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संख्या ५ ]
सिन्ध का लॉइड बॅरेज और रुई की खेती
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(१) बायें किनारे
एकड़
जिनिंग तथा हाट-प्रणाली-लॉइड-बॅरेज के खुलने नवाबशाह-ज़िला
३१,७०० के पूर्व सिन्ध में जिनिंग-प्रेसिंग के ३७ कारखाने थे, हैदराबाद,
१,२२,१०० जिनकी संख्या इस समय ६६ है । बम्बई प्रान्तीय व्यवस्थाथरपारकर , २,१५,१०० .
पिका सभा ने सन् १९२५ के 'जिनिंग-प्रेसिंग-फेक्टरीज़ (२) दाहने किनारे . ११,४०० . एक्ट' के लिए एक संशोधन पास किया है, जिसके द्वारा
कुल ३८०३०० एकड़ रुई में मिश्रण करने की कुचालों पर नियंत्रण रक्खा गया (स) आयात की हुई 'इजिप्शियन' और 'सी- है। यह संशोधन १ सितम्बर १९३६ से सिन्ध में जारी आइलेंड' की जातियों की रुई-इन जातियों में से कर दिया गया है। निम्नलिखित दो मुख्य हैं-१ सिन्ध बॉस III २ सिन्ध- सिन्ध-प्रान्त में रुई के क्रय-विक्रय के लिए व्यवस्थित सी बाइलेंड । ये दोनों रुइयाँ क्रमशः मिस्रदेश और बाज़ार यानी मण्डियाँ नहीं हैं। प्रायः समूची पैदाअमेरिका से लाई गई हैं। ये दोनों उत्तम श्रेणी की हैं बार गांवों में ही बेच दी जाती है, जहाँ कृषक लोग कार. तथा इनके रेशों की लम्बाई ११ से १३ इंच है और जिनिंग खानेवालों और ख़रीदारों को अपना माल सीधा बेच देते प्रतिशत करीब ३० है। रुई की इन उन्नत जातियों की हैं। इस तरह के व्यापार में तरह-तरह के बटाव और खेती का विकास १९३४ से ही प्रारम्भ हुअा है। १९३४ भिन्न-भिन्न तोल-मापों का उपयोग होने से अज्ञानतावश में १५० एकड़ में उनकी खेती हुई थी। १९३५ में उसका कृषकों को नुकसान पहुँचता है। 'प्रान्तीय सिन्ध-कॉटनविस्तार २,५०० एकड़ तक हो गया था और यह धारणा कमिटी'-द्वारा व्यवस्थित बाज़ारों की स्थापना की जाने के है कि १९३६-३७ में करीब १५,००० एकड़ में उनकी लिए प्रयत्न किया जा रहा है और शायद 'सहयोगिनी खेती होगी।
विक्रय-संस्थायें भी स्थापित हो जायँ । 'सिन्ध एन० आर०' और 'सिन्ध-अमेरिकन' से भी ये भविष्य क्या होगा ?- इसमें आश्चर्य नहीं कि उत्कृष्ट है, अतएव ये विशेष ध्यान-पूर्वक और अच्छी भूमि कुछ ही वर्षों में सिन्ध-प्रांत १० लाख एकड़ में रुई की में बोई जाती हैं। ये ऋतु-परिवर्तन कम सहन करती हैं खेती करने लगेगा और करीव ५ लाख गाँठ की पैदावार
और शुरू में बीमारियों और पाले का असर जल्दी होने होगी। साथ में यह बात भी निश्चित है कि भविष्य में से इनकी पैदावार अन्य अमेरिकन और देशी जातियों की सिन्ध में रुई की खेती अधिक व्यवस्थित रूप में की अपेक्षा कम होती है। ये बहुत जल्दी अर्थात् माच में या जायगी। इसी लिए वहाँ के कृषि-विभाग ने १ से ११ अप्रैल के शुरू में बोई जाती हैं, किन्तु फ़सल देर से तैयार इंच तक की लम्बाई के रेशों वाली रुई की खेती के विकास होती है। सिन्ध-सी-प्राइलेंड जाति' सिन्ध-बॉस III से पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है, जिसके लिए प्रांत की अधिक सहिष्णु है. और इसकी खेती थरपारकर-ज़िले में भाम भी बहुत उपयुक्त है। इसके लिए यह भी उचित है ही होती है।
कि 'सिन्ध-देशी' रुई की पैदावार २.५०,००० या बॅरेज-प्रदेश में ऐसे कई तरह के कीड़े पाये जाते हैं २,७५,००० गाँठों से अधिक बढ़ने न दी जाय, क्योंकि जो रुई के पौधों की शक्ति का शोषण कर फ़सल को काफ़ी इससे अधिक पैदावार, मांग को कम करके, कृषकों को नुकसान पहुंचाते हैं । इन कीड़ों के विषय में अन्वेषण के घाटा पहुँचावेगी। 'इजिप्शियन' और 'सी-भाइलेंड' के लिए एक विभाग सकरन्द. में खोला जानेवाला है। विषय में कृषि विभाग का विचार है कि इनकी खेती उन किन्तु यदि कृषक-वर्ग खेती की व्यवस्था में सुधार और खास-खास जगहों में की जाय, जहाँ उनकी खेती अधिक भूमि की जुताई अधिक ध्यानपूर्वक करे तो उसकी फ़सल से अधिक किफ़ायत से की जा सके। कीड़े और बीमारियों से सहज में बचाई जा सकती है।
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