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बजा
सम्पादक .
পল্লি জুলাভৱ জঙ্গিলা
देवीदत्त शुक्ल श्रीनाथसिंह मई १९३७ }
भाग ३८, खंड १ संख्या ५, पूर्ण संख्या ४४९
वैशाख १६६४
.
भविष्य .
लेखक, ठाकुर गोपालशरणसिंह जीवन का संघर्ष जगत् से,
निज अतीत का दृश्य चित्त पर, बढ़ता ही जाता है।
अङ्कित ही रहता है। निठुर सत्य का रङ्ग चित्त पर,
हृदय न जाने क्यों सदैव ही, चढ़ता ही जाता है।
शङ्कित ही रहता है। अनायास ही अभिलाषायें,
अन्धकारमय ही भविष्य का, मिटती हैं बेचारी।
चित्र नजर आता है। आशा भी करती रहती है,
धीरे धीरे भाग्य-विभाकर, जाने की तैयारी।
अस्त हुआ जाता है।
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