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संख्या ४]
मुक्तिमार्ग
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माधो गुल्ली-डंडा भूल चुका था। अब वह अक्सर हुया लौटा। रमई के अागे टोकरी पटककर बोलाछोटे बच्चे के साथ दिल बहलाता था। मा जो इतने दिनों "दादा, भुट्टा नहीं लाये ?" से उसके पीछे डंडा लिये पड़ी थी, अब उससे बड़ा प्रेम रमई ने समझा कि तोहफ़ा क़बूल न होता तो नई करती थी। अब माधो को पानी पीने को बिना माँगे गुड़ फरमाईश नाक-भौंह चढ़ाये बिना हगिज़ न होती । "कहा मिल जाता था। खेलने के लिए भी मा उससे अनुरोध बहुत अच्छा बच्चा' और वह उठ खड़ा हुआ। करती थी, लेकिन अब उसकी तबीअत ही उस तरफ़ ने दूसरा लड़का दौड़ता हुअा अाया और बाप की तरफ़ जाती थी। अब उसे घर की गाय चराने और मुन्नू को देखकर बोला- "बाबू, पक्का कटहल ।” खेलाने में अानन्द अाता था। वह नित्य गाय चराने रमई ने कहा-"अच्छा भैया भुट्टा और कटहल कल ।" जाता और शाम से दो घंटे पहले लौट अाता था। रात के चारे का प्रबन्ध कर दूध दुहता और काम काज से निपट रमई सिर पर टोकरा रक्खे जा रहा था। रास्ते में कर बच्चे को दो घंटे खुली हवा में खेलाता था। गुदरी मिल गया । राम राम के बाद गुदरी साहु ने पूछा
.. "कहाँ की तैयारी है महतो ?" नागपंचमी का त्योहार था । रमई एक टोकरी में दही रमई ने टोकरी दिखाते हुए कहा-"यही साहु कल का मटका, थोड़ा-सा घी और एक कटहल रक्खे गुदरी का तकाज़ा।" साहु के घर पहुँचा । गुदरी टाट पर बैठा हुअा हुक्का पी गुदरी मतलब निकालने का अच्छा मौका जानकर रहा था । सामने दो-चार गरजवाले बैठे अपनी अपनी अज़- वहीं बैठ गया और बोला-"महतो, एक गऊ चाहिए। गज़ मुना रहे थे। गुदरी रमई को आते देखकर पेशबन्दी निगाह में हो तो बताना।" के तौर पर बोला--"अरे भाई रमई ! देखते हो। हमारा रमई के चहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई । टोकरी बड़ा अकाज हो रहा है। रोज़ दस आदमी दरवाजे से अाकर ज़मीन पर रखते हुए बोला-गऊ तो साहु घर में ही है। लौट जाते है । अब तो दूसरा साल है ।” घुरहू पासी कल- पसन्द आने की मत है।" कत्ता जाने के लिए तैयार था । किराये के लिए साहु के “यही तो मैं भी सोच रहा था, मगर मारे लिहाज़ के पास आया था। वह बोला-- "हाँ, महतो, सबकी हज गर्ज कुछ कह नहीं रहा था।" समझा करो । साहु के घर में पेड़ थोड़े ही लगा है।"
"लिहाज़ कौन-सा ? चल कर देख लो न।" रमई ने उदास भाव से कहा- "हाँ, घुरहू भैया, बात “सब देखा ताका है । घर के सौदे में देखना कैसा ?" तो सच है, मगर मजबूरी है ।' गुदरी साहु को रुपये की "दाम काम बगैर देखे कैसे हो सकता है ?" बिलकुल ज़रूरत न थी। वह या तो रमई को तकाज़ा "दाम-दाम देखा जायगा। अभी तो हमारी ही करके भयभीत करना चाहता था या उसने घुरह को रुपया रकम पड़ी है।" न देने का इससे अच्छा बहाना न पाया हो कि रमई के “हाँ हाँ, यही तो हमारा मतलब है । अपनी जमा से रुपया देने पर ही उसे कुछ मिल सकता है। महाजन काट कर हिसाब कर देना ।" को कर्ज वसूल करने को उतनी चिन्ता नहीं रहती, जितनी दरवाजे पर चले चलो। क्या कोई जल्दी है ? सूद बढ़ाने की । वह सब करनेवाले कसाई की भाँति दुबे गुदरी को यह गुमान भी न था कि रमई इतना चतुर को मोटा करके ज़बह करता है।
होगा। समझा था कि अच्छी-सी गाय सूद में ही हड़प गुदरी ने मटका देखते हुए पूछा-"कई दिन का है ?" लूंगा। मैंझला कर बोला--"हाँ, हाँ, हिसाब कर लो। रमई ने गर्व से सिर ऊँचा करके कहा-"ताज़ा है कौन बड़ा हिसाब ? क्या हम मुफ्त माँगते हैं ? जो चाहिए, साहु । श्राज-कल छोकरवा सेवा करत है।"
पहले कोई वही दे दे तब दान की बात करे । सवा सौ का साहु का लड़का पास ही बैठा था। बाप का इशारा प्रोनोट है। श्रासाढ़, असाढ़ दो साल से ऊपर हो गया। पाते ही टोकरी उठा ले गया और बहुत जल्दी हाँफता एक सौ साठ से ज़्यादा होता है।"
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