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संख्या ४]
भारत के प्राचीन राजवशों का कार्य-निरूपण
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६५- लव, कुश २०९३ २०७२ इस प्रकार सुमेर-वंशावलियों द्वारा भारत के प्राचीन ६६- अतिथि
२०७२-२०५१ राजाओं के समय तथा राज्य-काल का उद्धार हो जाता है। अब पाठक-गण सूर्य-वंशी आर्य-राजाओं की इस क्या भारत तथा उसकी संस्कृति को कश्मीर से कुमारी तक सूची के क्रम-नंबर, राजा का नाम तथा उसके राज्य-काल तथा अटक से कटक तक की सीमा में देखनेवाले हमारे को पीछे दी हुई सुमेर-राजात्रों की सूची के क्रम-नंबर, विद्वान् ज़रा अपनी संकुचित सीमा से बाहर दृष्टिपात नाम तथा राज्य-काल से मिलाकर देखें। दोनों सूचियों करेंगे? खेद है कि गुलामी के बन्धन में सदियों से जकडे के बिलकुल मिलती हुई होने के कारण आपको आश्चर्य हुए हम लोग भारत में ही 'भारत' को माने बैठे हए हैं। होगा और भारत के तथा संसार के इतिहास की एक नई हम नहीं जानते कि भारत का प्राचीन इ.तहास ही संसार बात मालूम होगी। आपके मन में प्रश्न उत्पन्न होगा कि का प्राचीन इतिहास था या यों कहिए कि संसार का क्या सूर्य-वशी और सुमेर-राजा एक ही थे। इसका प्राचीन इतिहास ही भारत का प्राचीन इतिहास था। उत्तर है 'हाँ'।
हम कूप-मडक की भाँति अपने इतिहास को वेदों, पुराणों, इन दोनों वंशावालयों की तुलना करते समय क्रम- रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में खोजते हैं, परन्तु यह नम्बर में सूर्य-वंशी राजाओं का सुमेर-राजारों की अपेक्षा नहीं जानते कि मेसोपोटामिया, मिस्र, लघु एशिया और मध्यएक नम्बर अधिक होगा। इसका यह कारण है कि सुमेर एशिया के प्राचीन खण्डहरों में बिखरी हुई हमारी पुरातन का प्रथम राजा उक्कुसि (इक्ष्वाकु) भारत के प्रथम राजा संस्कृति हमको बुला रही है। सुदूर पैसिफिक महासागर में मन का पत्र था। इससे सिद्ध होता है कि संसार के स्थित ईस्टर तथा नेकर निहोत्रा के द्वीपों में हमारे महेंजोइतिहास के सबसे प्राचीन माने जानेवाले सुमेर-राजवंश डेरो की सिन्धु-लिपि तथा सभ्यता हमारा आवाहन कर की अपेक्षा भारत का राज-वंश एक पीढ़ी अधिक प्राचीन रही है। अमेरिका के एन्डीज़ पर्वतों पर सहस्रों वर्ष से है। इतना ही नहीं, भारत के सूर्य-वंशी राजा ही मेसा- स्थित हमारे दुग, राजप्रासाद श्रादि सूने पड़े हुए हैं। पोटामिया के सुमेर तथा मिस्र के फराड-राजा हुए। क्या अपनी इस प्राचीन सभ्यता की हम सुध नहीं लेंगे ? इक्ष्वाक सुमेर का प्रथम राजा था और सगर का पुत्र क्या अब भी हम रामायण और महाभारत के चक्कर से असमंज मिस्त का प्रथम राजा था। इसके निजी मिस्री मुक्त न होंगे और बाहर जगत् भर में फैले हुए अपने गत लेखों में इसका नाम 'मंज' लिखा हुआ मिला हे तथा गौरव पर दृष्टिपात नहीं करेंगे? भारत के प्राचीन इतिहास इसके नाम के पूर्व इसकी एक उपाधि भी लगा हुई है, के लेखकों के लिए घर के कोने में बैठकर कलम चलाने जिसका उच्चारण होता है 'अहा'। इस प्रकार महामंज का अब युग समाप्त हो रहा है। यदि भविष्य में हमें या असमंज मिस्र का प्रथम राजा था। सगर ने इससे अपनी प्रतिष्ठा कायम रखना हो तो फावड़े लेकर नाराज़ होकर इसको निकाल दिया था। यह फिर कहाँ. दुनिया भर में बिखरे हुए अपनी सभ्यता के खण्डहरों गया, इसका उल्लेख किसी भी पुराण में नहीं है। वास्तव पर हमें टूट पड़ना चाहिए। यह राष्ट्रीय जागृति का युग में यह मिस्र चला गया था और वहाँ अपना राज्य है। ज्यों-ज्यों दृढ़तम प्रमाणों के आधार पर हमारे पुरातन स्थापित करके तथा भारतीय सभ्यता का प्रचार करके वहाँ गौरव की श्रेष्ठता सिद्ध होगी, त्यों-त्यों वह श्रेष्ठता की के राज-वश का प्रवर्तक हुआ। इस प्रकार भारत संसार भावना हमारे हृदयों में नव जागृति की अधिकाधिक का सबसे प्राचीन देश सिद्ध होता है।
ज्योति जगावेगी और हमारे राष्ट्रीय अभिमान की उपर्युक्त तीनों देशों के राज-वंशी इतिहास के प्रारंभ वृद्धि होगी। होने का काल इस प्रकार है
सारे जहाँ पे जब था, वहशत का श्रावतारी। भारतवर्ष ई० पू० ३४५०
चश्मो चिरागे-अालम थी सरज़मी हमारी॥ सुमेर (मेसोपोटामिया) , , ३३८३
शमत्र अदब न थी जब, यूनां के अंजुमन में । मिन " " २७०२
ताबा था मेहरे वेनिस, इस वादिये कुहन में ॥
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