________________
संख्या ५]
सम्राट् का कुत्ता
- एक घंटे के बाद उसी जगह कई पुलिस-कर्मचारी गई थी, उसी ओर बिना जवाब दिये चल दिया। पुलिस
आये। सबके चेहरे पर गंभीरता टपक रही थी, सभी कर्मचारियों ने भी उसका अनुसरण किया। चिन्ता-सागर में गोते लगा रहे थे, भावी अमंगल की
आशंका से कांप रहे थे । जमादार उस वक्त भी वहाँ मूंछों दो दिवस पश्चात् अख़बार में मोटे-मोटे टाईप में यह पर ताव देता हुआ चहलकदमी कर रहा था। उसे देख समाचार प्रकाशित हुआ था--"सिपाही और मेहतर को एक पुलिस-कर्मचारी ने पूछा- "श्रो जमादार, क्या तुमने तीन और छः मास का क्रमशः सपरिश्रम कारावास, जमामहाराज के कुत्ते को देखा है ?"
दार बर्खास्त, और नगरपाल के ऊपर पांच सौ मुद्रा का जमादार के मुँह से एक शब्द भी न निकला। उसकी जुर्माना अन्यथा एक मास जेल ।"* जवान को मानो लकवा मार गया। क्या स्थिर न कर सका। फिर जल्दी से जिधर कुत्तों की गाड़ी * एक रूसी कहानी के आधार पर-लेखक ।
यह
-
मानव
लेखक, श्रीयुत महेन्द्रनारायणसिंह 'पथिक' हो तेरा यौवन अक्षय
हो अग्नि-पुंज का क्रूर-ज्वाल ओ मेरे मानव निर्भय !
तुम विश्व-राज्य का अग्रभाल तू आदि और तू अन्त, जगत
कौतुक हो, जग का विस्मय -के, गौरव गरिमा, अचल रूप,
ओ मेरे मानव निर्भय ! तू है अतीत औ वर्तमान
तुम अमर शक्ति, रचना विचित्र -के, चिर-बन्धन शृंखल अनूप ।
तुम देवलोक प्रतिमा पवित्र ।. लय होकर भी सदा अलय
· हो ज्ञान-कोष-कर्ता महान ओ मेरे मानव निर्भय !
सुख अभिलाषा का रूप म्लान। तुम विश्व-चमन के चारु चयन
नव भावों के नव किशलय तुम क्रान्ति-जननि के अरुण-नयन ।
ओ मेरे मानव निर्भय !
.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com