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संख्या ४]
भारत के प्राचीन राजवंशों का काल-निरूपण
प्रदेश पर उत्पन्न होने के कारण मैंने इसको 'सरस्वती- वाली मिस्री-चित्र-लिपि की माता थी। डाक्टर लेंग्डन ने सभ्यता का नाम दिया है। यह सभ्यता भारत से मेसो- सिद्ध किया है कि वर्तमान भारतीय लिपियों को माता पोटामिया तथा मध्य-एशिया तक फैल गई थी। इस बात ब्राह्मी लिपि सिन्धु-लिपि से ही उत्पन्न हुई थी। परन्तु को मैं पुरातत्त्व के प्रमाणों-द्वारा जनवरी १९३७ की सिन्धु-लिपि और ब्राह्मी-लिपि के बीच की कोई मध्यस्थ . 'सरस्वती' में 'सरस्वती-तट की सभ्यता' शीर्षक लेख में लिपि प्राप्त नहीं हुई है। श्री जायसवाल तथा कुछ और सिद्ध कर चुका हूँ।
विद्वानों के मतानुसार 'विक्रमखोल'-लिपि मध्यस्थ लिपि सिन्ध-लिपि
थी। परन्तु मेरी मान्यता के अनुसार 'उलाप-गढ़जब 'सिन्धु-सभ्यता' आर्य-सभ्यता ही थी तब अवश्य लिपि' ही सिन्धु और ब्राह्मी के बीच की ठीक लिपि हो वहाँ भारत के प्राचीन सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं के सकती है। सिन्धु-लिपि को पढ़ने के मार्ग तथा कंजियाँ समय की वस्तुएँ तथा लेख आदि उपलब्ध होने चाहिए। और मुद्राओं में क्या लिखा है, इस विषय पर किसी सचित्र परन्तु यह ध्यान में रखना चाहिए कि सिन्धु-सभ्यता के विषय लेख-द्वारा प्रकाश डाला जायगा। में जो कुछ सिद्धान्त और वहाँ प्राप्त वस्तुओं का वर्गीकरण संसार के इतिहास के प्राचीन काल-क्रम की किया गया है वह उसको 'द्राविड़-सभ्यता' मानकर किया सिन्धु सभ्यता अधिकतर मेसोपोटामिया की सुमेरगया है। दूसरे सिन्धु-सभ्यता के जितने भी स्थानों का पता सभ्यता से बहत-कुछ मिलती जुलती है। इसी आधार पर लगा है उन सबकी खुदाई नहीं हुई है। केवल दो स्थान पाश्चात्य विद्वानों ने इसका काल ई० पू० ३२५० से २७५० मुहेंजोडेरा तथा हडप्पा ही खोदे गये हैं, और उनकी भी तक का माना है। इस प्रकार सिन्धु-सभ्यता के काल का खुदाई अभी अधूरी है। ,
सुमेर-सभ्यता से गठबन्धन किया गया है। परन्तु इस विषय ___मुहेंजोडेरो तथा हड़प्पा में कुछ मुद्रायें प्राप्त हुई हैं, में सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि सुमेर-सभ्यता का ही जिन पर किसी अज्ञात चित्र लिपि में कुछ लिखा हुआ है। कोई निश्चित काल-क्रम नहीं है। जितने मुँह उतनी ही, बहुत सम्भव है कि इनमें से कुछ अधिक आर्य-राजारों बातें हैं । काई राजा सर्गन का समय ई० पू० ३७५०, की मुद्रायें हो। परन्तु खेद है कि यह अज्ञात लिपि अब काई ३३५० और काई २७५० बताता है। केवल एक तक नहीं पढ़ी जा सकी। जिन दो-एक विद्वानों-- कर्नल राजा के समय के विषय में १००० वर्षों का मतभेद है। बेडेल तथा फादर हेरास आदि ने इसके विषय में जो मिस्र के राज-वंशों को दशा इससे भी खराब है। कुछ परिणाम निकाला है वह ऊल-जलूल-सा है। जितने मिस्र का सर्व-प्रथम राजा मेनेज़ था। फोन सर्गन्स ने . मह उतनी ही बाते हैं । इन मुद्रात्रों का अध्ययन करते समय ई० पू० ६४६७, अन्जेर ने ५६१३, बाश ने ४४५५. मैं इस निर्णय पर आया हूँ कि इनमें से ताँबे की कुछ बन्सेन ने ३६२३ और पामर ने उसका समय ई० पू० मुद्रात्रों पर राजाओं के नाम अवश्य है। इन पर कुछ २२२४ माना है। इस प्रकार मेनेज़ के समय के विषय ' ऐसे चिह्न अंकित हैं जो हिटाइट-मुद्रात्रों पर राजा के ... नाम के साथ मिलते हैं। मेरे मतानुसार 'सिन्धु-लिपि' * प्रोटो-इलामाइट-सभ्यता के पश्चात् , प्रलय की प्रोटो-इलामाइट-लिपि से उत्पन्न हुई थी। ध्यान रहे कि दुर्घटना के बाद, सुमेर-सभ्यता मेसोपोटामिया में पहुँची प्रोटा-इलामाइट-सभ्यता की जन्ममि भारत ही थी और थी। वास्तव में सुमेर-लोग सु-राष्ट्र (काठियावाड़) के निवासी इसकी वस्तुएँ 'श्रामरी-सभ्यता' की वस्तुओं से मिलती- भारतीय थे, जिनकी सभ्यता सिन्धु-सभ्यता के साथ जुलती है। यहो संसार की सबसे प्राचीन सभ्यता थी। सम्बन्धत थी। ये लोग समुद्र-मार्ग-द्वारा मेसोपोटामिया में सिन्धु-लिपि से हिटाइट तथा जमदेतनस्त की श्रादिम-सुमे- उपनिवेश-स्थापन के लिए गये और वहाँ सुमेर कहलाये। रियन-चित्र-लपियाँ उत्पन्न हुई। बाद में सुमेरियन और इस विषय पर 'विशाल भारत' के दिसम्बर १९३६ के अक. सिन्धु दोनों लिपियों में से मिस्र को वह आदिम लिपि में 'सुमेर-सभ्यता की जन्मभमि भारत' शीषक लेख में. उत्पन्न हई जो ससार की लिपियों की जननी मानी जाने- विस्तृत विवेचन कर चुका
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