Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 550
________________ ५३६ सरस्वती [ भाग ३८ + + + + + जगह दी थी। शाहजहाँ ने इस जगह को बहुत पसन्द किया था। दूसरे ग़दर के दिनों में भयभीत अँगरेज़ों को यहीं अाश्रय मिला था। तत्कालीन महाराना ने ख़तरे का सामना करके इन लोगों को शरण दी थी। दूसरे रोज़ हम लोगों का चक्कर कुछ देर तक हुअा। हम उदयपुर शहर से प्रायः ६० मील की दूरी पर 'जय-समन्दर' तक गये। 'जय-समन्दर' सचमुच ही एक समुद्र की तरह है। इसका घेरा ९२ मील है। इसके भीतर उदयपुर-महाराना का पुराना राजमहल । कितने ही पहाड़ हैं, जिन पर बहुत-से गाँव बसे हुए हैं और देखने में सरोवर के गन-गार-घाट पर पहुँचे । यहाँ से नाव द्वारा हम द्वीप-से मालूम पड़ते हैं। हम लोग कुछ दूर तक नाव लोग 'जगनिवास' की ओर चले। इसको महाराना के पूर्व पर गये। उस अगाध 'जय-समन्दर को देखकर वापस पुरुषों ने बनवाया था। ग्रीष्म ऋतु में जब सारा राजपूताना लौट आये। गरमी के मारे तड़पता है उस समय भी यहाँ ठंडा होने के महाराना का श्राराम के पास ही है और कारण महाराना इस चित्रमय भवन में निवास करते थे। महल तक चला गया है। जादूघर में राज्य में मिली हुई महल तालाब के बीच में है। भीतर कितने ही फुहारे लगे पुरानी चीज़ों का संग्रह है। यहीं महाराना प्रताप की तलवार हैं । गर्मी मालूम पड़ने पर ये सब खोल दिये जाते हैं। है । इसी तरह की इसमें और भी कितनी ही भव्य स्मृतियाँ उदयपुर के पास-पास कृत्रिम झीलें हैं। सिवा एक रक्खी हुई हैं, जो एक हिन्द्र के मन में वीर-रस का संचार तरफ के बाकी तीनों तरफ़ झील ही झील हैं । इन्हें उदय- करती हैं। पुर में 'सागर' कहते हैं। बहुत बड़ी झील को 'समन्दर' कहते हैं। ये सब झीले इस तरह एक-दूसरे से जुटी हुई हैं कि हर जगह किश्तियों से जाया जा सकता है। उदयपुर के कुछ अंश तो टापुत्रों की तरह इन झीलों के बीच-बीच में पड़े हैं। महाराना का लीलाभवन भी इनके बीच में ही है। देखने में ये सब छोटे छोटे टापू मालूम पड़ते हैं । कुछ दूर पर हमें एक भवन नज़र पड़ा। यह भवन दो बातों के लिए प्रसिद्ध है। एक तो पिता से बागी उदयपुर–नया राजमहल, जिसको महाराना ने पाश्चात्य शिल्पकला के हुए शाहजहाँ को महाराना ने यहीं अनुसार बनवाया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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