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सरस्वती
चारु० -- परन्तु श्रापका विनोद भी तो उतना ही शिक्षित है । आप ही कहिए कि यूनीवर्सिटी की सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त युवक के लिए आप कैसी जीवन संगिनी ढूँढ़ना चाहते हैं ।
श्रानन्द० – तुम नौजवानों में अभी समझ की गहराई नहीं है। मैं भी पढ़ा लिखा हूँ, मैंने भी दुनिया देखी है । मैं तुमसे पूछता हूँ कि मान लो (एक तसवीर उठाकर ), यह लड़की बी० ए० पास है । देखते हो इसकी सूरत ? आँखों पर चश्मा चढ़ा है और शरीर एक दम काड़तोड़ है । यह तो रंग-बिरंगी तितली है । तितलियाँ घर का बोझ नहीं सँभाल सकतीं। विनोद की मा जब तक जीवित रही, मैंने घर के प्रबन्ध में कभी चूँ नहीं की । न नौकरों का तूफ़ान था, न चीज़ों का नुक्सान | बीसियों श्राये गये बने रहते हैं, परन्तु स्वागत-सत्कार में कभी भूल नहीं हुई। फिर क्या वह पढ़ी-लिखी न थी ? जब कभी अवकाश मिलता, रामायण और ब्रजविलास का पाठ करती और सदा ही पूजा-पाठ और दानधर्म में लगी रहती थी ।
चारु० - इस योग्यता पर कोई कैसे कुछ कह सकता है । परन्तु यह तो आपको मानना पड़ेगा कि दम्पति में परस्पर विचार - साम्य की अत्यन्त आवश्यकता है । आज के शिक्षित युवकों के विचार आपकी कोटि के नहीं हैं।
आनंद० – मैं तो समझता हूँ, जितनी अधिक शिक्षा, उतना ज्यादा विचार - वैषम्य । एम० ए० पास पति और बी० ए० पास पत्नी दोनों ही मिलकर शेक्सपियर के नाटकों को एक रुचि से नहीं पढ़ सकते। फिर गृहस्थी न तो डिवेटिंग सोसायटी है और न उसका भार असेम्बली का बजट है। पति और पत्नी में विजय-पराजय का प्रश्न नहीं है जितना कि समझदारी के साथ झुकने और प्रभाव डालने का । ( एक पत्र उठाकर ) देखिए ( तसवीर पर अँगुली रखते हुए) ये कौन हैं (चश्मे के भीतर से आँखें गड़ा कर देखते हुए ) -- कुमारी प्रफुल्ल एम० ए० । लिखा है- फ़िलासफ़ी में एम० ए० हुई हैं। शिक्षण -शास्त्र का बढ़िया
शान है। इनके पिता, सुनते हो चारु, एक बहुत बड़े
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[ भाग ३८
सरकारी अफसर हैं । (कुछ सोचकर ) हाँ, इनके पिता बहुत बड़े अफ़सर हैं । हूँ । (कुछ सोचने लगते हैं) चारु० - और लड़की भी तो कुछ कम शिक्षित नहीं है— विनोद के मुकाबले की ही है।
आनंद ० - यह बात भी है, पर इनके पिता बहुत बड़े
हैं। मैं विनोद का विवाह ऐसे कुल में ज़रूर करना चाहता हूँ ।
चारु० - तो क्या लड़की आपको पसंद नहीं है ? उसका कुल ही पसंद है ?
आनंद० — लड़की ? हाँ, यह तो मैं क्षण भर के लिए भूल ही गया था ।
चारु० - जी हाँ, विवाहित होकर लड़की ही यहाँ श्रायगी, उसका कुल नहीं । आनंद० - यह लड़की.. .. ( कुछ ठहर कर ) क्यों चारु... ( फिर कुछ सोचकर ) कुछ मोटी और भद्दी जान पड़ती है । है न ? ( तसवीर दिखाता है) चारु० - शायद ऐसा हो सकता है ।
आनंद ० - लेकिन इतनी मोटी ताज़ी बहू भी किस काम की, जिसे .......
चारु० -- किसी को आप काड़ीतोड़ कहते हैं और किसी को मोटी - ताज़ी । मेरा ख़याल है कि यह लड़की बहुत स्वस्थ है ।
श्रानंद० - मेरे पिता जी कहा करते थे कि शादी के लिए
कुंडली का मेल मिलना चाहिए, लेकिन अब तो तसवीरों का मेल मिलने लगा है !
चारु० - कुंडली के अंकों के रहस्य से तो तसवीर की छाया
कहीं अधिक स्पष्ट है । विवाह कुंडली मिलने में नहीं है— मन मिलने में है ।
आनंद० - और आपका मन मिलना वैसा ही है, जैसे घी के साथ कोकोजम । तसवीर से मन नहीं मिलता- शकल मिलती है ।
चारु० - लेकिन जब स्वयंवर होते थे तब सिवा रूप-रंग और
धन-वैभव के किस बात का विचार किया जाता था ? श्रानंद० - मैं समझता हूँ कि एम० ए० पास हो जाना ही
समझदार गृहस्थ होने की निशानी नहीं है । मैं तो नहीं चाहता कि मेरी बहू-बेटी गवर्नर की दावतों में शामिल हो या......
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