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ফ্রান্সি জুল জুলিফা
सम्पादक
देवीदत्त शु श्रीनाथसिंह
अप्रैल १६३७ }
भाग ३८, खंड १ संख्या ४, पूर्ण संख्या ४४८
चैत १९६४
रुबाइयाते पद्म
लेखक, श्रीयुत पद्मकान्त मालवीय शब्द जो चूमे गये मुझसे उन्होंने शक्ति पाई। आत्मा को ले उड़े नभ-बीच जय-दुन्दुभि बजाई ।। प्यार मैंने है किया सर्वात्मा को पुष्प जैसा, पर न देते ज्योति तुम तो क्या मुझे देता दिखाई ?
यह नहीं अभिमान मुझको भानु या शशि हो गया मैं। ., या कि नभ की तारिकाओं को कभी छू भी सका मैं।
किन्तु इतना सत्य है दुनिया बनाई एक मैंने, और फिर तुमको बनाकर स्वयं जाने क्या बना मैं।
कर रहे थे तके पंडित पुण्य था वह पाप या था। सोचता था मैं कि क्या हूँ, और इससे पूर्व क्या था। खेलता है जो खिलौना-सा मुझे वह ही बताये, मैं किसी को क्या बताऊँ किस समय क्या क्या किया था।
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