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सरस्वती
. [भाग ३८
. पल बोर्ड श्रादि सरकारी व नीम सरकारी संस्थात्रों को अभाव में भी बहुत सी कम्पनियां खड़ी हो जाती हैं और बाधित कर सकती है कि वे बीमा की सब रकमें देशी पीछे काम न चलने पर बैठ जाती हैं। कुछ ने तो और कम्पनियों में जमा करें। देशी कम्पनियों का विदेशी कोई रोज़गार न देखकर बीमा कम्पनी खोलने का बीड़ा ले कम्पनियों के ऊपर वर्चस्व और श्रेष्ठता स्थापित करने के रक्खा है । इसका फल यह होता है कि ऐसे अनुत्तरदायी लिए यह भी आवश्यक है कि इस देश में बीमा का काम लोगों के उठाये काम के फेल हो जाने से सारे व्यवसाय करनेवाली विदेशी कम्पनियाँ अपना बीमा देशी कम्पनियों को धक्का लगता है । यद्यपि नये बिल में यह व्यवस्था की में करें। इसी प्रकार अन्य उपायों द्वारा सरकार देशी गई है कि जीवन बीमा का काम प्रारम्भ करने से पहले बीमा कम्पनियों को संरक्षण दे सकती है। यह कहना कम से कम दो लाख रुपया सरकार के पास जमा कराना कि देशी और विदेशी कम्पनियों की होड़ अनुचित और ५० हज़ार से काम चालू करना होगा। हम चाहते तरीके पर नहीं चल रही है, ठीक नहीं है। यह सम्भव हैं कि बीमा कम्पनी की पूँजी चार ताल के अन्दर दो है कि यह सच हो कि विदेशी कम्पनियाँ अनुचित लाख हो जानी चाहिए। ऐसी एक धारा बिल में जोड़ बगैर कानूनी साधनों, व उपायों का मुकाबिले में सहारा न दी जाय । कम्पनी के जीवन के स्थायित्व के लिए यह लेती हों। विदेशों की अपेक्षा यहाँ दर उन्होंने न गिराई आवश्यक है। जीवन-बीमा का सम्बन्ध एक व्यक्ति से हो, एजेण्टों को भी वे देशी कम्पनियों की अपेक्षा अधिक व इसी जीवन से नहीं, अपितु एक परिवार और इस जीवन कमीशन न देती हों। मगर नये बिल के द्वारा एजेण्टों के बाद के जीवन से भी है। इसका सम्बन्ध वस्तुतः सारे के कमीशन की दर का निश्चित किया जाना इस बात राष्ट्रीय व सामाजिक जीवन से है। इसलिए यह जरूरी है। का सूचक है कि प्रतियोगिता अनुचित ढंग पर चल रही डिपाजिट की रकम दो लाख रखकर कम्पनी के जीवन है। यह सब न भी हो, तो भी यह मानना होगा कि दोनों को स्थायी बनाने का यत्न किया गया है और यह उचित समान स्थिति में नहीं हैं। उचित प्रतियोगिता उन्हीं के है। पूँजी थोड़ी होने की हालत में डिपाजिट की रकम बीच कही जा सकती है जो समान बल और समान स्थिति का ज़्यादा होना बीमा करानेवालों के लाभ की दृष्टि से के हों। इस दृष्टि से देखने पर मालूम होगा कि भारतीय उचित ही है। बीमा-कम्पनियाँ मासूम बच्चे हैं। इसके मुकाबिले में विदेशी नवीन कम्पनियाँ अधिक मात्रा में काम प्राप्त करने के कम्पनियों को यह व्यवसाय करते हुए बहुत साल हो गये लिए एजेण्टों को कमीशन भरपूर देती हैं । एजेण्ट भी हैं। उनका विश्वव्यापी संगठन है और विश्वव्यापी काम पाने के प्रलोभन में मित्रों, सम्बन्धियों, रिश्तेदारों तथा व्यापार है। इसके मुकाबिले में अधिकांश भारतीय बीमा- अन्य व्यक्तियों को बीमा कराने के लिए बाधित करने के कम्पनियों का व्यवसाय किसी प्रान्त की सीमा से भी आगे लिए उनको अपने कमीशन में से कुछ हिस्सा दे देते हैं, नहीं बढ़ा है। इसलिए देशी बीमा कम्पनियों को सरकार- और बहुत बार तो अपना हिस्सा कतई छोड़ देते हैं, द्वारा संरक्षण अवश्य मिलना चाहिए ।
और कई तो पहली बार का प्रीमियम तक अपने पास से आन्तरिक बाधायें
दे देते हैं । इसका परिणाम यह होता है कि बीमा करानेविदेशी कम्पनियों की तीव्र प्रतियोगिता के अतिरिक्त वाले कुछ साल के बाद प्रीमियम देना बन्द कर देते हैं । भारतीय बीमा-व्यवसाय की उन्नति में दूसरी रुकावट आन्त- १९२९ में ऐसे लोगों की संख्या ३० प्रतिशत और १९३२ रिक बाधाये हैं। भारतीय कम्पनियों की पूँजी थोड़ी है। में इनकी संख्या ४६ प्रतिशत थी । यह बढ़ती हुई संख्या इसी का परिणाम है कि पिछले दस वर्षों में स्थापित बहुत- बता रही है कि इसको रोकने के लिए कानून की आवश्यकता सी कम्पनियों के पाँव अभी जमे नहीं, कुछ एक ने मुनाफ़ा है। एजेण्टों के लिए लाइसेन्स की व्यवस्था करने और अभी नहीं बाँटा है, और पिछले पाँच वर्षों में स्थापित एजेण्टों के कमीशन और रिबेट की दर निर्धारित कर देने कम्पनियों में से कई ने अपना काम-धन्धा बन्द कर दिया से अाशा है, बिल इस बुराई को कम करने में सहायक है। इसका कारण यही है कि देखादेखी पर्याप्त पूँजी के होगा।
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