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.. सरस्वती
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[भाग ३८
निःश्वास छोड़कर प्रारम्भ किया-"कभी तो दो दो चार "पहाड़ पर ?” बुढ़िया बीच में ही बोल उठी- “यह चार घंटे इसी भांति मुस्कराता रहता है, फिर सहसा पीड़ा असम्भव है !" से कराहने लगता है।"
"कुछ असम्भव नहीं।" जगतराम ने उसे रोक कर ___"कहाँ पीड़ा होती है ?"
ज़रा उत्तेजित स्वर में कहा- "मैं एक दो दिन में ही इसका "पेट में।"
प्रबन्ध कर दूंगा।" जिनके चारों ओर चिन्ता मँडरा रही थी ऐसे चार “तुम प्रबन्ध कर दोगे !” बुढ़िया चारपाई से उठ कर उत्सुक नेत्रों के निरीक्षण में मैंने परीक्षा प्रारम्भ कर दो। आँगन में टहलने लगी-"कब तक प्रबन्ध किये जानोगे ? दस ही मिनिट में मैने रोग ढूँढ लिया। उसे अंतड़ियों का अपने बच्चों का पेट काट कर कब तक अपने गाढ़े पसीने तपेदिक था और था भी काफी पुराना ।
की कमाई इधर बहाये जानोगे ? नहीं। कुछ भी हो अब "क्यों जी ?" धड़कते हुए दिल से जगतराम ने मुझसे इस अन्याय को रोकना ही होगा।" अँगरेज़ी में पूछा
"न्याय और अन्याय उचित और अनचित मैं तो ___ "मैं समझता हूँ इसे टी० बी० है।" मैंने भी अँगरेज़ी अाज तक इनके भेद को समझ नहीं पाया हूँ।" जगतराम में जवाब दिया। मेरा ख़याल था कि जादू के नेत्रोंवाली ने प्रारम्भ किया। वह बुढ़िया कुछ भी न समझ पायेगी, पर टी० बी० हमारी इतने में रोगी के कमरे से एक क्षीण आवाज़ आई
घरेलू बातचीत में इस आसानी से घुस चुका है कि उसे "अम्मा।" इसे सुनते ही बुढ़िया अन्दर भाग गई, पर , तो आज-कल अपढ़ भी समझ लेते हैं।
जगतराम कहता चला गया-“डाक्टर साहब जीवन की ... "टी० बी० !" बुढ़िया सहसा चिल्ला उठी। उसका नीरसता और कटुता ने मेरे हृदय को इतना मसला है हृदय वस्त्रों के बंधन तोड़कर धड़कता हुअा साफ़ दीखने कि कोमलता और मधुरता के दो-एक बिन्दुओं को छोड़ लगा । उसके करुणाजनक नेत्रों में आँसू छलकने कर वह इस समय पत्थर से भी कठोर हो चुका है और लगे-"तो यह अन्तिम किरण भी अब अस्त होने जा उन बिन्दुओं को वहाँ अंकित करनेवाली थी एक स्वर्गीय रही है।"
अप्सरा जो मेरी राह में पवन के झोंके की भाँति आई वह कराहती हुई कमरे से बाहर निकल गई और और चली गई। अाज जीवन की घड़ियाँ केवल उसी बाहर पड़ी चारपाई पर दोनों हाथों से मुँह ढाँप कर बैठ गई। की स्मृति के बल पर बिता रहा हूँ। यह रुग्ण बालक . मुझे अपनी भूल पर पछतावा तो बहुत हुअा, पर उसी देवी का स्मृति-चिह्न है। क्या इसकी देख-भाल श्राश्वासन देने के सिवा कर ही क्या सकता था। मैं करना मेरे लिए उचित नहीं ? आप ही बतायें इसमें कौनकमरे से बाहर निकल कर उसके पास जा पहुंचा। सा अन्याय है।"
"परन्तु घबराने की कोई बात नहीं ।” मैंने कहना यह कह कर वह सहसा रुक गया। उसने अाधा क्षण श्रारम्भ किया--"यदि ठीक राह पर चला जाय तो मुझे मेरी ओर देखा और बोला-"क्षमा कीजिएगा। जिह्वा लड़के के स्वस्थ होने की पूरी आशा है।"
की उतावली के कारण मैंने अपनी रामकहानी से यों ही ___"सचमुच ?" चेहरे पर पड़े हुए हाथों के पदों को श्रापका अमूल्य समय नष्ट कर दिया। हाँ, पहाड़ के अतिअपने नेत्रों से हटाकर अविश्वास-भरी दृष्टि से देखते हुए रिक्त और हमें क्या करना होगा ?" बुढ़िया बोली।
___ "मैं कुछ दवाइयाँ लिखे देता हूँ। उनका इसे निरन्तर "तो बतलाइए राह।" जगतराम जो अब तक बाहर सेवन करात्रो।" श्रा चुका था, बोला- "क्या बहुत कठिन है ?"
"बस ?" ___"कठिन तो नहीं पर महँगा बहुत है। पहले तो "और यदि हो सके तो एक अच्छी-सी नर्स भी ठीक जितनी जल्दी हो सके, रोगी को किसी पहाड़ पर ले जाना कर लो।" . होगा।"
"सब कुछ करूँगा और तब तक किये जाऊँगा जब
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