Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 529
________________ : संख्या ५] सामयिक विचार-प्रवाह विधान का बिलकुल अन्त करना है, जिसे कोई आदमी नहीं लोग अपने हस्तक्षेप-सम्बन्धी अत्यधिक अधिकारों का पसन्द करता। कांग्रेसजन यह भी जानते थे और जानते हैं प्रयोग नहीं करेंगे ? मैं कहता हूँ कि कांग्रेस के उस प्रस्ताव कि वे शर्त के साथ पद ग्रहण करके भी उस विधान का में इससे अधिक कुछ नहीं मांगा गया था। ब्रिटिश सरकार अन्त नहीं कर सकते। कांग्रेस की जिस शाखा का विश्वास की ओर से कहा गया है कि यह विधान प्रान्तों को भीतरी पद ग्रहण करने में है उसका उद्देश यह था कि ऐसे स्वतंत्रता देता है। अगर ऐसा है तो गवर्नर लोग नहीं, उपायों द्वारा जो कांग्रेस के अहिंसात्मक ध्येय से असंगत बल्कि मन्त्री लोग अपनी अवधि तक अपने प्रान्तों के न हो, ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी जाय जिससे सारा अधि- शासन समझदारी से करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। ज़िम्मेकार जनता के हाथ में चला जाय। उसका उद्देश कांग्रेस का बल बढ़ाने का था, जिसने यह प्रकट कर दिया है कि वह जनता का प्रतिनिधित्व करती है। मैंने सोचा कि यह उद्देश तब तक सिद्ध नहीं हो सकता जब तक गवनरों और कांग्रेस-मन्त्रियों में यह सजनोचित कौल करार न हो जाय कि गवर्नर लोग तब तक अपने विशेषाधिकारों-द्वारा हस्तक्षेप न करेंगे जब तक मन्त्री उस विधान के अन्दर काम करेंगे। ऐसा न करने से पदग्रहण के बाद शीव्र अडंगे लगाये जाने लगते। मैं समझता हूँ कि सचाई की दृष्टि से ऐसा कौल-करार उचित था । गवर्नरों को अपने विचार से काम करने का अधिकार है । निस्सन्देह उनका ऐसा कह देना विधान के विरुद्ध न होता महात्मा गांधी कि वे मन्त्रियों के वैधानिक कामों के विरुद्ध अपनी इच्छा दार और कर्तव्यपरायण मन्त्री अपने नित्य के कर्तव्य में का प्रयोग नहीं करेंगे। याद रखना चाहिए कि यह कौल- हस्तक्षेप बरदाश्त नहीं कर सकता। । उन बहत-से संरक्षणों को स्पर्श न करता इसलिए मझे तो ऐसा जान पड़ता है कि ब्रिटिश जिन पर गवर्नरों का अधिकार नहीं है। निर्वाचकों का सरकार ने फिर एक बार की हुई अपनी प्रतिज्ञा तोडी है-- सुविचारित सहारा प्राप्त किये हुए किसी प्रबल दल से यह वादाख़िलाफ़ी की है। कानों को जो वादा सुनाया था आशा नहीं की जा सकती कि वह गवर्नरों के मनमाने तौर उसका अनुभव हृदय को नहीं कराया। इस बात में मुझे पर हस्तक्षेप करने की आशंका के रहते हुए अपने को सन्देह नहीं है कि वह हम लोगों पर अपनी इच्छा तब तक अनिश्चित अवस्था में डाले। लाद सकती है और लादेगी जब तक उसका विरोध करने यह प्रश्न दूसरे रूप में भी किया जा सकता है। गवर्नर के लिए भीतर से अपना बल काफ़ी बढ़ा नहीं लेते। परन्तु लोगों को मन्त्रियों के प्रति सौजन्य का बर्ताव रखना चाहिए। . यह कार्यतः प्रान्तीय स्वतन्त्रता नहीं कही जा सकती। मेरी राय में जिन विषयों पर कानून से मन्त्रियों को पूरा सरकार के ही बनाये हुए नियम से कांग्रेस ने बहुमत प्राप्त नियंत्रण दिया गया है और जिनमें हस्तक्षेप करने के लिए किया, मगर उसका तिरस्कार करके सरकार ने स्पष्ट शब्दों गवर्नर कानून से बाध्य नहीं हैं उनमें अगर वे हस्तक्षेप करें में उस स्वतन्त्रता का अन्त कर दिया जो विधान-द्वारा देने तो यह स्पष्टतः असौजन्य होगा। एक अात्मसम्मानी मन्त्री की दोहाई उनकी अोर से दी गई है। जिसे यह याद हो कि उसे अजेय बहुमत का सहारा है, इसलिए अब तलवार का शासन होगा, कलम का या हस्तक्षेप न करने का ऐसा वचन माँगे बिना रह नहीं निर्विवाद बहुमत का नहीं। सब तरह की सद्भावना रखते सकता । क्या मैंने सर सेमुएल होर और दूसरे मंत्रियों को हुए भी सरकार के काम का यही अर्थ सूझता है, क्योंकि बार बार यह कहते नहीं सुना है कि साधारणत: गवर्नर मुझे अपने सूत्र की सचाई पर सोलह आने विश्वास है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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