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संख्या ५]
मडेरा
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मद्देश में ज्वालामुखी पहाड़ तथा उनके बाहों में ग्राबादी है । जब नौ विद्या की अधिक उन्नति नहीं हुई थी तब ०-५१ बजे रात्रि को हम लोग मडेरा पहुँच जायँगे । सकड़े जहाज उसके विशाल कुन में विलीन हो गये थे। लगातार १० दिन तक समुद्र तल पर रहने के कारण सभी अब वह भय उस मात्रा में नहीं है. फिर भी अन्य सागरों को भूमि के दर्शन की उत्कण्ठा थी। हम लोगों ने अव की अपेक्षा अटलांटिक की गहराई की अामा मिल ही अटलांटिक महासागर के से अधिक भाग को पार कर जाती है। पैगमारियो से जहाज छुटने ही कुछ दूर तक लिया था । अफ्रीका का पश्चिमी तट कुछ ही मील शेष जल मटमैला मिला । पर ज्या ज्या जहाज़ आगे बढ़ता रह गया था। एकाएक डेक पर खड़े हुए यात्रियों में अजीय जाता था, जल की अवस्था भी बदलती जाती थी । हज़ारों प्रसन्नता छा उठी। लोग अपने अपने केविन को छोड़कर मील तक जहाज़ निकल पाया होगा, पर पृथ्वी-तल का डेक पर या इंटे। सबका ध्यान एक दूरस्थ क्षीग ज्योति कहीं दशन नहीं हुया।
की ग्रोर लगा था। वस्तुत: वह मडेरा के प्रकाश-स्तम्भ की पैगमावि सं चलते समय यह मालूम हो गया था ज्योति थी। कि २३ तारीख के पूर्व पृथ्वी का दर्शन होना कठिन है। जहाज़ प्राग बढ़ता चला जाता था, लाइट हाउस की समस्त अटलांटिक महासागर पार करने पर केवल मडेरा ज्योति भी निखरती जाती थी। लगभग १ घंटे के पश्चात् नाम का द्वीप रास्ते में मिलता है । २३ तारीख को सायं. हम लोग मडेरा पहुँच गये। रात्रि के दस बजे थे । सामने काल यह सूचना जहाज़ में दे दी गई थी कि लगभग मडेरा की राजधानी फन्चल नगर ज्योति-समूह से बालो.
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