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संख्या ४]
शनि की दशा
अाकर भी वासन्ती सुखी न हो सकी। अपनी अक्षम्य भी देता। परन्तु ऐसी बात तो नहीं है। साला शराब निर्बुद्धिता को सहन बार धिक्कार देकर एक दिन वे हृदय- पीकर गली-गली मौज उड़ाता पि.रता है, और जब लगान विदारक व्यथा से अस्थिर हो उठे। उन्होंने सोचा कि देना होता है तब उसके पास पैसे ही नहीं रह जाते। .. वासन्ती क्या मेरे दृष्टि पथ पर आगई। यदि ऐसा न हुआ "वह तो श्राज कई साल से ऐसा ही कर रहा है।" होता तो उसका भाग्य किसी और ही मार्ग से प्रवाहित यह कह कर दीवान जी चले गये। होता । शायद वह सुखी हो सकती।
___ वसु महोदय एक एक करके चिट्ठियाँ पढ़ने लगे। उस दिन प्रातःकाल वसु महोदय बैठे हुए हुक्का पी अन्त में एक चिट्ठी खोल कर पढ़ते पढ़ते उनका मुँह लाल
। उनके पास ही बैठकर दीवान सदाशिव हो गया। वह पत्र हाथ में लेकर वे कुछ क्षण के लिए बातचीत कर रहे थे। थोड़ी-सी ज़मीन के बारे में चौधरी अन्यमनस्क हो गये । वह चिट्ठी इलाहाबाद से सन्तोष की परिवार से वसु महोदय का झगड़ा चल रहा था। उस बुया ने लिखी थी। सम्बन्ध में क्या करना चाहिए और किस तरह से अपना "श्रीचरणकमलेषु. पक्ष प्रबल बनाया जा सकता है, इसी बात का परामर्श भैया, मैं विशेष कारण से आपको पत्र लिख रही हूँ। हो रहा था। वसु महोदय ने कहा- देखो सदाशिव, मैने आशा करती हूँ कि मैं जो कुछ लिखूगी उससे श्राप दुःखी ही यह ज़मींदारी बनाई है। इधर लड़के की ऐसी न होंगे। वहाँ से आने पर कलकत्तं के एक प्रात्मीय का बुद्धि है कि इसकी रक्षा कर सकेगा, यह मुझे नहीं समझ मुझे एक पत्र मिला है। उस पत्र में सन्तोष के सम्बन्ध में पड़ता । इस सम्बन्ध में तुम्हारा क्या विचार है ? जो कुछ लिखा है उसके कारण मैं बहुत चिन्तत हो
दीवान ने कहा- मैं तो उसे छुटपन से देख रहा हूँ। उठी हूँ । मैं वहाँ जब तक रही हूँ तब तक यह बराबर इस समय उसके ऊपर आपको क्रोध आगया है, इसी लिए देखती रही कि उसकी चाल-ढाल अच्छी नहीं है। ऐसा कह रहे हैं । परन्तु हमारा सन्तू ऐसा लड़का नहीं है, सोहागरात के दिन मैंने उससे बहुत अनुनय-विनय की । बाद यह बाद को आपको मालूम होगा।
___ को मुझे बड़ा क्रोध आया और मैंने उसे बड़े ज़ोर से डाँटा। __ एक लम्बी साँस लेकर वसु महोदय ने कहा--यह कैसे तब वह किसी प्रकार भीतर सोने के लिए तैयार हुअा था। कहा जा सकता है सदाशिव ? उसका व्यवहार देखकर तो उसी रात को उसने मुझसे यह भी प्रतिज्ञा करवाई थी किसी प्रकार का भरोसा ही नहीं होता।।
कि भविष्य में मैं उससे इस विषय में अाग्रह न करूँ! सदाशिव ने कहा-अपने इस प्रकार के प्राचरण के "मुझे जहाँ तक विश्वास है, सन्तोष कलकत्ते से कारण वह क्या सुखी हुअा है ? इस बात को चाहे वह यदि हटाया गया तो बहू का भविष्य बहुत ख़राब हो अाज न समझे, किन्तु बाद को समझेगा। सम्भव है कि जायगा । परन्तु सन्तोष के ऊपर शासन करने का परिणाम उस समय वह पश्चात्ताप के मारे अापके पास क्षमा माँगने अच्छा न होगा। आप ज्ञानी हैं। आपको उपदेश देना मेरी के लिए दौड़ा पावे।
धृष्टता होगी। श्राप उसे बुलाकर ज़रा अच्छे ढंग से समझा "तब तक शायद मैं जीता ही न रहूँ !"
दीजिए कि ब्राह्म या विलायत से लौटे हुए अादमी की कन्या “यह तो दूसरी बात है।"
के साथ विवाह करना हमारे हिन्दू-धर्म के विरुद्ध है। मेरे इतने में दरबान अाया और बाबू के सामने चिट्ठी-पत्री अात्मीय ने लिखा है कि सन्तोष ने आज-कल कालेज रख कर चला गया। दीवान सदाशिव ने कहा-त. मैं एक जाना भी छोड़ रखा है। वह ता घर से निकलता भी नहीं। . बार उस ओर घूम ग्राऊँ। दीनू भोडल ने इधर चार-पाँच अापको इस समय वही काम करना चाहिए जिससे साल से लगान नहीं दिया। श्राज के लिए उसने वादा उसका हर प्रकार से मंगल हो। सन्तोष को किस प्रकार से किया है । काशीनाथ को उसके पास भेज पाऊँ । उन लोगों के सम्पक से पृथक रक्खा जा सकता है, इस ___ वन महोदय ने कहा-उस साले के ऊपर नालिश विषय में विशेष सावधानी से काम लेने की आवश्यकता क्यों नहीं कर देते । यदि वह असमर्थ होता तो मैं छोड़ है। वह अब भी बालक है, अपने भविष्य के सम्बन्ध में
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