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किन्तु ये नवीन किरणें जिनका नाम हमने श्राविष्कारक के नाम पर राबर्टस रेज़ कला है, हड्डियों में से भी गुजर सकती हैं। मनुष्य किस प्रकार ग़ायब होता है, इसे . समझने के लिए आपको देखने का सिद्धान्त समझना होगा । जब किसी वस्तु पर प्रकाश पड़ता है तब वह उस वस्तु से लौटकर नेत्रों में प्रविष्ट होता है और तब हमें उस वस्तु का बोध होता है । यदि जितना प्रकाश वस्तु पर पड़े उस सम्पूर्ण का शोषण वह वस्तु कर ले तो वह काली दिखाई देती है । प्रकाश में विभिन्न रङ्ग होते हैं, सित ज्योति में सात । जब कोई वस्तु अन्य सब रङ्गों का शोषण कर लेती है और केवल एक ही रंग लौटाती है तब वह उसी रङ्ग की दिखाई देती है । इस प्रकार यदि जितना प्रकाश किसी वस्तु पर पड़े वह सब उसमें से गुज़र जाय, न वह लौटे और न उसका शोषण ही हो, तो हमें वह वस्तु दिखाई नहीं देगी। यदि बहुत पतले काँच की एक साफ़ दीवार हो तो वह हमें दूर से दिखाई नहीं देती । समीप से उसका बोध इसलिए होता है कि जितना प्रकाश उस पर पड़ता है वह सब उसमें से गुज़र नहीं जाता, उसका कुछ अंश उसकी ऊपरी सतह से लौट आता है ।"
सरस्वती
इसके पश्चात् जेम्स स्विम को एक बहुत बड़े यन्त्र के समीप ले गया । उसने एक प्रकार की सफ़ेद चादर के समान किसी वस्तु से अपने शरीर को ढँक लिया । वह यन्त्र के सामने खड़ा हो गया। राबर्ट ने एक बटन दबाया, जिससे डाइनमो के, जिसका केवल एक पहिया घूम रहा था
राम राम रटना रसिक, विश्ववन्द्य मति धीर । काव्य कल्पतरु के रुचिर, धन्य आदि कवि-कीर ॥१॥ वीर-वीरता गान में, जिसे न रुचा समास । "भारत" महापयोधि का, पोत धन्य है व्यास ||२||
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कवि-बन्दना
लेखक, श्रीयुत राजाराम पाण्डेय, बी० ए०, आयुर्वेद- केसरी
[ भाग ३८
और तीन स्थिर थे, तीनों स्थिर पहिये भी घूमने लगे । उसने दो बटन और दबाये, और यन्त्र में से एक प्रकार का उज्ज्वल प्रकाश निकलकर जेम्स के शरीर पर पड़ने लगा । पहले उसका शरीर चमकता-सा प्रतीत हुआ और फिर वह शीशे के समान पारदशक हो गया। थोड़ी देर के बाद राबर्ट ने एक बटन और दबाया और जेम्स दृष्टि से
ल हो गया । स्विम कठपुतले के समान खड़ा हुआ सब कुछ आश्चर्य के साथ देख रहा था। कुछ काल के पश्चात् रावर्ट ने यन्त्रों को रोक दिया और जेम्स फिर धीरे धीरे दृष्टिगोचर होने लगा, खानो वायु में से कोई वस्तु उत्पन्न
हो रही हो ।
" देखिए मिस्टर स्विम व तो आपको पत्र में लिखी हुई हमारी सब बातों पर विश्वास हो गया होगा ?" जेम्स ने मुस्कराते हुए कहा ।
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“हाँ, निस्सन्देह इतनी आशा मुझे श्राप लोगों से नहीं थी । रुपये क्या 'चेक' मैं यहीं लिख देता हूँ, चेक बुक मेरे पास है ।" स्विम ने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया । स्विम ने चेक लिख दिया । "हमारे प्रत्येक कार्य की सूचना आपको मिलती रहेगी ।" राबर्ट ने बिदा करते हुए स्विम से कहा । स्विम और जेम्स चल दिये और कुछ ही काल के पश्चात् कार दोनों को लिये हुए उस सघन वन में से होकर गुज़रनेवाली सड़क पर घरररर करता दौड़ा
चला जा रहा था ।
भाषा भूषण भाव-भव, काव्य रसिक सरताज । कालिदास कवि क्यों न हो, विश्ववन्द्य तू ग्राज || ३ || भाव भव्य रचना रुचिर, नव कल्पना विशाल । कवि भारवि भारवि सदृश, बेधे हृदय रसाल ||४||
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