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संख्या ३]
सम्पादकीय नोट
३११
टन
रहे हैं। काफ़ी पर निर्यात कर-द्वारा जो रकम प्राप्त हुई है ३१ मार्च सन् १९३८ को संरक्षण की वर्तमान अवधि वह एक कमिटी के सुपुर्द कर दी गई है। यह कमिटी इस समाप्त हो जायगी। शक्कर के कारखानेवाले चाहते हैं कि रकम को काफ़ी के व्यापार को उन्नत करने के लिए संरक्षण की अवधि ८ वर्ष के लिए और बढ़ा दी जाय । ख़र्च करेगी।
___भारत में विदेशों से कुल मिलाकर कोई १५ करोड़ रिपोर्ट में लकड़ी के सम्बन्ध में भी एक अध्याय है, रुपये की शक्कर आया करती थी। पर अब करीब करीब जिससे मालूम होता है इस वर्ष भारत ने इंग्लेंड को वह आनी बन्द-सी हो गई है, क्योंकि वह भारतीय शक्कर के ३९,००० टन लकड़ी का निर्यात किया है जब कि १९१४ सामने नहीं टिक रही है। थोड़ी सहायता और मिली रहे तो में ३०, ५०० टन लकड़ी का निर्यात हुया था । लकड़ी भारतीय कारखाने स्वदेश के लिए ही शकर तैयार करके के निर्यात में जो वृद्धि हुई है उसका कारण सागौन की न रह जायेंगे, बरन विदेशों को भी काफी शक्कर भेजने उत्पत्ति की वृद्धि है।
लगेंगे। प्रतिवर्ष भारत में काई १,५०,००,००० टन
शक्कर ख़र्च होती है। और इतनी शक्कर हमारे स्वदेशी ग्राम-सुधार का महत्त्व
कारखाने तैयार कर सकते हैं। ग्राम-सुधार इस समय इसलिए महत्त्व को प्राप्त हो भारत में शक्कर की तैयारी के आँकड़े नीचे दिये गया है कि देश की सरकार ने स्वयं उस ओर ध्यान ही जाते हैंनहीं दिया है, किन्तु व्यावहारिक रूप से ग्राम सुधार का साल कार्य कर भी रही है। परन्तु ग्रामीणों पर ऊपर से सुधार १९३१-३२
४,७८,११९ की भावना लाद देना एक बात है और स्वयं उनमें सुधार १९३२-३३
६,४५,२८३ की भावना का पैदा होना दूसरी बात है। और जब तक १९३३-३४
७,१५,०५९ यह दूसरी बात उनमें नहीं होती, जब तक उनमें यह भाव १९३४-३५
७,५७,२१८ नहीं उठता कि वे अवनति की चरम सीमा पर जा पहुँचे १९३५-३६
१०,५०,००० हैं और अब समय आया है कि वे सँभल जायँ तब तक १९३६-३७ अनुमानतः ११,२५,००० ग्राम-सुधार के सारे प्रयत्न विफल होंगे। उनमें प्रात्म-सम्मान इस उद्योग में कितने मजदूरों को और बेकार नौ का भाव, अपनी कठिनाइयों को हल करने को स्वयं प्रवृत्त जवानों को प्रश्रय मिल रहा है, इसका सहज में ही अनुमान होने की भावना तथा उनके सम्बन्ध में स्वेच्छा से विचार नहीं हो सकता। करना नहीं पाता तब तक सुधार-सम्बन्धी प्रयत्न कैसे सफल शक्कर के कारखानों की बदौलत गन्ने की कृषि का हो सकेंगे? और इस स्थिति को लाने के लिए इस बात भी विस्तार हुआ है, और इस तरह इससे किसान लाभ की आवश्यकता है कि सबसे पहले ग्रामीणों की निरक्षरता उठा रहे हैं । अब वे पहले से अच्छे दामों पर अपना दूर की जाय । क्योंकि सारी बुराई की जड़ यही एक बात माल बेचते हैं। नीचे की संख्यायें बताती हैं कि गन्ने की है। अपढ़ और अशिक्षित अादमी सुधार-सम्बन्धी योज- खेती किस गति से विस्तार पा रही हैनात्रों का क्या, उनकी साधारण बातों तक का महत्त्व
एकड़ भूमि नहीं अाँक सकता है।
३१-३२
३०,७६,००० ३२-३३
३४,३५,००० शक्कर के कारखाने
३३-३४
३४,३३,००० श्री वेंकटेश्वर लिखता है
३४-३५
३६,०२,००० इन दिनों बहस यह छिड़ी हुई है कि शक्कर के ३५-३६
३६,८१,००० स्वदेशी कारखानों को संरक्षण मिलना चाहिए या नहीं। ३६-३७
४२,३२,००० ५ वर्ष से स्वदेशी शक्कर को सरकार संरक्षण दे रही है। २,००० विज्ञानविद् ग्रेजुएट, १०,००० दूसरे प्रकार के
सन्
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