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एक भारतीय सैनिक की साहस-पूर्ण कहानी
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विक्टोरिया क्रास
लेखक, श्रीयुत बेनीप्रसाद शुक्ल REEREYMल्ली से दस कोस दक्षिण यमुना के की ओर दौड़ी। भेड़ों की गोल में सिंहनी की तरह कलाPDATA किनारे किशनपुर नाम का एक छोटा- वती के आते ही बेचारी कंकड़ को गोटों को कलावती की F
सा गाँव है । जाटों की बस्ती है। दया पर छोड़कर सब लड़के चबूतरे से कूदकर गली में 9
मकान सब कच्चे हैं । गाँव के बीच खड़े हो गये। कलावती ने लात मारकर गोटों को नीचे MAASER में केवल सूबेदार घनश्यामसिंह के गिरा दिया, और हाँफती हुई गरज कर बोली- "ख़बरदार!
17 घर में पत्थर के खम्भे लगे हैं, और जो मेरे दरवाज़े पर कदम रक्खा । हाँ, कहे देतो हूँ । ' घर के आगे एक लम्बा-चौड़ा चबूतरा है जिसके किनारे "इतना नाराज़ क्यों होती है ? मेरी गोटें क्यों पर पत्थर जड़े हुए हैं। इन्हीं पत्थरों पर गाँव के कुछ फेंक दी ? गालियाँ क्यों देती है ?" लड़के इकट्ठे होकर चिकने पत्थर पर कंकड़ की गोटें बना- बाहर कलावती को ज़ोर से बोलते सुनकर कलावती कर खेल रहे थे । खेलनेनाले दो थे और दस-बारह लड़के की मा बाहर निकल आई और गरजकर बोली-"क्या घेर कर खेल देख रहे थे। सूर्यदेव अपनी तिरछी किरणों है री कलावती ?" से ऊँचे पेड़ों को सोने का मुकुट पहनाते और पके गेहूँ के "मा ! ये निकम्मे यहाँ जुश्रा खेलते हैं, झगड़ते हैं। खेतों पर सुनहरी चादर बिछाते अस्ताचल को जा रहे थे, मैंने अाकर मना किया तब यह चेता गाली देने लगा। लेकिन ये खिलाड़ी अपने काम में व्यस्त थे कि इनके खेल कहता है, कलावती के साथ ब्याह ......” इतना कहते में विघ्न पड़ गया। घर के भीतर से एक नवयुवती बाहर कहते कलावती का स्वर लज्जा से मध्यम पड़ गया और निकली और लड़के को देखकर द्वार पर खड़ी हो गई। वह माता की ओर देखने लगी। लड़की की आधी बात - लड़की का कद ऊँचा, रंग तपाये सोने की तरह सुनते ही माता की भौहें कमान की तरह तन गई। वह
और लम्बा मुख स्वास्थ्य की ललाई से दमक रहा था। आकर पत्थर पर खड़ी हो गई और दहाड़ कर बोलीकाले बालों का जूड़ा ऊँचा करके बाँध रक्खा था, जिससे "क्यों रे चेता! तेरी इतनी हिम्मत ! जानता नहीं वह और भी लम्बी मालूम होती थी। वह काली घाँधरी, कलावती सूबेदार की बेटी है। छोटे मुँह बड़ी बात कहता पीले रंग की अोढ़नी और पीले रंग की कमीज़ जिसमें हरे है। इसका बाप लाम पर गया है । नहीं तो तेरी ज़बान साटन के कफ लगे थे, पहने थी। पेट का जितना हिस्सा खींच लेता । जा, चला जा यहाँ से । बस ।”
ओढ़नी नहीं ढंक सकी थी, वहाँ जंजीरदार चाँदी के बटन शोरगुल सुनकर आस-पास के जाट स्त्री-पुरुष वहाँ दिखाई देते थे। नवयुवती के पैर का शब्द सुनकर सब एकत्र हो गये। चेतसिंह की माता भी अपने दरवाजे लड़के उधर देखने लगे। एक खिलाड़ी ने धीरे से पर खड़ी सब बातें सुन रही थी। लोगों ने चेतसिंह अपने साथी से कहा-"चेतसिंह ! उधर देख । कलावती को वहाँ से हटा दिया । चेतसिंह दुखी हृदय से घर आया। श्रागई।"
घर के द्वार पर क्रोध से भरी माता को खड़ी देखकर सन्न "मुझसे क्या कहता है ? भाई, मैं क्या करूँ?" हो गया। चेतसिंह को चुपचाप पत्थर की मूर्ति की तरह
नटखट लड़के ने हँसकर फिर कहा-“करना क्या निश्चल देखकर माता का क्रोध और भी बढ़ गया। लगी है ? कलावती से ब्याह कर ले।" इस बात पर सब लड़के चेतसिंह को डॉटनेठहाका मारकर हँस पड़े। लड़कों के हँसते ही कलावती "क्यों रे चेता ? तेरे लाज नहीं है। कुत्ते की तरह जो सब बातें सुन रही थी और क्रोध में भर रही थी, लड़को दुतकारा जाता है, लेकिन फिर वहीं जाता है। तेरे बाप से
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