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फ्रांस का
देहाती जीवन
लेखक, श्रीयुत डाक्टर रविप्रतापसिंह श्रीने
CITA
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"फ्रांस का ग्राम-जीवन सरल, सुबोध और सन्तोपपूर्ण है । फरासीसी किसानों में पदार्थ के अणुओं जैसा संगठन है । फ्रांस की शक्ति उसके किसानों की शक्ति है।" -प्रोफ़ेसर एलबर्ट आइन्स्टीन
नामण्डी प्रान्त में ग्राम का एक दृश्य ।। न दिनों जब सभी देशों से 'ग्रामों की धुनता। वह तो संसार और उसके मौजूदा ज्ञान से अाज अोर चलो' की आवाज़ पा रही ही लाभ उठाने की धुन रखता है। वह युद्ध को राष्ट्रीय है, उस समय हमें यह भी देखना जीवन का एक आवश्यक अंग मानता है। उसके नजदीक है कि योरप के राष्ट्रों ने अपनी विना युद्ध के दुनिया की हस्ती ही नहीं। वह 'वसुधैव . ग्राम-समस्या किस तरह सुलझाई कुटुम्बकम्' का हामी नहीं है । वह तो अपने राष्ट्र के लिए
है। योरप में अाज बोलशेविड़म, जीना और उसी के लिए मरना चाहता है। भविष्य के प्रेसिज़्म, एनाराकड़म और हिटलरइम अादि 'इमों' का विषय में फ्रांस का मत है--जो अभी तक हुअा है, वही बाज़ार गरम है; किन्तु फ्रांस में---उसके ग्रामों में केवल आगे भी होगा। इस मत का पोपक फ्रांस का प्रत्येक 'फ्रांसिज्म' की ही आवाज़ गँज रही है। यदि हम कहें निवासी है। कि आज फ्रांस इस अशान्ति के युग में दूसरे योरपीय फरासीसी अक्खड़ होते हैं। वे अपने सिद्धान्तों के राष्ट्रों से शान्ततर है तो शायद अत्युक्ति न होगी। यही लिए बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए हमेशा तत्पर कारण है कि फ्रांस का देहाती जीवन फ़रासीसी हितों रहते हैं। उनमें कोई सिद्धान्तवादिता नहीं है। जो कुछ और उसके गुणों का प्रतीक है।
भी वे कहते हैं वही करते भी हैं। वे कर्ण-मधुर सिद्धान्तों _ फ्रांस के ग्रामीण जीवन की अोर इंग्लिश प्रजा और ऊँचे-ऊँचे विचारों के 'हिज़ मार्ट स वायस' नहीं खिन्नता से देखती है। उसका मत है कि फ्रांस का जीवन होते। समय के साथ ही फ्रांस के जीवन में भी परिवर्तन लघुता से आवतित है। उसमें सभी जगह संकुचित हुए; किन्तु उन परिवर्तनों ने फ़रासीसियों को उन्नति की वातावरण का आभास मिलता है। इसी लिए अँगरेज़ ओर ही अग्रसर किया है। फ्रांस के शहरों और देहातों फ्रांस को 'योरप का जापान' कहते हैं। फ्रांस के इतिहास में अधिक अन्तर नहीं। अन्तर अगर है तो केवल सजावट, के उज्ज्वल पृष्ठों ने योरप को अवश्य ही वह स्थान दे ऐशो-इशरत और बाहरी तड़क-भड़क में है: किन्नु सामाजिक दिया है जिसके बल पर आज वह कुछ दर्जे तक 'इतरा' नियम और राजनैतिक सिद्धान्त एक से ही हैं। शहरों में सकता है।
देहातों की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। प्रत्येक शहराती शहर यह बात अवश्य है कि फ्रांस भविष्य की उलझन में में रहते हुए भी अपने को देहातियों से अलग नहीं पड़ा रहकर बे-सिर-पैर के सपने देखने का प्रादी नहीं है। समझता। उसकी मनोवृत्ति पूँजीपति नहीं होती, वह वह दशन और फिलासफी के पीछे अपना सिर नहीं अपने को मज़दूर श्रेणी का ही समझता है । यही कारण
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