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सरस्वती
[ भाग ३८
फरासीसी स्वभाव से मिष्टभाषी और सरल होते हैं। कोई भी लेक्चरर अपने लेक्चर-द्वारा उन्हें भडका सकता है। नेता-पूजा के वे बड़े भक्त होते हैं। महापुरुषों के जीवन-चरितों द्वारा वे बड़े जल्दी द्रवीभत हो जाते हैं । उनमें वही नेता सफल हो पाता है जो स्वयं अपने विचारों
और सिद्धान्तों का प्रतीक हो । अभी हाल में रूस के कम्यूनिस्टों ने फ्रांस में प्रवेश कर फरासीसी किसानों और मज़दूरों के बीच उथल-पुथल मचा दी थी; किन्तु वहाँ की सरकार ने उन कम्यूनिस्टों को निकाल बाहर किया और किसानों की परिस्थितियों पर ध्यान देकर उन्हें ठीक कर दिया। अब ध रे-धीरे फरासीसियों में भी असन्तोष के लक्षण दीख रहे हैं। उनके नेताओं में कुछ अविश्वासपात्र निकले, जिन्होंने राष्ट्रीय पैसे को निजी काम में खर्च किया और बाद में नेशनल ट्रिब्यूनल द्वारा दण्डित किये गये। यही कारण है कि मज़दूरवर्ग राजनैतिक नेताओं
लकड़ी के जूते बनानेवाला एक व्यवसायी जिसका
रोज़गार कभी धीमा नहीं पड़ता। ऐसा शानदार नहीं होता। हाँ, फ्रांस की शहाती स्त्रियाँ कहीं अधिक बनाव चुनाव में रहती हैं। पेरिस में तो शृंगार को भी मात मिल जाती है। वहाँ का जीवन बड़ा ही कृत्रिम हा गया है । इत्र-फुलेल की तरफ़ उनका आकर्षण बढ़ाचढ़ा है।
फरासीसी पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा पोशाक की दृष्टि से बेपरवाह होते हैं । वे ज़्यादा सफाई की चिन्ता नहीं करते। शहराती पुरुष देहातियों से चैतन्य और चञ्चल होते हैं ।
हाँ, साइकिलों के बड़े शौकीन होते हैं। साइकिल या मोटर-साइकिल के लिए वे कोई भी चीज़ गिरवी रखना पसन्द करेंगे। ऐसा कहा जाता है कि फ्रांस की आबादी को देखते हुए जितनी साइकिलें और मा टर-साइकिल फ्रांस में हैं, उतनी दुनिया के और किसी देश में नहीं मिल सकती।
[सप्ताह का काम समाप्त करने के बाद इस युवती ने रविवार को अपनी अाकर्षक पोशाक धारण की है।