Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 576
________________ एज्युकेशन कोर्ट लेखक, पंडित राजनाथ पाण्डेय, एम० ए० । i 5 SAMRAT डे दिन" में जब कि लखनऊ प्रदSTAL शनी के दर्शकों के बीच “एज्युPR केशन कोर्ट" की धूम थी, एक दिन रूमी दरवाजे से घुसते ही बाई ओर के विशाल “साँची-द्वार" के नीचे एक अमेरिकन पर्यटक को मन्त्रमुग्ध-सा खड़ा उक्त द्वार का अवलोकन करते देखा। लखनऊ आने के पहले वे साँची हो पाये थे। उनका कहना था कि साँची-स्थित असली द्वार से भी यह द्वार [ एज्युकेशन कोर्ट में गवर्नर का आगमन । ] (बाई अोर से-मेजर ब्रेट, कोर्ट का एक गाइड, कई बातों में अधिक स्पष्ट और प्रभावोत्पादक है। वे अभी तक साँची-द्वार तक ही अटक रहे थे। अशोक की लाट । पं० श्रीनारायण चतुर्वेदी, हिज़ ऐक्सलैन्सी सर हेरी हेग, का ज़िक्र करने पर वे उसे भी देखने गये और उसी श्रीयुत आर० टी० शिवदसानी, एक दर्शक ।) अन्वेषक दृष्टि से देखने लगे। उन्होंने उस पर की प्रति. अशोक की धार्मिक सेना धर्म-विजय के बाद साँची-स्तूप लिपि की नकल की । बोले-प्रयाग जाकर मिलान करूँगा। की परिक्रमा करने पा रही हो। प्राचीन वातावरण में केवल एज्युकेशन कोर्ट के बाह्य वातावरण में ही वे ऐसे वर्तमान समय की सूक्ष्म से सूक्ष्म देश-विदेश की शिक्षाविभोर हो गये थे कि उनकी सहधर्मिणी इस बीच नुमाइश प्रगति को रखकर दर्शकों के लिए तुलनात्मक दृष्टि से थोड़े ही के न जाने अन्य किस स्थल की ओर चली गई थीं इसका समय में अनेकानेक विषयों का अवलोकन और मनन उन्हें पता ही नहीं था। बाकी चीज़ों के लिए बोले-फिर करने का अवसर उपस्थित कर देना वैज्ञानिक सूझ थी। आकर देखूगा। वास्तव में इस प्रकार का विस्मरण था भी कोर्ट के भीतर लगभग ३५० फीट लम्बी, ३० फीट स्वाभाविक । एज्युकेशन कोर्ट का बहिरङ्ग इतना कला- चौड़ी जगह में प्रायः दो फर्लाङ्ग लम्बी मेज़ों पर नाना पूर्ण और अतीत को पुनर्जीवित कर सामने रखनेवाला प्रकार की असंख्य चीज़ों का संग्रह किया गया था । जगह था कि पारखी ही नहीं साधारण आँखोंवाला व्यक्ति भी अपर्याप्त और संगृहीत सामग्री प्रचुर थी जिससे सारी जगह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। शाम को एक ठोस चीज़ मालूम पड़ती थी। प्रत्येक वस्तु सुरुचि हुसेनाबाद हाई स्कूल के लड़के बैंड बजाते धीरे-धीरे साँची- पूर्वक समुचित श्रेणी में सजाई गई थी। संयोजक ने इतने द्वार के नीचे से गुज़रते एज्युकेशन कोर्ट में प्रवेश कर थोड़े समय में ही अनेक प्रदेशों और संस्थानों की सामग्रं रहे थे । उस समय ऐसा जान पड़ता था जैसे सदियों पूर्व एकत्रित कर ली थी। Sersittinarmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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