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सरस्वती
[भाग ३८
बीले कीचड़ में डूबते हुए सूबेदार चेतसिंह को लिये एक नींद तब खुली जब तोपों की भीषण गरज उसकी गुफा माँद में प्रविष्ट हुए।
__ में भी आने लगी। वह तड़प कर उठकर बैठ गया । बीस क़दम जाने पर एक बड़ा गोल कमरा मिला। मोमबत्ती बुझ गई थी। भयानक अन्धकार और सन्नाटा यह भी पृथ्वी खोद कर बनाया गया था। दीवार से मिला था। बड़े बड़े चूहे उसके पैर से होकर दौड़ रहे थे और हुआ एक चबूतरा था, जिस पर सूखी घास पड़ी थी और पीठ पर चढ़ने का प्रयत्न करते थे । चेतसिंह वेग से उठ कतार की कतार कम्बल पड़े हुए थे जिन पर सिपाही पड़े से खड़ा हुआ । कम्बल फेंक दिया, साफा बांधा, और बन्दूक रहे थे। कुछ कम्बल ख़ाली भी थे। केवल एक मोमबत्ती उठाकर अँधेरे में टटोलता, दो-चार चूहों को कुचलता, अपनी क्षुद्र किरण से वहाँ के अभेद्य घने अन्धकार का भेद बाहर निकल आया। कर मनुष्य-जाति के कठोर क्रूर हिंसक कार्यों पर प्रकाश चेतसिंह ने बाहर आकर देखा। स्मशान को मात डाल रही थी। कुछ घायल सिपाही भी थे। मोमबत्ती करनेवाला दृश्य था। चेतसिंह समझ गया कि सरकारी के सामने बैठे जो तीन मनुष्य काम कर रहे थे वे सेना ने ट्रेंच छोड़ दिया है। बिजली की तरह उसके डाक्टर थे। सूबेदार घनश्यामसिंह चेतसिंह को डाक्टर मस्तिष्क में यह विचार आया कि उसने जान पर खेल कर , के सिपुर्द कर चलते बने। वे चेतसिंह से कहते गये कि जो समाचार जनरल राबर्ट को दिया था उसी से जनरल दो घंटे आराम करने के बाद तुमको अपनी नौकरी पर राबर्ट ने एक घंटे में मोर्चा छोड़ दिया है। गांठ भर हमारे पास बैटरी नं० १० पर हाज़िर होना है।
कीचड़ मझाता हुश्रा वह अपनी सेना के पद-चिह्नों पर ___ डाक्टर ने चेतसिंह को देखा। थकावट के कारण आगे बढ़ने लगा। भीषण सर्दी से उसके हाथ-पैर ठिठुरे वह खड़ा नहीं हो सकता था। भारतीय डाक्टर ने उसको जा रहे थे । बर्फ़ ने अन्धकार को चौगुना कर दिया था चाय इत्यादि देकर एक कम्बल पर सो जाने और दो लेकिन उसका ध्यान इधर नहीं था। उसका मन किसनपुर कम्बल ओढ़ने के लिए दिये और यह भी कह दिया कि की गलियों का चक्कर काट रहा था। "हाय भाग्य ! मेरे तुम ठीक दो घंटे में जगा लिये जानोगे | थकावट से ही काम से सेना ने घिर जाने से बचने के लिए ट्रेंच चेतसिंह की नस नस टूट रही थी। कम्बल ओढ़ते ही वह छोड़ी, और वही मुझे-केवल मुझी को यहाँ छोड़कर गहरी नींद में सो गया।
चली गई ! कलावती ! याद रखना । मैंने तेरे लिए गर्दन ___ सूबेदार घनश्याम को मोर्चे पर आते ही कप्तान हथेली पर रख दी, तो भी हवलदार ही रहा। इससे यह एटली का हुक्म मिला कि एक घंटे में तोपों के साथ पीछे न समझना कि मैं हवलदार ही रहूँगा। अभी लड़ाई बहुत हटना पड़ेगा। कप्तान एटली को जनरल राबर्ट के हुक्म दिन चलेगी। तुझ पर तिनके की तरह जान निछावर कर के मुताबिक पीछे नाला पार कर जनरल एलिस को सेना से दूंगा और सूबेदार ज़रूर बनूंगा।" मिल जाना है। रास्ते में शत्रु-सेना के छिपने की पूरी अपने विचारों में डूबा हुअा चेतसिंह ट्रेंच के बाहर
और सच्ची ख़बर मिल चुकी है, इससे लौटती हुई एडवान्स निकल आया और नाले की ओर बढ़ा । जनरल एलिस लाइन को युद्ध करते हुए शत्रु-सेना को साफ़ करते हुए का अनुमान सच निकला। जनरल राबर्ट का नाला पार जाना होगा। कुछ सेना पीछे छोड़ दी जायगी, जो बराबर करने में युद्ध करना पड़ा । जर्मनों की पांच रेजिमेंट नाले तोप चलाकर जनरल वान क्लक को धोखा देती रहेगी और में थीं। उन्होंने कप्तान एटली की सेना पर एक घंटे तक एक घंटे के बाद पीछे वह भी हटकर नाला पार कर प्रधान बड़ी भीषण आग बरसाई, लेकिन संगीनों से दुश्मनों को सेना से मिल जायगी । सूबेदार घनश्यामसिंह ने हुक्म पाते मारती हुई जनरल राबर्ट की सेना जनरल एलिस की ही १५ मिनट में ट्रेच का मोर्चा छोड़ दिया। उनको सेना से जाकर मिल गई । इस युद्ध में दो हज़ार जर्मनसिवा अपनी प्यारी कलदार तोपों के और किसी की भी लाशें मैदान में पड़ी रह गई, जिन्हें बर्फ़ ने समाधि दे दी। सुध नहीं रही।
जब जनरल वान क्लक को पता लगा कि हिन्दुस्तानी चेतसिंह थका होने से गहरी नींद सो गया था। उसकी सेना भारास की अोर हटकर बच गई। तब उन्होंने जल्दी ।
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