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सामयिक साहित्य
अमरीका में महात्म गांधी के विरुद्ध प्रचार जनता की नज़रों में मेरी सारी साख मिट्टी में मिल सकती
अमरीका में महात्मा गांधी के विरुद्ध आज-कल है तो ऐसी साख का मल्य ही क्या है ? पर मैं तो फिर यह प्रचार किया जा रहा है कि वे हरिजनों का पशु कहंगा कि मेरी उपमा केवल निर्दोप ही नहीं बल्कि विलसमझते है । इसका उद्देश कदाचित् यह है कि जब कुल उपयुक्त भी है। इस उपमा की निदोपता तब फ़ौरन अमरीका की जनता को यह मालूम होगा कि हरि- समझ में आ जायगी जब कोई यह समझ ले कि हिन्दुजनों के बारे में महात्मा गांधी जैसे विश्व-वन्द्य स्तान में गाय किस अपूर्व श्रद्धा और भक्ति की दृष्टि हिन्द के ऐसे भाव हैं तब उनको ईसाई बनाने के प्रयत्न से देखी जाती है और यु क्तसगत तो वह इसलिए है कि में पादरियों को उससे धन आदि से अधिक सहा- अपना धर्म छोड़कर ईसाई-धम ग्रहण करने की बात समझने यता मिलने लगेगी। इसके उत्तर में महात्मा गांधो से जहाँ तक सम्बन्ध है, उस गोमाता और हरिजन में कोई ने 'हरिजन' में एक मामिक लेख प्रकाशित कराया अन्तर नहीं होगा। यह बात छोड़ दीजिए कि मुर्ख-से मर्ख है। उसे हम यहाँ उद्धृत करते हैं।
हरिजन धीरे-धीरे इस योग्य बनाया जा सकता है कि हिन्दुस्तान में करोड़ों लोग गाय को श्रद्धा और भक्ति वह इसको समझ सके, वहाँ गाय कभी इसी योग्य नहीं की दृष्टि से देखते हैं। ख द मैं भी उनमें से हूँ। सेगाँव में बन सकती। क्योंकि उस समय सवाल तो उनकी वर्तमान मैंने गोशाला ठीक अपनी बैठक के सामने रखी है। स्थिति के विषय में था, न कि भावी संभावनायों के विषय इसलिए उसमें बंधी हुई गायें सदा मेरी नज़र के सामने में। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए मैं इस उपाय को रहती हैं। कुछ रोज़ पहले मैं एक दिन भारी पैमाने पर ज़रा और वशद करके कहूँगा। मैं कहूँगा-- मेरा पाँच हारजना के धर्मान्तर के विषय में जब कुछ ईसाई मित्रों से वर्ष का नाती अथवा अड़सठ वष की वृद्धा पत्नी ईसाई धर्म बात कर रहा था, तब मैंने उनसे कहा था कि अगर सामने ग्रहण करने का प्रस्ताव समझने में उतने ही असमथ हैं खही हई इन गायों से आप ईसाई बनने के लिए कहें जितनी कि वह गाय. हालाँकि पत्नी और नाती ये दोनों तो ये क्या समझेगी? टीक इसी तरह अधिकांश हरिजन मुझे अत्यंत प्रिय हैं और मैं उनका ऐसा ध्यान रखता हूँ। भी अापकी धर्मान्तर-सम्बन्धी बातों को नहीं समझ सकते। यह सब रहने दीजिए। मैं अपने ही बारे में कहता हूँ न यह उपमा सुनकर मेरे ये मित्र तो अवाक रह गये। अाघात कि चीनी-वणमाला पढ़ने में मैं खुद अाज उतना ही अस
मर्थ हूँ जितनी कि वह पूजनीय ग माता ! हाँ, अगर कोई और अब अमरीका से मेर पास इस आशय की चिट्टियाँ हम दोनों का-मेरी गाय का और मुझे वह मुश्किल - पाने लगी हैं कि किस तरह वहां के लोग मुझे और वर्णमाला पढ़ाने लगे और क्षण भर मान ले कि वह ग़रीब मेरे इस दावे का कि मैं हारजनों की सेवा करना चाहता पूज्य गोमाता इस होड़ में भाग लेना कभी स्वीकार भी हूँ, बदनाम करने में दुरुपयोग कर रहे है । मालूम होता कर ले तो मैं बात-की-बात में उससे आगे निकल जाऊँगा। हे. टीकाकारों का यह कहना है कि जब आप हारजनों की पर इससे मेरे उस अन्तिम कथन की सचाई में ज़रा भी तुलना गाय जैसे पशु से कर रहे हैं तब इससे पता चलता फ़क नहीं पड़ सकता। पर इस तुलना को छोड़ दें तो भी है कि आपके दिल में उनके प्रात कितनी इज्ज़त है। मेरे टीकाकार और भोले-भाले मित्र मेरो एक बात निविवाद
पर इस तुलना पर तो मुझे ज़रा भी अफ़सोस नहीं है। रूप से मय जान ल। वह यह कि भोले-भाले हरजनों इस पहले और छोटे से श्राघात से ही अगर अमरीका की के हृदय में उनके प्रव-पुरूषों के धम के प्रात जी श्रद्धा है
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