Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 616
________________ ६०० सरस्वती असली भाव हृद्गत कराने के लिए अनेक जगह के सुगन्धयुक्त सुमन-स्वरूप वाक्यों का अच्छा समावेश हुआ है। ज्ञान के प्यासे और रामचरित के भूखे भक्तों के लिए यह पुस्तक अवश्य ही हृदयंगम करने योग्य है । इसमें 'शतपञ्च चौपाई' शब्द के जुदे जुदे अर्थ और शंका-समाधान भी सब हैं । पृष्ठ ३।। सौ और मूल्य || ) है | (३) भक्तियोग - इसमें नौ प्रकार की भक्ति के सभी अंग उपांगों का ज्ञान और विज्ञान दोनों दृष्टियों से विचार किया है और उन सबकी सोपपत्तिक व्याख्या की है। भक्ति-सम्बन्धी सम्पूर्ण विषयों का भलीभाँति ज्ञान कराने में यह पुस्तक एक विशेषज्ञ वक्ता का काम देती है । इसमें भक्त स्त्री हो या पुरुष दोनों के जानने के ७६ विषय हैं, जिनमें उनके मनन करने की सब बातें आ गई हैं । पुस्तक बहुत बड़ी (७ सौ पृष्ठ की) होने पर भी मूल्य १= ) (४) माण्डूक्योपनिषद् - – यह अथर्ववेदीय ब्राह्मण भाग के अन्तर्गत है । इस पर गौड़पादाचार्य की कारिका, भगवान् शंकर का भाष्य, मंत्रों का अर्थ और हिन्दी अनुवाद सामने है। वेदों के वैज्ञानिक अंशों का गूढ़तम श्राशय समझने के सरल साध्य साधनों में उपनिषद् और पुराण उत्तरोत्तर सरल हैं । त्रिकालदर्शी तत्त्वज्ञ महर्षियों ने संसार की भलाई के लिए इनमें सर्वहितकारी विषय अच्छी तरह भर दिये हैं । उपनिषदों की सम्पूर्ण संख्या सौ से अधिक है, उनमें अधिकांश उपनिषद् तो अकेले विज्ञान के ही भण्डार हैं । उनके सिवा ३२ प्रसिद्ध और १० अप्रसिद्ध हैं । 'माण्डुक्योपनिषद्' उन्हीं में एक है । इसमें (१) श्रागम, (२) वैतथ्य, (३) अद्वैत और (४) लात शान्ति के प्रकरणों में श्रात्मतत्त्व सृष्टिक्रम पदार्थ-ज्ञान, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ सत्यत्वप्रतिपादन - जाग्रत आदि के भेदभाव और श्रात्मज्ञान के विविध उपाय आदि १४२ विषयों का समावेश हुआ है । लोकोत्तर ज्ञान की वृद्धि के लिए उपनिषद् ही सर्वोत्कृष्ट साधन हैं । इसका मूल्य १) और पृष्ठ ३ सौ हैं । (५) तैत्तिरीयोपनिषद् - — यह कृष्ण यजुर्वेदीय है । इसमें (१) शिक्षा, (२) ब्रह्मानन्द और (३) भृगु नाम की ३ वल्लियाँ हैं, जिनमें ओंकार आदि की उपासना हृदयाकाश आदि के वर्णन - अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनन्दमय कोशों आदि के विज्ञान पूर्ण विवेचन - इन सबका ब्रह्मत्व प्रतिपादन — और गृहागत अतिथि आदि के सेवाधर्म आदि ३८ विषयों का विशद वर्णन या विवेचन है । उनमें एक एक में भी ज्ञातव्य विषयों का श्रानन्दपूर्ण समावेश हुआ है । श्रात्मज्ञान के लिए यह एक प्रकार का महाप्रकाश है। पृ४ २५० और मूल्य ||| ) है । (६) "ऐतरेयोपनिषद्” – यह ऋग्वेदीय है । इसमें तीन अध्यायों के यथाक्रम ३ और १-१ खण्ड ३० विषय वर्णित हुए हैं । उनमें मुख्यतया सृष्टिक्रम, देव, मानव, मन और अनादि की उत्पत्ति या उनकी रचना का विचार, जन्मजन्मान्तर के विवेचन और प्रज्ञान तथा श्रात्मज्ञान आदि के कथनोपकथन हैं । पृष्ठ १०० और मूल्य 17). है । इस सम्बन्ध में मेरे जैसे अल्पज्ञ का यह निवेदन निरर्थक न हो तो मेरी सम्मति में आधुनिक मनुष्यों के यथेच्छ फललाभ में उत्तेजनापूर्ण उष्णतम उपायों की अपेक्षा वेदसम्मत ( या वेदार्थबोधक) उपनिषदों में बतलाये हुए विविधोपायों में से जितने भी रुचि के अनुकूल हों और बन सकें, उनका अनुभव, अभ्यास या अनुशीलन करने के लिए उपनिषदों का अवलोकन करना ही कल्याणकारी है । - हनुमान शर्मा, चौमू www.umaragyanbhandar.com

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