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गँगों को बोलना सिखाना बड़े पुण्य और महत्त्व का काम है । इससे गूँगे बालकों तथा बालिकाओं का जीवन सफल और सुखी हो जाता है। थोड़े ही दिनों में वे पशु से मनुष्य हो जाते हैं। अपने हृदय के भावों को वाणी द्वारा प्रकट करने लगते हैं और दूसरों की बात को केवल देखकर समझ जाते हैं । विशेषतः गँगी कन्यात्रों को तो
सरस्वती
वश्य बोलना सिखाना चाहिए, क्योंकि उनके ऊपर एक भावी परिवार का सुख-दुःख निर्भर होता है और स्वयं उनका भी भविष्य बहुत कुछ इसी पर अवलम्बित होता है।
प्रवासी भारतीयों पर और भी संकट दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के साथ जो व्यवहार समय समय पर वहाँ को सरकार करती है वह प्राय: अपमानजनक और अन्याय- पूर्ण होता है। हाल में वहाँ की यूनियन - पालियामेंट में तीन बिल पेश किये गये हैं। उनका उद्देश भी यही है । इस पर एक सम्पादकीय नोट में 'भारत' लिखता
हाल में दक्षिण अफ्रीका की यूनियन - पालियामेंट में तीन बिल पेश किये गये हैं, जिनका उद्देश भारतीयों का अपमान करने तथा उन्हें हानि पहुँचाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । एक का उद्देश तो यह है कि योरपियों और एशियाटिक (अर्थात् भारतीयों) के बीच विवाहसम्बन्ध न हो सके, दूसरे बिल का अभिप्राय यह है कि एशियाटिक लोग अँगरेज़ों को अपने यहाँ नौकर न रख सकें और तीसरे बिल का उद्देश सम्भवतः यह है कि जो • योरपीय स्त्रियाँ एशियाटिकों से विवाह ट्रान्सवाल में सम्पत्ति की स्वामिनी न हो सकेंगी। दो विभिन्न जातियों के व्यक्तियों के बीच विवाह सम्बन्ध स्थापित होना अधिकांश लोगों की दृष्टि में वांछनीय नहीं होता । योरपीयों और भारतीयों के बीच होनेवाले विवाह जिस प्रकार अधिकांश योरपीयों को पसन्द नहीं हैं, उसी प्रकार अधिकांश भारतीयों को भी नापसन्द ही हैं । फिर भी ऐसे विवाहों को रोकनेवाले क़ानून का बनाया जाना भारतीयों के लिए अपमानजनक है, क्योंकि क़ानून के बनाने
कर लेंगी वे
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[ भाग ३८
वाले होंगे केवल गोरे लोग और वे जिस भावना से प्रेरित होकर कानून बनाना चाहते हैं वह केवल यही है कि काले भारतीय गोरे योरपीयों की तुलना में एक नीची जाति के हैं, इसलिए दोनों के बीच विवाह-सम्बन्ध न होना चाहिए । भारतीय योरपीयों को अपने यहाँ नौकर न रख सकें, इस आशय का बिल तो भारतीयों के लिए केवल अपमानजनक ही नहीं, उन्हें आर्थिक हानि पहुँचानेवाला भी होगा । बहुत से भारतीय व्यवसायियों तथा दुकानदारों के ग्राहकों में योरपीय भी हैं और अपने गोरे ग्राहकों की सुविधा के लिए वे अपने यहाँ गोरे पुरुषों या स्त्रियों को नौकर रख लेते हैं । इसके जो लोग क़ानून द्वारा रोकना चाहते हैं उनका अभिप्राय केवल यही नहीं है कि गोरों की कालों के यहाँ नौकरी करने के अपमान से रक्षा करें, उनका अभिप्राय यह भी है कि जब भारतीयों की दूकानों में योरपीय कर्मचारी न रहेंगे तब बहुत कुछ टूट जायेंगे, जिससे उनके व्यवसाय की हानि होकर उनके
योरपीय व्यवसायियों का लाभ होगा। तीसरे बिल के सम्बन्ध में कुछ विशेष कहने की आवश्यकता नहीं क्योंकि वह पहले बिल का ही एक रूपान्तर है ।
शायद पहला बिल तो आगे न बढ़ाया जायगा, परन्तु बाकी दो विल तो सेलेक्ट कमिटी के सुपुर्द हो गये हैं । भारतीय लोकमत यह आशा रखता है, और उसे यह शा रखने का अधिकार है कि भारत सरकार इस मौके पर कमज़ोरी न दिखायेगी और यूनियन सरकार तथा ब्रिटिश सरकार पर इस बात को ज़ोर के साथ ज़ाहिर कर देगी कि भारत इस प्रकार के कानूनों का बनना सहन करने को कदापि तैयार नहीं है
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कुछ चेष्टा और कुछ कार्य !
'इंडियन टी मारकेट एकस्पेंसन बोर्ड' के भारतकमिश्नर ने हमारे पास एक पर्चा प्रकाशनार्थ भेजा है, जिसका एक अंश यह
है-
भारतीय चाय -- ये दो शब्द पारिवारिक सुख-सुवि धात्रों का कैसा सुन्दर चित्र आँखों के सामने स्वन्चित कर देते हैं ! चायदानी की सनसनाहट और प्यालों को मननाहट के बाद चाय से भरी हुई तश्तरी के साथ कमरे से सरल शान्ति का प्रवाह फूट पड़ता है ।
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