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सरस्वती
[भाग ३८
तीन तामपत्रों में से पहला और तीसरा एक ही अोर लिखे गये हैं । और दूसरा दोनों ओर । यद्यपि सदियों से ये पत्र भूगर्भ में छिपे रहे, तो भी ज्यों के त्यों पढ़ने योग्य पाये गये हैं। नागपुर भेजे जाने पर वहाँ के संग्रहालय के क्यूरेटर श्री० एम० ए० सबूर ने उन्हें साफ़ कर लिया है और उनकी प्रतिलिपि भी छाप ली है।
ताम्र-लेख को नागपुर के मारिस-कालेज के प्रोफेसर श्री मिराशी और श्री लोचनप्रसाद जी पांडेय ने पढ़कर उसका सम्पादन किया है। उनका लेख 'एपीग्राफिया इंडिका' में शीघ्र छपेगा। श्री पांडेय जी ने ताम्रपत्रों की
प्रतिलिपि लेने की अनुमति दी थी, पर वे शीघ्र ही नागपुर [हनूमान् की मूर्ति
भेज दिये गये । हम लोग उन्हें देख भी न पाये। वाममार्गी और मराठे राजात्रों का राज्य रहा होगा। गाँव- ताम्रपत्रों पर संस्कृत के अक्षर जो पेटिका शीषक या सम्पुटवाले कहते हैं कि गढ़ के भीतर राजा लोगों के महल भी शिखा-लिपि के नाम से प्रख्यात हैं, खुदे हैं । यह लिपि 'वाकापहले रहे हैं, जिनका अब पता नहीं है। किले के चारों टक'-राजवंश के समय में ५०० ईसवी से ७०० ईसवी तक तरफ़ की चौड़ी खाई के अलावा पहले कई तालाब थे, पर मध्य भारत में प्रचलित थी। पत्रों पर लिपि अच्छे अक्षरों अब दो ही शेष है।
में और गहरी खुदी हुई है। लेख की भाषा संस्कृत है। यहाँ रूप भी बहुतायत से पाये जाते हैं। देखने में तीनों ताम्रपत्र ८४” लम्बे, ५” चौड़े और “१” मोटे बड़े भयंकर और अजगर जैसे मोटे हैं, पर किसी को सताते हैं। एक ही श्राकार के ये तीनों ताम्रपत्र एक गोल छल्लेनहीं। इनके मुख्य चार प्रकार हैं । इनसे गाँववाले बिल. द्वारा नत्थी किये हुए हैं। तीनों का वज़न १२३१ तोला कुल नहीं डरते। गाँव की पाठशाला के हेडमास्टर श्री है। गोलाकार मुहर ३५ व्यास की है । यह मुहर तीन कुमुदसिंह बतलाते थे कि खुदाई के समय बड़े बड़े नाग भागों में विभक्त है । ऊपरी भाग पर नन्दी बैल का उठावचारों प्रकार के निकले थे। गांववालों ने उन्हें पकड़- दार चित्र बना हुआ है। नन्दी के सामने त्रिशूल और कर दूध पिलाया था, उनकी पूजा की थी और छोड़ कमंडलु बना है। चित्र के नीचे कुछ खुदाव है और दो दिया था।
दाई के समय तीन ताम्र-पत्र जो एक कड़े या छल्ले से नत्थी थे, पाये गये हैं। साथ ही एक गोल मुहर भी मिली है। मुद्रा और ताम्रपत्र मलार के मालगुज़ार श्री सुधाराम जी द्वारा विलासपुर सेण्ट्रल बैंक के मैनेजर बाबू प्यारेलाल गुप्त के पास भेजे गये थे। गुप्त जी 'महाकासलइतिहास-समिति' के सहायक मन्त्री हैं।
गुप्त जी ने इन चीज़ों को पंडित लोचनप्रसाद पांडेय के पास भेजा। पांडेय जी उक्त समिति के मन्त्री हैं । आपने ताम्रपत्रों को पढ़ा और भापान्तर किया और फिर गुप्त जी के द्वारा विलासपुर के डिप्टी कमिश्नर मिस्टर के० एन० नगरकट्टी के पास भेज दिया। ये सब चीजें _ [गाँव में एक मकान की दीवार में लगी हुई अब नागपुर-म्यूज़ियम में रक्खी गई हैं।
एक दिगम्बर मूर्ति
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