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सरस्वती
[भाग ३८
कि जहाज़ से उतरते समय स्टुअार्ड को एक एक लिफ़ाफ़ा दें और उस लिफ़ाफ़ा में यह पत्र लिख कर रक्खा हो कि जो व्यवहार-भेद हमारे साथ किया गया है उससे हम खिन्न हैं और टिप के स्थान पर यह पत्र है । मैंने इस राय की पुष्टि की। सोचा कि इस घटना से स्टुअार्ड महोदय को जन्म भर के लिए एक अच्छी शिक्षा मिल जायगी । पर यह बात जहाँ की तहाँ रह गई। स्टुअार्ड को इस बात की खबर मिल गई और उसने अनुनय-विनय
कर उस अँगरेज़ महिला से डाइनिंग-हाल में ही भोजन ला हावर नगर तथा समुद्र-तट]
करने का अनुरोध किया। दूसरे दिन जब लोग डाइनिंग
हाल में गये तब उक्त महिला को एक कुर्सी पर आसीन - इन्हें एक घटना बड़ी अप्रिय लगी, जिसका उल्लेख पाया। जिस बात के लिए उक्त संकल्प किया गया था करना आवश्यक समझता हूँ । जिस क्लास में ये महाशय उसका सहज ही निपटारा होते देख बात समाप्त कर यात्रा कर रहे थे उसी में एक अँगरेज़ महिला भी थी। दी गई। इसे छोड़ कर उस क्लास में और कोई पूर्ण श्वेताङ्ग नहीं था। बिस्के की खाड़ी में जहाज़ पहुँच चुका था। यह यह महिला मडेरा से ही जहाज़ में चढ़ी थी और प्लीमाउथ खाड़ी तूफ़ानों के लिए प्रसिद्ध है, पर सितम्बर का मास जा रही थी। इसके भोजन का ढंग कुछ विचित्र था, जो शान्त होता है। अतः किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ। स्वाभिमानी यात्रियों के लिए अपमान की बात थी। बात हम लोग स्पेन के तट से दूर निकल आये थे। जो शङ्का यह थी कि उक्त महिला 'डाइनिंग-हाल' में सब यात्रियों रह रहकर यात्रियों को सता रही थी वह दूर हो गई। के साथ भोजन न कर 'स्मोकिंग रूम' में ही भोजन मँगा अब लोगों के हृदय में प्लीमाउथ पहुँचने की उत्सुकता थी। लेती थी। स्टुआर्ड भी इस पर कोई आपत्ति नहीं करता जिस समय हम लोग प्लीमाउथ पहुँचे उस समय था। आखिर वह भी तो था श्वेताङ्ग ही। यह भेद-भाव अपराह्न का समय था। तट से दूर ही जहाज़ लग गया सभी को खटकता था, पर कोई इस मामले को कैसे छेड़ता ? था। आलीशान मकान प्लीमाउथ की उत्कृष्टता की सूचना प्रबन्ध जहाज़ का था, उसमें हस्तक्षेप करने का किसी को दे रहे थे । बहुत-से यात्री यहीं उतर गये। इनके अधिकार नहीं था। पर एक बात यात्रियों के हाथ में थी, लिए कम्पनी का बोट तट पर ले जाने के लिए लगा था । वह थी टिप'।
दक्षिणी अमेरिका से यहाँ तक रेडियो के समाचार के भारत छोड़ते ही पश्चिमीय देशों में सभी जगह सेक्कों को टिप देने की प्रथा है। किसी होटल में चले जाइए । भोज्य पदार्थ का मूल्य तो देना ही पड़ेगा, पर सेवक को भी 'टिप' देना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति टिप की रस्म अदा नहीं करता तो कर्मचारी उसे बड़ी घृणा की दृष्टि से देखते हैं और उसे किसी नीच कुल और समाज का समझते हैं। जहाजों में भी टिप का देना। श्रावश्यक समझा जाता है। मध्यम कोदि के लोग भी १ पौंड तक टिप दे देते हैं। ___ उक्त मुलाटा महाशय ने यह राय की कि जितने यात्री
इस व्यवहार-भेद से खिन्न हैं वे सभी इस बात का संकल्प करें ला हावर के ला रूथियर्स स्ट्रीट का एक दृश्य ।] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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