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. संख्या ५]
मडेरा
मडेरा अादि देशों से ही इसकी पूर्ति की जाती है। ब्दियों तक बोलबाला रहा है। उनकी विद्या और कला ट्रिनिडाड में रहते समय मडेरा के बालू से मुझे की अाज तक स्पेन पर छाप है, अतः यह अनुमान किया जा नफ़रत-सी हो गई थी। उसमें भारत के अालू जैसा स्वाद सकता है कि जारको के समय में मूरिश-कला का प्राधान्य नहीं था। पर वहाँ के लोग उसे बहुत प्यार से खाते थे। रहा है, जिसकी छाप स्वयं उसकी कब्र पर है। मडेरा की मि फल-फल के लिए उपजाऊ है। अंगर अटलांटिक महासागर में जितने द्वीपसमूह हैं वे के अतिरिक्त और भी फल होते हैं।
सभी जलक्रीड़ा के लिए अच्छे हैं । द्वीप के चारों ओर अन्य व्यवसायों में यहाँ की बेत की कुर्सियाँ प्रसिद्ध महासागर की लहरें आकर टकराती हैं। उनकी उत्तुङ्ग हैं । ये बेंत की कुर्सियां यहाँ से वनकर समीपवर्ती सभी लहरों में स्नान करने के लिए तट पर कई उपयुक्त स्थल देशों में जाती हैं । स्पेन और पोर्चुगाल तक में इनकी चुन लिये जाते हैं, जहाँ कुछ कृत्रिम उपकरण जुटा लेने से अच्छी खपत होती है। ये 'मडेरा चेयर्स' के नाम से स्थान की उपयोगिता बढ़ जाती है। जहाँ स्नान करने के प्रसिद्ध हैं । बैतों का जंगल मुझे स्वयं देखने का अवकाश लिए स्थान चुना जाता है, वहाँ तट पर छोटे-छोटे कमरे नहीं मिला, पर यूछने पर मालूम हुया कि द्वीप के अन्य बने होते हैं जिनमें लोग अपने कपड़े बदल कर जल में भागों में मीलो तक वेतों का जंगल चला गया है और इसी स्नान करते हैं और फिर जाकर कपड़े बदल लेते हैं । के साथ हज़ारों मडेरावासियों को जीविका लगी है। मडेरा में दो प्रकार के स्नानों के लिए सुविधा है; ____ मडेरा को खोज निकालनेवाले ज़ारको थे । जिस एक धूप स्नान और दूसरा जल-स्नान । धूप स्नान के लिए समय वे मडेरा में पहुंचे, वहाँ न सभ्यता का कोई चिह्न कई ऐसे स्थान चुने गये हैं जो समुद्र-तट की अोर चट्टानों था, न उस द्वीप से भविष्य में कुल अाशा ही से घिरे हैं और इन चट्टानों के पीछे थोड़ी सी समतल की जा सकती थी। पर पोचुगीज़ लोगों ने उसी द्वीप का भमि है। इस घासदार भमि को फूलों और अन्य वस्तुओं स्वर्गीय-सा बना दिया है । जारको की कन आज तक बनी से सजाकर एक सुन्दर उपवन का रूप दे दिया जाता है । हुई है, जिसे देखने को दर्शक लोग जाते रहते हैं । इस कन पुरुष और महिलायें अर्थ नमावस्था में होकर इन स्थानों के ऊपर महराय और दीवार की नक्काशी ध्यान देने योग्य पर लेटकर धूप-स्नान करती हैं । यहाँ सूर्य की किरणें है । इसे देखकर भारत के किसी मुग़लकालीन मकबरे प्रखर नहीं होतीं । समुद्र की लहरें तटवर्ती चट्टानों से का स्मरण हो पाता है। वास्तव में इसकी बनावट में टकराती हैं और उनसे मिले हुए वायु के झकोरे जलमरिश कला के चिह्न हैं । स्पेन में मूर लोगों का शता- शीकर से भरे रहते हैं । यही वायु धूप-स्नान करनेवालों
Vehe
wherana
[दिन में फुन्चल नगर की शोभा]
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