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"सरस्वती
[ भाग ३८
हुए कि स्त्री को शिक्षा देना बिलकुल बुरा समझा आगे चल कर ये ढंग बदल गये। उस समय के जाता था । सुधारक पैदा हो गये और लेकचरबाज़ी काफ़ी नेताओं ने बधाई देनी छोड़ दी और साफ़ साफ़ शिकायत कर डाली। कुछ लोग उनकी बात मानकर लड़कियों करनी प्रारम्भ कर दी। अपने से पहले नेताओं का मज़ाक को पढ़ाने लगे। मगर उन सुधारकों की यह मंशा कभी उड़ाया। उनके बाद तीसरा दल आया जो गर्म कहलाने न थी कि लड़कियाँ उसी तरह की और उतनी ही शिक्षा लगा और सरकार के सामने माँगें पेश करने लगा। चौथे पावे, जैसी लड़के पाते हैं। उनमें से कोई तो इतनी शिक्षा ने असहयोग की धमकी दी और कर दिखाया। एक को देना चाहते थे कि स्त्री को घर के काम-काज में सुविधा दूसरा, दूसरे को तीसरा और तीसरे को चौथा डरपोक हो, कोई जो उनसे अधिक एक्ट्रीमिस्ट थे, केवल इतना बताया किये और यही कहा किये कि पहलेबाले बकबक चाहते थे कि उनकी लड़की अन्य पुरुषों से बातचीत कर के अतिरिक्त किसी मसरफ़ के नहीं थे। पुराने नेताओं सके और हो सके तो विदेशी भाषा में भी चटाख़-पटाख़ के अनुयायी अब तक उन्हीं शब्दों में याद किये जाते हैं । बोल सके। थोड़े से आदमी ऐसे भी थे जो उसे पुरुषों ज़रा गौर कीजिए और सोचिए कि बिना पहले के के बराबर शिक्षा देना चाहते थे। मगर वे भी यह नहीं शुरू किये और दबी ज़बान शिकायत किये चौथे तक सोचते थे कि वह पुरुष की बराबरी को तैयार हो जायगी। मामला पहुँचता हो कैसे ? बच्चा पैदा न हो तो कभी बड़ा ऐसे पुरुष मौजूद हैं जो यह कहते हैं कि स्त्री को पुरुषों के कैसे होगा ? वास्तव में कोई भी कायर न था, बिना कहे बराबर अधिकार होने चाहिए और ऐसी स्त्रियाँ भी हैं सुननेवाले कैसे सुनें और बिना सुने दूसरे कैसे जानें! जो यही बात कहती हैं। मगर शायद वे पुरुष और अगर हम कहें कि निरी बकवास भी इतनी बुरी चीज़ नहीं वे स्त्रियाँ यह बात ग़लत कहती हैं कि पुरुषों ने उनके जितना उसे कुछ लोग दिखाना चाहते हैं तो शायद ग़लत वास्ते कुछ नहीं किया। ऐसा कहनेवाले स्त्री-आन्दोलन न होगा। का इतिहास नहीं जानते।
अब राजनैतिक आन्दोलन ने फिर पलटा खाया है। ____ अगर किसी बुजुर्ग ने घरेलू शिक्षा देने की आवाज़ गर्म ही लोग एक-दूसरे को बुरा-भला कहने लगे हैं । न उठाई होती या यों कहें कि बकवास शुरू न की होती जो लोग मंत्रि-पद ग्रहण के विरोधी हैं वे उसके पक्षपातियों
और उनके बाद कुछ लोग और आगे न बढ़े होते तो को कमज़ोर और एक तरह से कायर समझने लगे हैं और अाज यह दशा न होती कि उन्हें इतना भी कहने का ये दोनों पुराने किस्म के लिबरल नेताओं को तो आरामसाहस होता । यह उन्हीं बकवासी लोगों . के पुण्य का फल कुर्सीवाले राजनीतिज्ञ समझते ही हैं। शायद यह ठीक है कि ऐसे लोग मौजूद हैं जो समानता की ध्वनि उठाये हुए भी है, क्योंकि वे सिवा गर्म लोगों को बुरा कहने के और हैं । उठावें, ज़रूर उठावें, ऐसा चाहिए भी, मगर उन लोगों ४०-५० वर्ष पहले के पुराने नेतानों की दोहाई देने के कुछ को जिन्होंने नींव डाली है, क्या बदनाम करना ज़रूरी है ? करते भी तो नहीं। वे यह भूले हुए हैं कि उस समय से जिन्होंने इतनी सहायता दी उनका दिल बेजा दुखाया पचास वर्ष अागे दुनिया जा चुकी है । मगर कांग्रेस के भीतरी, जाय, यह कहाँ का इन्साफ़ है ?
दोनों दलों में समानता होते हुए भी उनमें से एक दूसरे को गत पचास वर्ष का कांग्रेस का इतिहास देखा जाय, शुरू पिछड़ा हुअा दल समझता है जो उसकी राय में बोदा है। शुरू के नेताओं के व्याख्यान पढ़े जायँ, तो ठकुरसेाहाती की वास्तव में ऐसा नहीं है। अपने समय के प्रत्येक गंध उनमें अाती है । "सरकार ने किया तो बहुत कुछ और सुधारक-दल ने पूरा काम किया और अब भी कर हम इस पर उसे धन्यवाद देते हैं, किन्तु वह काफी नहीं है।" रहा है।
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