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संख्या ६ ]
गये। स्टेशन पर हम लोगों को लेने के लिए कुछ सज्जन आये हुए थे । कुछ समय तो जान-पहचान और कुशल प्रश्न में लगा। फिर मोटर में सवार होकर हम शहर में गये । गेस्टहाउस बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था । एक छोटी पहाड़ी पर महाराना का महल चमक रहा था। उस समय मुझे कोई भी छोटा मकान नज़र नहीं पड़ा । रात्रि के समय उस विद्युत्प्रकाश में मुझे यही मालूम होता था, मानो सारा उदयपुर जगमग कर रहा है ! मैंने अपने मित्र से कहा- हमें अब अपनी सुनी-सुनाई धारणा बदलनी पड़ेगी ।
उदयपुर-यात्रा
[ उदयपुर - "घनघोर नृत्य " - यह बड़े बड़े त्योहार और पर्व के अवसर पर महाराजा के सामने हुआ करता है । वहाँ पर दरबार के प्रतिष्ठित सज्जन लोग उपस्थित रहते हैं ।]
प्रातःकाल जब हम लोग उठे
तब सात बज चुके थे, किन्तु अभी अँधेरा ही था। उस समय कुछ वृष्टि भी हो रही थी, जिससे प्रकृति का सौन्दर्य कुछ निखर-सा ग्राया था । सघन वृक्षों से ढँके उस पहाड़ पर कुहरा-सा छाया हुआ था, जो शोभा में और भी वृद्धि
कर रहा था।
आठ बजे हम लोग बाहर निकलनेवाले थे, प्रोग्राम काफी लम्बा चौड़ा था, तो भी हम लोगों को रुकना ही पड़ा । किन्तु जल-पान करने के बाद भी पानी नहीं बन्द
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[ उदयपुर - जगनिवास - यह महाराना का श्रानन्द-भवन है । ]
हुआ। कुछ देर और रुके, किन्तु वहाँ कोई सुनवाई न थी । अन्त में हम लोगों को चलना ही पड़ा, क्योंकि उदयपुर में हम लोगों को गिने-चुने दिन ही बिताने थे, और उन्हीं दिनों में ही मुख्य मुख्य दर्शनीय स्थानों को देखना था । हम लोगों का मोटर शहर की एक मुख्य गली से गुज़र रहा था । इमारतें तो बड़ी बड़ी थीं, किन्तु सड़कें कहिए या गलियाँ हमें बिलकुल रद्दी मालूम पड़ती थीं । उस रोज़ पर्व का दिन था, बाज़ार में काफ़ी चहल-पहल
थी । राजपूत लोग बड़ी संख्या में राजमहल की ोर जा रहे थे । स्त्रियों की भी काफी भीड़ थी। इतने बड़े जन-समूह में मैंने बहुत कम लोगों को राजपूती बाने में देखा । अब न वह लम्बी दाढ़ी और मूछें हैं, न वह विराट शरीर और चौड़े सीने । उनके चेहरों पर कान्ति या तेज भी नहीं, और न वह गेहुँत्रा रङ्ग ही । नाक पिचकी और आँखें भीतर धँसी हुई देखकर मेरा चित्त प्रसन्न नहीं हुआ ।
हम लोग उदयपुर के महान्
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