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सरस्वती
[ भाग ३८
इंग्लैंड दोनों जगह मान है। उनका कहना है कि जा सकती; और दूसरी ओर यह बात है कि इतने बड़े बहुमत होते हुए कांग्रेस ने आश्वासन व्यर्थ माँगा। बहुमत में होकर भी कांग्रेसी लोग गवर्नरों से आश्वासन
और जब आश्वासन न मिलने पर उसने मंत्रि-पद मांगने के लिए उत्सुक हुए। मंत्रियों के पीछे जो भारी नहीं स्वीकार किया तब गवर्नरों ने जो किया उनके बहुमत था उसकी उपेक्षा कोई गवर्नर नहीं कर सकता लिए वही उचित था। अल्पसंख्यकों के मंत्रिमंडल था। अगर वह ऐसा करता भी तो उसकी दवा कांग्रेसी वे बना सकते थे। ऐसे मंत्रिमंडल बन भी चुके हैं। मंत्रियों के हाथ में थी। कांग्रेस ने आश्वासन की जो माँग उनके वक्तव्य के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
पेश की है उसके कारण उस पर यह दोष लगाया जा ____ मुझे इस बात में सन्देह नहीं है कि महात्मा गांधी ने सकता है कि उसने ज़िम्मेदारी को ग्रहण करने में आनाजो युक्ति निकाली थी वह सचाई और ईमानदारी से प्रेरित कानी की है और चुनाव की सरगर्मी में जो वादे वोटरों थी। किन्तु सवाल तो यह है कि क्या उनका प्रस्ताव से किये थे उनको पूर्ण रूप से पूरा करने में वह असमर्थ विधान के अनुकूल था या प्रतिकूल । इस सम्बन्ध में मैं है। अगर यह कहा जाय कि दायित्व बड़ा है और अधिकार यही कह सकता हूँ कि गवर्नरों ने जो कुछ किया है उसके सीमित है, तो भी मंत्रिपद के दायित्व को स्वीकार करने से सिवा उनके सामने और कोई रास्ता नहीं था। सब इनकार करना न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। चुनाव ' प्रान्तों के गवर्नरों ने एक-सा ही जवाब दिया है इससे यह की सफलता के बाद मंत्रिपद तो स्वाभाविक रूप से ग्रहण तर्क करना कि उच्च अधिकारियों का आदेश पाकर ही कर लेना था। उन्होंने अपनी नीति अख्तियार की है, अतः प्रान्तीय चूँकि बादशाह की सरकार जारी रहना ज़रूरी है, विधान एक मज़ाक है-द्वेष और पक्षपात से खाली नहीं इसलिए गवर्नर इस बात के लिए बाध्य हुए हैं कि है। अगर सबने एक-सा ही जवाब दिया है या जवाब अल्पसंख्यक दलों या समूहों को मत्रिमंडल बनाने के लिए
बुलावें । अल्पसंख्यकों का शासन गत १०० वर्षों के अन्दर कई बार कार्यान्वित हो चुका है। एक लेखक ने लिखा है कि १८३६ से १८४१ तक, १८४६ से १८५२ तक, १८५८ से १८५९ तक, १८६६ से १८६८ तक, १८८५ से १८८६ तक, १८८६ से १८९२ तक, १९१० से १९१५ तक, १९२४ में और फिर १९२६ से १६३१ तक अल्पसंख्यकों का शासन रहा है। किन्तु सर्वोत्तम परिस्थितियों में भी अल्पसंख्यकों के शासन में एकता, साहस तथा आवश्यक समर्थन का अभाव रहता है। अल्पसंख्यकों का शासन कानूनी और वैधानिक दृष्टि से उसी प्रकार शासन
कहा जा सकता है जैसा कि बहुमत का शासन है। उसमें [सर तेजबहादुर सपू]
त्रुटियाँ अवश्य हैं, उदाहरणार्थ वह कोई स्थायी नीति नहीं देने को उन्हें आदेश किया गया है तो इसका सबब यह अख्तियार कर सकता। अतः भारत के ६ प्रान्तों में है कि इसके सिवा और कोई जवाब ही नहीं था। अल्पसंख्यकों के जो मंत्रिमंडल बनने जा रहे हैं वे बहुत ___ जहाँ तक राजनैतिक पहलू का सम्बन्ध है, प्रारम्भ थोड़े ही दिनों तक चल सकेंगे, अधिक दिनों तक कायम अच्छा नहीं हुआ है । शत्रुता और तनातनी का वातावरण न रह सकेंगे। इस वास्ते ऐसे मत्रिमंडलों से किसी को उत्पन्न हो गया है। एक ओर यह बात स्पष्ट है कि कुछ प्रसन्नता नहीं हो सकती। आवश्यकता है दृढ़ और स्थायी प्रान्तों में कांग्रेस ने निर्वाचक-समुदाय का विश्वास इतनी मंत्रिमंडल की। जब ये मंत्रिमडल अपदस्थ कर दिये अधिक मात्रा में प्राप्त किया है कि उसकी उपेक्षा नहीं की जायँगे, जिसका होना निकट भविष्य में अनिवार्य है तब
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