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भाई परमानन्द और भूले हुए हिन्दू
लेखक, प्रोफेसर प्रेमनारायण माथुर, एम० ए०, बी० काम०
श्री भाई परमानन्द हिन्दू-महासभा के प्रमुख कर्णधारों भाई जी 'हिन्दू-महासभा' के प्रमुख सूत्रधार हैं। यह
या में हैं । इस नाते यदि भाई जी हिन्दू-संस्कृति और भी एक प्रकट बात है कि 'हिन्दु-महासभा' के विरोध सभ्यता की उन्नति के करने या उसकी अवनति के रोकने में 'मुसलिम लीग' की स्थापना हुई है और सो भी में विशेष दिलचस्पी लें तो कोई अाश्चर्य की बात नहीं। उसी के उसूलों पर । मुसलिम लीग को भी हमेशा इसी इस विषय में भाई जी का अपना एक विशेष दृष्टि-कोण है। बात का ख़तरा रहता है कि यदि किसी प्रकार देश में किन्तु भाई जी जिस राजनै तेक सूझ और देश-प्रेम का स्वराज्य' स्थापित हो गया तो हिन्दू मुसलमानों को हर प्रायः परिचय देते रहते हैं वह एक अजीब-सी वस्तु प्रकार से दबाने का प्रयत्न करेंगे और मुसलिम सभ्यता. मालूम पड़ती है।
और मुस्लिम हितों की सर्वथा अवहेलना की जायगी। भाई जी ने 'सरस्वती' के पिछले अंक के अपने अतः वे सदा इस बात का प्रयत्न करते रहते हैं कि इसके 'भले हए हिन्द' शीर्षक लेख में तीन प्रश्नों पर विचार पहले कि देश में स्वराज्य की स्थापना हो, जहाँ तक हो किया है- (१) कांग्रेस का देश में जागृति उत्पन्न करने सके और जिस प्रकार भी संभव हो, मुसलिम हितों की पूर्ण में कोई हाथ नहीं था और न है। "कांग्रेस का सत्याग्रह रूप से रक्षा कर ली जाय । जब तक या
आन्दोलन भारत में राजनैतिक जागृति का परिणाम इस बारे में उन्हें संतोष न हो तब त था, न कि उसका कारण"। भाई जी की राय में कि देश वर्तमान राजनैतिक और अार्थिक शोषण का शिकार देश की इस जागृति का एकमात्र कारण गत महायुद्ध भी बना रहे तो काई हानि नहीं। इस प्रकार देश में इन था। (२) कांग्रेस की करबानियों के बारे में भाई दलों में परस्पर संघर्ष चलता रहता है और हिन्द-मुसलिम जी का ख़याल है कि वे ग़लत रास्ते पर की गई करबा- प्रश्न का जो कुछ अस्तित्व है वह इन संस्थाओं की नीति नियाँ हैं और उनमें "असलियत के बजाय शोर बहुत का ही बहुत कुछ परिणाम है। जिस वातावरण के लिए ज्यादा है"। (३) भाई जों ने यह बतलाया है कि यदि हिन्दू-सभा और मुसलिम-लीग उत्तरदायी हैं वह हिन्दू-मुसनया विधान पहले से बुरा है जैसा कि कांग्रेस कहती है, लिम प्रश्न को हल करने की अपेक्षा उसको अधिक जटिल (और मेरे ख़याल से तो इस विषय में सम्भव है, भाई जी बनाने में ही सहायक हो सकता है। यहाँ एक बात और को कोई संदेह हो, अन्यथा सारा देश यह बात एक-स्वर विचारणीय है। जिन हितों की हिन्दू-सभा और मुसलिमसे कह चुका है) "तो उस हालत में कांग्रेस अपनी करबा- लीग रक्षा करना चाहती हैं वे वास्तव में उन्हीं उच्च और नियों पर काई गर्व नहीं कर सकती। और अगर यह मध्यम श्रेणी के हिन्दुओं और मुसलमानों से सम्बन्ध रखते विधान अच्छा है तो जैसा कि ऊपर कहा गया है, इसके हैं जिनको सरकारी नौकरियों, टाइटिलों और कौंसिलों तथा लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट ज़िम्मेदार है, क्योंकि ब्रिटिश गवर्न- असेम्बलियों की सीटों की ही विशेष चिन्ता रहती है। मेंट महायुद्ध की समाप्ति पर पार्लियामेंट में की गई अन्यथा आज तो प्रत्येक भारतवासी को रोटी का घोषणा के अनुसार भारत में एक प्रजासत्तात्मक विधान प्रश्न हल करने की सबसे बड़ी समस्या नज़र आती है प्रचलित करने के लिए बाध्य थी।"
और इस विषय में जाति और धर्म का भेद-भाव तो उठता ___इसके पहले कि हम भाई जी की इन धारणाओं को ही नहीं । आज एक हिन्दू किसान, मजदूर और व्यापारी ज़रा गौर से समझने की कोशिश करें, यह जान लेना अनु- भी उन्हीं आर्थिक कठिनाइयों का शिकार बना हुआ है चित न होगा कि भाई जी की विचारधाराओं के पं जिनका कि एक मुसलमान, सिख या पारसी। सबकी सी मनोवृत्ति कार्य करती रही है।
__ समस्या एक है, उसमें कोई विरोध देखना उस समस्या के
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