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सरस्वती
जागृति केवल महायुद्ध का परिणाम है, केवल विचारविश्लेषण की शक्ति का प्रभाव प्रकट करना है । और सत्याग्रह - श्रान्दोलन जहाँ एक और राजनैतिक जागृति का परिणाम था ( और वह जागृति कांग्रेस द्वारा उत्पन्न की गई थी, वहाँ यह भी मानना पड़ेगा कि इससे श्रागे के लिए राजनैतिक जागृति में बहुत कुछ वृद्धि भी हुई है । केवल एकतरफ़ा बात कह डालना तो ठीक नहीं ।
दूसरा प्रश्न कांग्रेस की कुरबानियों के बारे में उठता है । भाई जी का यह कहना तो ठीक ही है कि "इस प्रकार के त्याग का लाभ तब ही हो सकता है जब सत्य मार्ग पर चल कर ठीक उद्देश (राइट कॉज़) के लिए क़ुरबानी की जाय” । परन्तु उनका यह ख़याल कि कांग्रेस ने जो कुरबानियाँ की हैं वे न सत्य मार्ग पर हैं, न ठीक उद्देश के लिए, समझ में ही नहीं आता । भाई जी का 'सत्य मार्ग' और 'ठीक उद्देश' से क्या अर्थ है, यह सब उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है। कांग्रेस का उद्देश तो संसारविदित है । वह तो पूर्ण स्वतंत्रता के लिए कुरवानियाँ कर रही है कांग्रेस का मार्ग भी निश्चित है— सत्य और अहिंसा ।
भाई जी का ख़याल है कि कांग्रेस की मुसलमानों के प्रति जो सौदाबाज़ी की नीति रही है वह देश के लिए घातक सिद्ध हुई है । भाई जी का यह विचार उनके दृष्टिकोण के हिसाब से सर्वथा ठीक है, क्योंकि वे 'हिन्दु' और 'मुसलमानों' के हितों में विरोध मानते हैं और इस वास्ते उनमें सौदाबाजी का प्रश्न भी उठ सकता है । यही कारण है कि एक तरफ़ हिन्दू महासभा इस सौदाबाज़ी को अपने पक्ष में करना चाहती है तो दूसरी ओर मुसलिम लीग अपनी ओर ज़ोर लगाना चाहती है। फल वही होता है
साधना
लेखिका, श्रीमती दिनेशनन्दिनी चोरड्या
मैं चित्तवृत्तियों का निरोध करूँगी, बिखरी मन :शक्तियों को केन्द्रीभूत कर ध्यानावस्थित होऊँगी, संकल्प विकल्प से मुक्त पारदोज्ज्वल श्रात्मा में, मैं सूक्ष्म श्राकाश, चन्द्र और सूर्य ही नहीं देखूँगी, किन्तु श्रात्म-दर्शन भी कर सकूँगी, उस विचित्र दर्पण में भूत और भविष्य के
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[ भाग ३८
जो ऐसी परिस्थिति में सम्भव हो सकता है कि सौदा हो ही नहीं सकता ।
जैसा ऊपर लिखा जा चुका है, कांग्रेस की दृष्टि में तो हिन्दू और मुसलमानों का सवाल एक है। उनके हितों में विरोध नहीं और इस वास्ते वहाँ तो सौदाबाज़ी का प्रश्न ही नहीं उठता। इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने जिन चीज़ों में मुसलमानों से सौदा करना चाहा ( नौकरियाँ और कौंसिलों की बैठकें ) उनका हिन्दु और मुसलमानों के हितों से कोई सम्बन्ध नहीं। मान लो, यदि हमारी धारासभात्रों के सब सदस्य मुसलमान जनता के सच्चे प्रतिनिधि हैं तो उनके लिए ऐसा क़ानून बनाना लाज़मी होगा जिससे मुसलमान किसानों और मुसलमान मज़दूरों और व्यापारियों को लाभ हो । पर उन क़ानूनों का लाभ मुसलमानों तक ही सीमित रह सकेगा? उनका लाभ तो हिन्दू किसानों और व्यापारियों को भी अवश्य ही मिलेगा। तात्पर्य यह है कि भाई जी की यह दलील भी ठीक नहीं मालूम होती । और यह कहना कि कांग्रेस में कुरबानियों के अतिरिक्त 'शोर' अधिक है, केवल अपने हाथ से अपनी आँखों पर बुर्का
ना है ।
अन्त में एक बात और रह जाती है और वह यह कि वर्तमान विधान में जो कुछ अच्छाइयाँ हैं वे सरकार की कृपा से । ठीक है, यदि भाई जी जैसे सज्जन ऐसा न कहेंगे तो और फिर कौन कहेगा ? वे यह भी इसके साथ कहते हैं। कि अगर नया विधान पहले से भी बुरा हैं तो वह कांग्रेस के कारण। यह भी ठीक है । जब बदनामी का दीका कांग्रेस के मत्थे लगाना ही है तब यह न कहा जायगा तो और क्या कहा जायगा ?
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चलचित्र ही नहीं देखूँगी, किन्तु मदान्ध और मोहान्ध प्राणियों को छोटी छोटी बातों के लिए मर मिटते देखकर आत्मग्लानि र अवज्ञा के मुख मोड़ लूँगी । मैं चित्तवृतियों का निरोध करूँगी !!!
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