैठे हैं, किन्तु संकेत विचार कर लेना चाहिए। 'पामर' अर्थात् नीच कैसा भी में है, "यदि बड़ी हुई तो कोई कोई बच्चा रो उठता है ।" कर्तव्य करे, उसका उद्देश सदा ही नीच रहेगा। पातर अब आप ही कहें. प्रतियोगीगण क्या करे ? या तो वे अर्थात वेश्या का कर्तव्य या कर्म अवश्य नीच होता है। कोश के सम्पादक को ग़लत करार दे या बंगनिमाता की परन्तु इसका उद्देश तो नहीं। वह किसी को धोखे में डाल भूल मान कर हानि उठाये ? अतः आपसे मेरी प्रार्थना कर हानि नहीं पहुँचती। है कि श्राप इस पत्र को अपनी सम्मानिता पत्रिका में स्थान के साथ ही शहा आपचलित तथा किसी देकर अन्य प्रतियोगियों को सम्मात लेकर निणय कर कोश में न मिलनेवाले शब्दों की है। ज्ञात होता है, शङ्का डालिए कि उपर्युक्त दोनों महोदयों में कौन सही है और करनेवाली महोदया ने प्रतियोगिता की नियमावली जो कौन गलत ? प्रतिमास प्रकाशित होती है, पढ़ने का कष्टं नहीं उठाया, सो० के० डी० तिवारी, बी० ए० था० रुधौली, बस्ती अन्यथा कोश का नाम और शब्दों का अर्थ न पूछतीं। नोट-बाशा है, प्रतियोगीगण इनका भी उत्तर देंगे। आपको नियम नं०८ में दिये गये कोशों में ये सब शब्द पिरलो शङ्काओं के उत्तर मिल जायेंगे। -कैलाशचन्द्र सेठ 'पातर' नहीं, 'पामर' ही ठीक था। 'पातर' का उद्देश बाग मुजफ्फर खाँ अागरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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