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संख्या ४ ]
जापान में मोतियों की खेती
है कि परश्या या किसी प्रकार का सन तारित कर दिये जायें।
के भीतर
सुरक्षि अपने अन्दर प्रविष्ट किये गये विजातीय द्रव्य का दमन करने के लिए एक प्रकार का तरल पदार्थ अपने शरीर के भीतर से निकालते हैं और उसकी उस द्रव्य के ऊपर परतों में लपेटने चले जाते हैं। इस प्रकार सांप के हृदय में मोती बनने का जो कार्य आरम्भ होता है वह था वैसा ही होता है जैसा कि प्राकृतिक अवस्था में हुआ करता है। प्रतिवर्ष एक बार ये सीप परीक्षा के लिए रानी की सतह पर लाई जाती है, उनकी खोल की सफाई की जाती है और घास या कोई श्रादि जो उन पर उग कर उनकी बाढ़ को रोक सकते हैं वे खुरचकर हटा दिये जाते हैं।
[श्रीयुत को किची मिकीमोटो । जापान में मोतियों की शेप में से जब मोती निकाल लिये खेती का आविष्कार इन्हीं महोदय ने किया है ।]
इस वर्णन से यह न समझिए कि यह कार्य बड़ा सरल होता है । इस प्रकार सीप उत्पन्न करनेवालों को जिन
[टोवा के मोतियों के कारखाने में मोतियों में सुगब किये जा रहे हैं ।]
विना और जाम का सामना करना पड़ता है उनकी गिनती नहीं है | बहुत सी ऐसी श्रापदायें भी याती रहती हैं जिनको वश में करना मनुष्य की शक्ति के बाहर हो जाता है। कभी कभी समुद्र में भयङ्कर तूफान याने हैं, जोन के नहा ले जाने है। कभी कभी शीनकाल में पानी की सतह के भीतर ऐसीट दी जाती है कि सीपी दौड़ का जीवित रखना असम्भव हो जाता है। इन खेतों पर कार्य करनेवालों को ऐसे ही न जाने कितनी मुसीबतों का रोज़ सामना करना पड़ता रहता है।
इस अवस्था में सात वर्ष रहने के पश्चात् यदि सीप जीवित है तो उनके मोती निकल सकते है। परिस्थिति के अनुसार ये मोती और चमकदार या मलिन और भरे भी हो सकते हैं ये बहुमूल्य भी हो सकते हैं और निकम्मे भी कभी कभी ऐसा भी होता है कि किसी किसी सांप से मोती निकलते ही नहीं उत्पादको की इन सब बातों के लिए तैयार रहना पड़ता है।
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इन सात वर्षों के समय में समस्त प्रकार की सावधानी बर्तने पर भी लगभग २० प्रतिशत सोपे मर जाती हैं । जब अन्तिम बार सीपेची जाती है तब प्रायः देखने में याता है कि लगभग २० प्रतिशत में मोती बने ही नहीं ।
जाते हैं तब मोतियों की जो कड़ी परीक्षा की जाती है उसमें सिर्फ ४ या ५ प्रतिशन स्वरे उतरते है।
जापान की मिकीमोठी प्रयोगशालाओं में व्यापार
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