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सरस्वती
पण्डित अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिग्रोध'
था । तथापि हिन्दी प्रेमियों के लिए यह सन्तोष की बात
[ भाग ३८
होगी कि हरिऔध जी को उनकी वृद्धावस्था में यह सम्मान वर प्राप्त हो गया ।
स्वर्गीय डाक्टर त्रिलोकीनाथ वर्मा
खेद का विषय है कि गत फ़रवरी मास में हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक डाक्टर त्रिलोकीनाथ वर्मा का स्वगवास हो गया । मृत्यु के समय वे बिजनौर में सिविल सजन थे । वर्मा जी ने हिन्दी में 'हमारे शरीर की रचना' नामक पुस्तक लिखकर अच्छी ख्याति प्राप्त की थी 1 उनकी इस कृति पर सं० १९८३ वि० में १२००) रुपयों का 'मंगलाप्रसाद पुरस्कार' देकर वे पुरस्कृत किये गये थे 1 काशी - नागरी प्रचारिणी सभा से भी उनकी यह कृति सं० १९८० वि० में ही पुरस्कृत हो चुकी थी । परन्तु वर्मा जी के लिए इन पुरस्कारों से भी अधिक गौरव की बात थी उनकी इस कृति की लोकप्रियता । यह पुस्तक पहले-पहल सन् १९१६ में प्रकाशित हुई थी । तब से आज तक इसके पाँच संस्करण हो चुके हैं। छटा संस्करण प्रयाग के इंडियन प्रेस में छप रहा है । किन्तु इसके तैयार होने से पहले ही वर्मा जी का अकस्मात् स्वगवास हो गया । वर्मा जी के निधन के कारण हिन्दी का एक बहुत बड़ा सेवक उठ गया । अस्तु, हम दिवगत, आत्मा की सद्गति तथा कुटुम्बयों के शान्ति-लाभ के लिए भगवान् से प्रार्थी हैं ।
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