Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

View full book text
Previous | Next

Page 561
________________ संख्या ६] १९३६ का देशी कम्पनी-क़ानून (७) ज़ेवर अथवा जोखिम के द्रव्य की रक्षा रखना। समय ऋण का १३ प्रतिशत और उसके अस्थिर (८) रुपये को वसूल करना और एक जगह से दूसरी ऋण का ५ प्रतिशत हो। -- जगह भेजना। इस नये कानून से पहले अगर कोई बैंक लोगों के (९) किसी की जायदाद का प्रबन्ध करना अथवा ट्रस्टी माँगने पर उनका रुपया उन्हें पूरे तौर पर उनकी माँग बनना। पर नहीं दे सकता था तो उस बैंक को अपना काम बंद (१०) बैंक के व्यवसाय के लिए रुपया उधार लेना। करना पड़ता था, चाहे उसकी असली हालत बिलकुल (११) माल-असबाब को गुदाम में रखने का काम करना। ठोस और श्राय स्थिर क्यों न हों। पर अब नये (१२) उधार का प्रबन्ध करना। कानून के अनुसार बैंकिंग-कम्पनी कचहरी से प्रार्थना (१३) अपना रुपया वसूल करने के लिए जंगम सम्पत्ति कर सकती है कि उसे अपने डिपाज़िटरों को रुपया कुछ अथवा अचल सम्पत्ति का बेचना। देर के बाद देने की आज्ञा मिल जायं और इस समय इस कानून में यह त्रुटि है कि जिस कम्पनी में दस में वह अपनी अल्पकालिक आय-सम्बन्धी कठिनाइयाँ मनुष्यों से कम व्यक्ति शामिल हों उस पर यह नया कानून ठीक कर सकें। इससे बैंक अपने को अनुचित दिवाले नहीं लग सकता। इसी तरह जिन कम्पनियों का मुख्य से बचा सकेंगे। परन्तु बैंक की प्रार्थना कचहरी तभी सुनेगी काम तिजारत करना हो वे इस कानून के बाहर हैं, चाहे जब उस प्रार्थना के साथ कम्पनियों के रजिस्ट्रार का भी वे लोगों से रुपया जमा करने को लें और चेक के द्वारा विज्ञापन हो । काम भी करें। इसमें यह भी दोष है कि तिजारत करने कम्पनी अपने हिस्से अपने आप नहीं खरीद सकती, - वाली कम्पनियाँ अपने बैंकिंग-विभाग से रुपया लेकर न वह किसी को अपने हिस्से ख़रीदने को रुपया उधार अपनी तिजारत में फंसा देती हैं। दे सकती है। ___ जो भी बैंकिंग कम्पनी १५ जनवरी १९३७ के बाद स्थापित होगी वह अपने प्रबन्ध के लिए प्रबन्ध-प्रतिनिधि नया कानून और अन्य कम्पनियाँ । नहीं नियुक्त कर सकती। इससे यह सुधार हुआ है कि (१) कम्पनियों के डायरेक्टरों का चुनाव प्रतिवर्ष होगा। बैंक का रुपया मैनेजिंग एजंट अपने धंधों में नहीं लगा (२) नई कम्पनियों में प्रबन्ध-प्रतिनिधि २० वर्ष से अधिक सकते और बैंक मैनेजिंग एजंट से मुक्त रहेंगे। के लिए नियुक्त नहीं किये जायेंगे। ___ निम्नलिखित धारात्रों से बैंकों की आय-सम्बन्धी (३) मैनेजिंग एजंट को नियुक्त करना, उनको हटाना स्थिरता हो जायगी और बनावटी अथवा थोथी कम्पनियाँ और उनके पट्टे की शर्ते तय करना या बदलना, ये नहीं खुल सकेंगी। सब बातें कम्पनी की ऐसी सभा में तय होंगी जिसमें (१) कोई बैंकिंग-कम्पनी जो १५ जनवरी १९३७ के बाद सब हिस्सेदार भाग ले सकेंगे। स्थापित होगी, तब तक अपना काम नहीं शुरू (४) मैनेजिंग एजेठ का वेतन कम्पनी के स्वालिस मुनाफ़े कर सकती जब तक कम से कम ५०,००० रुपया पर प्रतिशत के हिसाब से होगा। अगर कम्पनी कम्पनी की क्रिया-सम्पत्ति (Working Capital) का खालिस मुनाफ़ा कम होगा तो उन्हें निश्चित न हो। किया हुअा अत्यल्प वेतन और दफ़्तर चलाने का (२) जब तक स्थायी कोष प्राप्त पूँजी के तुल्य न हो तब ख़र्च मिलेगा। तक कम्पनी के वार्षिक लाभ में से प्रतिशत स्थायी (५) कम्पनी की बड़ी मीटिंग साल में एक दफ़ा अवश्य कोष . में जमा किया जाय। स्थायी कोष सरकारी होगी। सिक्युरिटियों और ट्रस्ट-सिक्युरिटियों में ही लगाया (६) कोई भी कम्पनी अपने डायरेक्टरों को उधार रुपया जाय। नहीं दे सकेगी और न उधार का जिम्मा ले सकेगी। (३) हर एक बैंकिंग-कम्पनी का नकद कोष उसके नियत वह उस कम्पनी को उधार दे सकती है जिस पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640