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एकांकी नाटक
सारा
पाप की छाया
लेखक, प्रोफेसर रमाशंकर शुक्ल, एम० ए० ल्लुकेदार आनन्दमोहन की कोठी का कद के आदमी जान पड़ते हैं। गौर वर्ण हैं; किन्तु मूंछएक कमरा, जो वास्तव में उनकी दाढ़ी हमेशा साफ़ करते रहने से चेहरे पर श्यामता झलक एकान्त बैठक है। कमरे का ठाट- आई है । पोशाक सादी, किन्तु चुस्त है । सारा बाना खादी
सजावट का ढंग, पुराने रईसों की का है। सिर पर किश्तीनुमा खादी की टोपी लगाये हैं। KA रुचि का है। दीवारें हलके सब्ज़ आनन्दमोहन और चारुचन्द्र परस्पर बड़े विश्वस्त रंग की हैं और उनके ऊपरी छोरों पर खूबसूरत बेलों के मित्र हैं। अानन्दमोहन पुरानी ढब के विनोदी साहित्यिक रंग डाले गये हैं। दीवारों पर तीन अोर केवल तीन जीव हैं । किन्तु पुराने होने पर भी नवीनता से परहेज़ नहीं चित्र टँगे हैं, जिनमें से दो चित्रों पर हलके आसमानी करते । चारुचन्द्र की 'वसुधा' के वे संरक्षक हैं। चारु पर रंगवाले रेशम के प्रावरण पड़े हैं। खुला हुआ चित्र बड़ी कृपा रखते हैं और पारिवारिक अन्तरंग मामलों में ताल्लुकेदार साहब की युवा अवस्था का है। छत के चार प्रायः उनसे सलाह लिया करते हैं । आज भी किसी मसले कोनों पर चार रंग की शीशे की हंडियाँ टॅगी हैं और पर दोनों बैठे बातें कर रहे हैं ।] बीच में एक बहुत बड़ा शीशे का झाड़ लटक रहा है। आनन्द०-मुझे नहीं मालूम था कि दुनिया इतनी आगे फर्श पर कालीन बिछा है और दो बहुत बड़े और ऊँचे बढ़ गई होगी। एक विज्ञापन में ३१ चिट्ठियाँ और गद्दों पर हिमधवल चादरें बिछी हैं, जिनके सहारे करीने से १४ तसवीरें ! इन विज्ञापनवाली बहुंत्रों का अलबम कई बड़े तकिये लगाये गये हैं। दरवाजे से पायंदाज़ से पैर बनाऊँ या क्या? उठाते ही दो कोनों में आबनूसी काम की दो ऊँची, गोल, चारु०-नहीं साहब, विनोद के लिए इनमें से एक को और मोर की गर्दन पर सधी हुई टेबलों पर रंगीन महकते चुनना होगा और फिर वही तसवीर जीती-जागती हुए फूलों के गुलदस्ते रक्खे हैं, जो दोपहरी झेलकर मुरझा- आपके घर की शोभा बढ़ायेगी। से गये हैं । उत्तर की ओर रंगीन शीशोंवाली खिड़की है आनन्द०-अजी, ये सब इश्तहारी बहुएँ हैं । और इश्तऔर दरवाजे से दूर बाई ओर एक पुराने ढंग की टेबल हारी चीजें सब नुमायशी होती हैं। समझे ! और उसके तीन अोर ऊँची कुर्सियाँ पड़ी हैं। टेबल पर चारु०-आपने ये सभी पत्र पढ़े होंगे। इनमें अनेक परिलिखने-पढ़ने का सभी आवश्यक सामान सजा है।
वार अत्यन्त प्रतिष्ठित होंगे। सभी लोग अपनी ' गद्दे पर तकिये के सहारे आनन्दमोहन बैठे हैं। कन्याओं को सुयोग्य बनाना चाहते हैं और श्रेष्ठकुल शरीर अधिक स्थूल है। रंग गेहुँआँ और आँखें बड़ी पर से नाता जोड़ना चाहते हैं। फिर आपका परिवार चेहरे की मोटाई के कारण कुछ भीतर की ओर हो गई हैं। तो...... चश्मा लगाये हुए हैं । बदन पर बनियायन के ऊपर बढ़िया अानन्द०-यही तो बात है। देखते हो मेरी जायदाद ! चुन्नटदार मलमल का ढीला कुर्ता है, जिसमें शायद मुझे इसी की चिन्ता है। ये सब लड़कियाँ मोटर इतना इत्र मल दिया गया है कि सारा कमरा खुशबू से और पेट्रोल की भूखी हैं। इन्हें मोटर की हवा अच्छी भर गया है। ढीला पायजामा पहने हुए हैं। श्रास-पास । लगती है, अँगरेज़ी कम्पनियों और दूकानों में इनकी बहुत-से काग़ज़ात फैले हुए हैं।
प्रतिष्ठा बढ़ती है और सिनेमा-थियेटरों में इनका जी उनके सामने वसुधा-सम्पादक चारुचंद्र बैठे हैं। बहलता है। सच मानो सम्पादक जी, ये सब जलती इनकी अवस्था ३४ वर्ष की होगी। बैठे होने पर भी ऊँचे हुई दियासलाइयाँ हैं, जहाँ होंगी बाग लगायेगी।
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