Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 543
________________ संख्या ६] "कुछ कुछ तो गांधी जी के शब्द मेरे कानों में खटकते थे जैसे 'राम-राज्य' जिसे फिर वे लाना चाहते थे। लेकिन मैं इसी ख़याल से तसल्ली कर लिया करता था कि गांधी जी ने उसका प्रयोग इसलिए किया है कि इन शब्दों को सब जानते हैं और जनता उन्हें समझ लेती है । उनमें जनता के हृदय तक पहुँच जाने की विलक्षण स्वाभाविक शक्ति थी ।" (पृष्ठ ९० ) पं० जवाहरलाल जी ने 'मेरी कहानी' में गांधी जी के लिए 'महात्मा' का शब्द दो ही एक स्थानों में प्रयोग किया है । इस सम्बन्ध में उन्होंने जो दलील दी भी बड़े मार्के की है- है वह “मैंने इस पुस्तक में सब जगह महात्मा गांधी के जय गांधी जी लिखा है, क्योंकि वह खुद 'महात्मा गांधी' के बदले 'गांधी जी' कहा जाना पसन्द करते हैं । अँगरेज़ लेखकों के लेखों और पुस्तकों में मैंने इस 'जी' की विचित्र व्याख्यायें देखी हैं । कुछ ने कल्पना कर ली है कि वह प्यार का शब्द है, और गांधी जी के मानी हैं 'नन्हें से प्यारे गांधी' । यह बिलकुल वाहियात है ।” (पृष्ठ ३८) देश में जितने आन्दोलन हुए वे प्रायः एक के बाद दूसरे असफल होते गये। ऐसा क्यों हुआ, इस पर भी नेहरू जी ने विहंगम दृष्टि डाली है । नेहरू जी ने यह साफ़ तौर से लिखा है कि सफलता की ज़िम्मेदारी कुछ तो कांग्रेस में घुस आनेवाले गैर-जिम्मेदार कार्यकर्ताओं पर और कुछ देश के वातावरण के परिवर्तन पर है। इनमें साम्प्रदायिक लोगों के सिवा सरकार के राजनैतिक दाँव-पेंचों का भी विशेष हाथ रहा है । 'कौंसिल प्रवेश', 'किसान - श्रान्दो लन', 'नमक सत्याग्रह' आदि की असफलताओं के रहस्यों का भी उद्घाटन ज़ोरदार दलीलों के साथ किया है । पुस्तक का तीन हिस्सा आलोचना और वर्णन से भरा हुआ है। जेल में अधिक रहने के कारण यद्यपि नेहरू जी को कहीं कहीं आन्दोलनों के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य बातों का विवरण नहीं मिल सका है— जैसा कि उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है - तो भी उपलब्ध सामग्री इतनी यथेष्ट है कि उसके वर्णन और आलोचनात्मक चित्रण में काफ़ी सजीवता श्रा गई है। जवाहरलाल नेहरू किसान और मजदूर - पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 'अपनी कहानी' में प्राय: मज़दूरों और किसानों की माँगों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ५२९ का, उनकी उन्नति और संगठन का पक्ष समर्थन किया है । उनके स्वार्थ में जो रुकावटें पड़ीं या पड़ रही हैं उनकी हर जगह मुख़ालिफ़्त की है। नेहरू जी में यह भावना विद्यार्थी जीवन से ही है । पुस्तक के प्रारंभिक अंशों और घटनाओं के पढ़ने से इस बात का परिचय प्राप्त होता है । विलायत में शिक्षा पाने के समय से ही उनके हृदय में इस भावना का उदय हो चुका था। भारत में जब वे प्राये और सार्वजनिक कामों में भाग लेने लगे तब 'अवध के किसान आन्दोलन' ने उनके हृदय पर गहरा प्रभाव डाला । इन्हीं किसान-सभाओं के द्वारा नेहरू जी को भाषण करने की शक्ति प्राप्त हुई । 'किसानों में भ्रमण ' परिच्छेद में उन्होंने किसानों की दरिद्रता और संकट का अच्छा दिग्दर्शन कराया है । 'युक्तप्रांत में करबंदी', 'युक्त प्रांत में किसानोंसंबंधी दिक्कतें' और 'ट्रेडयूनियन कांग्रेस' के परिच्छेद इसी प्रकार के विचारों से श्रोत-प्रोत हैं। ग़रीबी की कठिनाइयों का नेहरू जी को अच्छा अनुभव है और उसे दूर करने में उनकी प्रेरणा है । उन्होंने अपने विचारों को निर्धन श्रेणी के विचारों के अनुरूप बना लिया है । यही कारण है कि वे इस समस्या को बड़ी ख़ूबी और विवेचनात्मक ढंग से अंकित करने में सफल हुए हैं। भारत में ही नहीं, जब जब नेहरू जी ने योरप की यात्रा की थी तब त वहाँ भी इसी समुदाय के विचारों का स्वागत किया और उसके अान्तरिक स्वरूप को समझने की चेष्टा की । 'ब्रूसेल्स में पीड़ितों की सभा' लेख में योरप के पीड़ितों तथा वहाँ के मज़दूरों की नीति और आन्दोलन का जीता जागता चित्र चित्रित किया है। भारत में मज़दूरों के समर्थक और नेता श्री एन० एम० जोशी की नेहरू जी बड़ी प्रशंसा की है । नेहरू जी में समाजवाद की भावना बहुत कुछ इसी श्रेणी के लोगों के कारण प्राप्त हुई है और समाजवाद की व्याख्या भी उनके अनुरूप हुई है। समाजवादी नेता श्री एम० एन० राय से उनकी मुलाक़ात मास्को (रूस) में हुई थी। नेहरू जी ने स्वयं लिखा है – “एम० एन० राय के बुद्धि-वैभव का मुझ पर अच्छा असर पड़ा।” (पृष्ठ १९० ) इसी प्रकार सारी पुस्तक में प्रारंभ से अंत तक भारत के इस विशाल समुदाय का ज़िक्र प्रसंगवश हुआ है, जिससे नेहरू जी के हृदय की विशालता का परिचय मिलता है । www.umaragyanbhandar.com

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