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मानव
लेखक, श्रीयुत भगवती चरण वर्मा
( १ ) जब कलिका को मादकता में हँस देने का वरदान मिला, जब सरिता की उन बेसुध - सी लहरों को कल-कल गान मिला, जब भूले से भरमाये से. भ्रमरों को रस का पान मिला,
हम मतों का हृदय मिला मर मिटने का अरमान मिला !
पत्थर-सी इन दो आँखों को जलधारा का उपहार मिला, सूनी-सी ठंडी श्वासों को फिर उच्छवासों का भार मिला, युग-युग की इस तनमयता को कल्पना मिली, संचार मिला, तब हम पागल से भूम पड़े जब रोम-रोम को प्यार मिला ! भूखण्ड मापनेवाले इन पैरों को गति का भान मिला, ले लेनेवाले हाथों को साहस बल का सम्मान मिला, नभ लूनेवाले मस्तक को निज गुरुता का अभिमान मिला, पर एक आप सा हाय हमें सहसा सुख दुख का ज्ञान मिला ! ( २ ) मरुको युग-युग की प्यास मिलीपर उसको मिला प्रभाव कहाँ ? पिक को पंचम की हूक मिलीमर उसको मिला दुराव कहाँ ? . दीपक को जलना जहाँ मिला पर उसको मिला लगाव कहाँ ?
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निर्भर को पीड़ा कहाँ मिली ? पत्थर के उर में घाव कहाँ ? वारिदमाला से ढँकने पर रवि ने समझा अपमान कहाँ ? नगपति के मस्तक पर चढ़कर हिम ने पाया सम्मान कहाँ ? मधुऋतु ने अपने रंगों पर करना सीखा अभिमान कहाँ ? कह सकता है कोई किससे कब कसका है अज्ञान कहाँ ?
बेड़ों को करके ग़र्क़ किया लहरों ने पश्चात्ताप कहाँ ? वृक्षों ने होकर नष्ट दिया तूफ़ानों को अभिशाप कहाँ ? पानी ने कत्र उल्लास किया पटों ने किया विलाप कहाँ ? बादल ने देखा पुण्य कहाँ ? दावा ने देखा पाप कहाँ ?
( ३ )
पर हम मिट्टी के पुतलों को जब स्पन्दन का अधिकार मिला, मस्तक पर गगन असीम मिला फिर तलवों पर संसार मिला, इन तत्त्वों के सम्राट बने जिनका हमको आधार मिला, पर हाय सहसा वहीं हमें यह मानवता का भार मिला !
जल उठी हम की ज्वाल वहीं जब कौतूहल- सा प्राण मिला, हम महानाश लेते आये जब हाथों को निर्माण मिला,
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