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गोराँ धाय का अपूर्व त्याग
लेखक, कुँवर चाँदकरण जी, शारदा बी० ए०, एल-एल० बी०, एडवोकेट
जिज के लिए अपूर्व
न राजभक्त महि
लेली गई । तब राठौड़ दुर्गादास व लाओं ने देश
चांपावत सोनंग आदि सरदारों ने
किसी ढंग से बालक राजकुमार अजीतसाहस और
सिंह को बादशाह के पंजे से निकालना अात्म त्याग का
चाहा। उस साहस के कार्य में गोरों - परिचय दिया है उनमें जोधपुर की
धाय ने प्रमुख भाग लिया और बालक गोरों धाय का नाम प्रसिद्ध है। यह
महाराज के प्राणों की रक्षा के लिए वीराङ्गना गढमंडोवर के गहलोत
अपने पुत्र की बलि दे दी। यह घटना गोपीजी के ज्येष्ठ पुत्र धाो मनोहर जी
इस प्रकार हैभलावत की धर्म-पत्नी थी, और सैनिक
बादशाह औरंगजेब ने जोधपुरक्षत्रिय-जाति के टांक-कुल की थी।
राज्य को हड़पने के लिए महाराज मनोहर जी को राज्य में 'मेहतर'* की उपाधि थी, जैसा की मृत्यु के बाद जन्मे हुए राजकुमारों को औरस नहीं
जनरेश महाराज अजीतसिह जी के लिखे हुए ख़ास माना ओर उन पर अपना कब्ज़ा करना चाहा। एक रुक्का से प्रकट होता है। यह गोरों देवी महाराज राजकुमार का तो काबुल से दिल्ली पहुँचने पर स्वर्गजसवंतसिह जी के राजकुमारों की धाय थी।
वास हो गया। उधर रानियों व राठौड़ सरदारों को जब संवत् १७३५ में जोधपुर-नरेश महाराज जसवन्त- बादशाह के रंग-ढंग को देखकर सन्देह हो गया। सिह जी का स्वर्गवास काबुल के माग में जमरूद के थाने इसलिए राठौड़ दुर्गादास प्रादि सरदारों ने राजमें हो गया और बादशाह औरङ्गज़ेब की आज्ञा से उनकी कुमार अजीतसिह को शाही पहरे से जैसे-तैसे निकालकर रानियाँ अादि जब वहाँ से चलकर दिल्ली पहुंची तब वे मारवाड़ की तरफ़ भेजने का उपाय किया । राजकुमार की सब राजकुमार अजीतसिह के सहित दिल्ली में शाही पहरे में धाय गोरों को भंगिन का स्वाँग भराकर उसकी टोकरी में
मेहतर' राजकर्मचारियों का एक बड़ा अोहदा था, अजीतसिह जी को सुलवाकर.ज्यों-त्यों पहरे के बाहर निकाल जिसका अपभ्रश 'मेहता' (मेता) है। ब्राह्मण, महाजन, देना तय हुआ।
जर ग्रादि जातियों के कई पुरुषों के नामों के इस निश्चय के अनुसार संवत् १७३६ की सावन बदी साथ मेहता की उपाधि अब तक है। बादशाही जमाने में २ को धाय ने अपने बालक पुत्र को राजकुमार की जगह बड़े लोगों को 'मेहतर' कहते थे, जैसे मेहत्तर इब्राहीम, सुला दिया और राजकुमार अजीतसिंह को एक टोकरी मेहत्तर इस्माईल वगैरह । फारसी किताबों में तो पैग़म्बरों में लेटाकर और उसके ऊपर कूड़ा-कचरा बिखेर कर मंगिन के नाम के साथ मेहतर की पदवी लगी हुई है । बिलोचि- के भेष में उसे शाही पहरे से बाहर पहुँचा दिया और स्तान की चित्राल-रियासत के मुसलमान राजा आज भी बच्चे को मुकुन्ददास खींची के सुपुर्द कर दिया। मुकन्ददास
चतराल का मेहत्तर' कहलाते हैं । देखो मारवाड़ मदमशु- सपेरे का स्वाँग भरे हुए उस डेरे से कुछ दूर बैठा हुआ मारी रिपोर्ट सन् १८९१ ई०, तीसरा भाग, पृ० ५४८ तथा था। स्वामिभक्त मुकुन्ददास खींची राजकुमार को अपने महामहोपाध्याय रायबहादुर पण्डित गौरीशंकर हीराचन्द पिटारे में रखकर मौखर बजाता हुआ मारवाड़ की तरफ़ अोझा-कृत 'उदयपुरराज्य का इतिहास' पृष्ठ ९९, सन् चल पड़ा। १९२८ ई०।
इस घटना के दूसरे ही रोज़ बादशाह को सन्देह हुआ
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