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सरस्वती
भाग ३८
है। इंग्लैंड में यह बात बहुत ही अनुचित समझी जायगी कायम करने की इच्छा होती तो कांग्रेस को आश्वासन
और वहाँ ऐसा होना असम्भव है कि उस दल के देने का एक से अधिक उपाय थे । हम स्वायत्त शासन तब नेता को मंत्रि-मंडल बनाने के लिए बुलाया जाय जिसके तक कभी नहीं प्राप्त कर सकते जब तक हम उसे कहीं विरुद्ध निर्वाचकों (वोटरों) ने निश्चित रूप से अपना से प्रारम्भ न करें । सर तेजबहादुर कहते हैं कि रीतियाँ निर्णय प्रकट किया है। पर यहाँ भारत में जिन प्रान्तों में अभ्यास से बढ़ी हैं, और इसके बाद वे गर्व के साथ कहते कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुअा है, वहाँ ऐसा ही हो रहा है। हैं कि अभ्यास का यह मतलब है कि काम किया जाय सर तेजबहादुर सत ने अपने वक्तव्य में जेनिंग की किताब और काम करने से इनकार न किया जाय। इससे कोई का हवाला दिया है। वह यहाँ बिलकुल नहीं लागू होता। इनकार नहीं करता, और सर तेजबहादुर यह बात कह यहाँ के प्रान्तों में काम चलाने के लिए जो मंत्रि-मंडल कर कुछ भी साबित नहीं कर रहे हैं। हम आश्वासन बनाये गये हैं उनसे उनका कुछ भी सम्बन्ध नहीं है माँगते थे और अब भी मांगते हैं, ताकि हम मंत्रिपद इसलिए भारतीय प्रान्तों में जो मंत्रिमंडल बने हैं उनका स्वीकार करें और उस आश्वासन के अनुसार काम कर श्रीचित्य मौजूदा या पुराने ब्रिटिश कार्यों से सिद्ध नहीं हो सकें । पर हमने पद-ग्रहण करने से इनकार कर दिया, सकता । गवर्नमेंट अाफ़ इंडिया एक्ट के शब्दों की आड़ क्योंकि गवर्नर यह नहीं चाहते कि यह रीति कायम हो में इन विचित्र असम्भव कार्यों की पुष्टि की जा सकती है। या इसे शुरू भी किया जाय । गवर्नर चाहते हैं कि मंत्रियों गवर्नमेंट अाफ़ इंडिया एक्ट के भाव का आशय उसी का सदा उनके हस्तक्षेप का भय लगा रहे, और उन्हें यह सिद्धान्त के अनुसार बताया जा सकता है जिस पर वह आशा है कि हम कोई ऐसा काम न करें जिसमें उनका एक्ट निर्भर है और केवल शब्द-कोष देखकर उस एक्ट हस्तक्षेप हो । इस तरह से काम करना राजनीति नहीं है, का मतलब नहीं समझाया जा सकता।
और इससे कोई रीति कायम न होगी। सर तेजबहादुर सप्रू के वक्तव्य के दूसरे भाग पर अब विचार किया जाता है. जिसमें आप लिखते हैं कि कानुनी
महात्मा गांधी का वक्तव्य रूप से गवर्नरों के सामने हस्तक्षेप न करने का श्राश्वासन आश्वासन माँगने के सम्बन्ध में कांग्रेस ने दिल्ली देने की माँग नहीं पेश की जा सकती। सर सप्रू कहते हैं में जो प्रस्ताव पास किया था उसके एकमात्र प्रेरक कि कानूनी ज़िम्मेदारी के बाहर गवर्नर कुछ नहीं कर महात्मा गांधी थे। उनका कहना है कि इस सम्बन्ध • सकते । इसका उत्तर यह है कि उनसे ऐसा कराने के लिए में उन्होंने कानूनी पंडितों से परामर्श कर लिया था
कोई नहीं चाहता था। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि हमें और उन्होंने कोई ऐसी कड़ी शर्त नहीं रक्खी थी तभी मंत्रिपद स्वीकार करना चाहिए जब गवर्नर यह जिसे गवर्नर लोग विधान के भीतर स्वीकार नहीं
आश्वासन दे दें कि वे हस्तक्षेप करने के कानूनी हकों से कर सकते थे। उन्होंने दुःख के साथ यह कहा है काम न लेंगे। यदि गवर्नर यह महसूस करें कि किसी कि अब कलम या बहुमत का नहीं, तलवार का मामले में मंत्रि-मंडल ग़लती पर है, और वह इतनी ग़लती शासन होगा। वे कहते हैंपर है कि उन्हें (गवर्नर को) अवश्य हस्तक्षेप करना कोई असम्भव शर्त लगाने की मेरी इच्छा नहीं थी। चाहिए तो ऐसी दशा में उन्हें एसेम्बली भंग कर देनी इसके विरुद्ध मैंने ऐसी शर्त लगानी चाही जिसे गवर्नर चाहिए या मन्त्री को निकाल देना चाहिए, यानी लोग आसानी से स्वीकार कर सकें। ऐसी शर्त लगाने का इसका यह मतलब है कि उन्हें प्रान्तीय शासन काई इरादा ही नहीं था जिसका मतलब विधान में कुछ के दायरे के भीतर यह समझना चाहिए कि हस्त- भी परिवर्तन कराना हो। कांग्रेसजन अच्छी तरह जानते थे क्षेप करने का मतलब मंत्रियों को बदलना है या पुनः कि वे ऐसे किसी संशोधन के लिए नहीं कह सकते और निर्वाचन के लिए निर्वाचकों से अपील करना है। न कहते ।
यदि वास्तव में प्रान्तीय स्वराज्य (स्वायत्त शासन) कांग्रेस की नीति कोई संशोधन कराना नहीं, बल्कि
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