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घारावाहिक उपन्यास
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शनि की दशा
छळळळळळळच्छwwwwwwwwww
अनुवादक, पण्डित ठाकुरदत्त मिश्र राधामाधव बाबू एक बहुत ही आस्तिक विचार के आदमी थे। सन्तोष उनका एक मात्र पुत्र था। कलकत्ते के मेडिकल कालेज में वह पढ़ता था। वहाँ एक बैरिस्टर की कन्या से उसकी घनिष्ठता हो गई। उसके साथ वह विवाह करने पर भी तैयार हो गया । परन्तु वह बैरिस्टर विलायत से लौटा हुआ था और राधामाधव बाबू की दृष्टि में वह धर्मभ्रष्ट था इसलिए उन्हें यह सह्य नहीं था कि उसकी कन्या के साथ उनके पुत्र का विवाह हो। वे उस बैरिस्टर की कन्या की ओर से पुत्र की श्रासक्ति दूर करने की चिन्ता में पड़े ही थे कि एकाएक वासन्ती नामक एक सुन्दरी किन्तु माता पिता से हीन कन्या की ओर उनकी दृष्टि पड़ी। उन्होंने उसी के -साथ सन्तोष का विवाह कर दिया। परन्तु सन्तोष को उस विवाह से सन्तोष नहीं हुआ। वह विरक्त होकर घर से कलकत्ते चला गया। इससे राधामाधव बाबू और भी चिन्तित हुए। वे सोचने लगे कि वासन्ती का जीवन किस प्रकार सुखमय बनाया जा सके।
नवाँ परिच्छेद
कहनी हैं । क्या इस समय तुम सुनोगे ?” सन्तोष ने मस्तक
हिला कर अपनी सहमति सूचित की। तब वसु महोदय ने उपदेश
वहीं पर उसे बैठने को कहा और स्वयं भी उसके पास ही TRENEReड़े ज़ोरों की गर्मी थी। दो पहर रात बैठ गये।
व्यतीत हो चुकी थी। वायु नाम सन्तोषकुमार पिता का तार पाकर गाँव पाया था।
तक को नहीं चल रही थी। पूर्व उसको आये जब दो दिन बीत गये तब सदाशिव से उसने 16 के आकाश में चन्द्रमा उदित हो. कहा-"पिता जी ने मुझे क्यों बुलाया है, यह बात अब भी
pass आये थे। उनकी किरणें चाँदी की उन्होंने मुझे नहीं बतलाई । कल ही मैं चला जाऊँगा।" our COM चद्दर-सी बिछाकर चारों दिशाओं सदाशिव ने वसु महोदय के पास जाकर यह बात कह को उज्ज्वल कर रही थीं। एक घर के बरामदे में एक दी। उन्हें जब मालूम हुआ कि सन्तोष कलकत्ता लौट युवा पुरुष खड़ा था। ज्योत्स्ना के प्रकाश में अनिमेष दृष्टि जानेवाला है तब वे उसे खोजने के लिए आये। सामने से वह यमुना की तरङ्गों का नर्तन देख रहा था। ही बरामदे में वह उन्हें मिल गया । वसु महोदय ने उसे
वह युवा सन्तोष था। चन्द्रमा के प्रकाश में उसने बैठने को कहा। पिता-पुत्र दोनों ही चुप रहे । सन्तोष देखा कि समीप ही पिता जी खड़े हैं । उस समय उसको अपने आप कुछ बोलेगा, यह आशा उन्हें दिखाई पड़ी। . चिन्ता का वेग इतना प्रबल था कि वह पिता के आगमन उनका सन्तोष अाज इतना पराया हो गया कि दो बातें की ग्राहट नहीं पा सका । ज़रा दूर आगे बढ़ते ही उसने करके भी उन्हें नहीं तृप्त करना चाहता ! उनकी आँखों में सुना कि पिता उसे बुला रहे हैं । उसके समीप आते ही आँसुत्रों की धारा इतने प्रबल वेग से उमड़ पड़ी कि वसु महोदय ने कहा-"सन्तोष, तुमसे थोड़ी-सी बातें उसका संवरण करना उनके लिए असम्भव हो गया। पुत्र
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