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सरस्वती
[ भाग ३८
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को वस्तु-निर्माण कला के उत्तरोत्तर विकास का दिग्दर्शन होता था। वहाँ 'माता-शिशु तथा 'कृषक देा अत्यन्त भव्य चित्र प्रदर्शित थे। शिक्षा के ऊपर पहले और अब का व्यय किया गया गबन मेंट का धन तथा स्कूलों की संख्या की उत्तरोत्तर वृद्धि चाटी द्वारा दिखाई गई थी। द्वार से प्रवेश कर दर्शक पहले अाट गैलरी में पहुँचता था। वहाँ
शकवये इतवाल'' के अन्य देशों के विद्यार्थियों के काम का प्रदर्शन।
कुछ अंश चित्रों में (उसके नीचे युक्त प्रांत के विद्यार्थियों के बनाये हुए कपड़े का संग्रह है।)
प्रदर्शित किये गये थे।
"मई हैरत हूँ कि दुनिया तथा लड़कियां अपने स्कूलों की चीजें बड़े चाव से देखने क्या से क्या हो जायेगी" तो खूब ही बन पड़ा था। इस
श्राती थीं। उनके साथ उनके अभिभावकों का भी प्राना कार में अपने प्रान्त के स्कूलों तथा कालेजों के विद्यार्थियों होता था। पर हम जैसा पहले कह चुके हैं, एज्युकेशन और शिक्षकों की बनाई हुई कुछ तसवीर और चित्रकारियाँ कोर्ट बालक, युवा और वृद्ध सभी के लिए एकसा मनोरंजक और ज्ञानपूर्ण था। अवलोकन
और मनन के लिए यहाँ प्रचुर परिमाण में सामग्री मौजूद थी।
BE दर्शक साँचीद्वार से होकर, अशोक की लाट देखता. एज्युकेशन कोट के द्वार पर प्राता था। द्वार पर ही उसे प्राचीन तथा नवीन की तुलनास्मक झाँकी मिलती थी। दीवाल पर के एक विशाल 'चाट से भारत
[युक्तप्रांत के नार्मलस्कूलों का काम ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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