________________
- सरस्वती
।
[ भाग ३८
को, इसी लिए पुरबले के कर्मों के बस होकर, कान्ता का. ले तो घर कौन सँभाले, अन्धी बालिका की परवरिश कौन ब्याह टीकम के साथ कर देना पड़ा । और कान्ता-बारह करे, घर के काम-काज में बढिया मा का हाथ कौन बँटाये. बरस की कान्ता, टीकम की बहू बनकर उसके घर आई ! और दोनों बार, सुबह-शाम, उसे गरम-गरम खाना पकाकर जिस दिन के लिए टीकम अाज चार-चार बरस हुए आतुर कौन खिलाये ? इसमें शक नहीं कि कान्ता के उठ जाने से हो रहा था वह सुनहरा दिन आज आ गया। उस दिन टीकम को गहरा धक्का बैठा था, और जीवन का सारा ब्याह के समय वह जितना खुश और उमंगों से भरा था, मज़ा ही किरकिरा हो गया था, मगर उसका इलाज न था।
उतनी खुशी. वैसी उमंगें, और वह अातुरता, इस जीवन इसी लिए आख़िर पास के एक गांव में रहनेवाले एक - में फिर उसने न पाई।
___हेड मास्टर की चौदह बरस की लड़की से, ऐसी लड़की से बहू को घर अाई देखकर सास की खुशी का ठिकाना न जो पाते ही घर का सारा काम सँभाल ले, पन्द्रह दिन बाद, रहा । टीकम तो खुश था ही। दोनों बहू को सिंगारने और बिना किसी धूमधाम के, टीकम का ब्याह हो गया ! यह रिझाने में ऐसे मग्न हुए कि अपने आपको भूल गये | रात उसका तीसरा अनुभव था। जब टीकम ऊपर जाता तब बाज़ार से बहू के लिए नई उसकी ज़िन्दगी का अच्छे से अच्छा समय अगर कभी नई मिठाइयों के दोने के दोने लाता, उसे प्रेम से खिलाता बीता तो वह इस नई हीरा बह के राज्य में बीता। हीरा और वह जो चाहती, उसके लिए हाज़िर कर देता। बहू एक हेड मास्टर की लड़की थी। गुजराती की पाँच - दो-चार महीनों के बाद बहू दुसाध बनी। टीकम किताब तक पढ़ी थी। थोड़ा कसीदा काढ़ना और और उसकी मा के हर्ष का पार न रहा । उन्होंने सोचा, भरना भी जानती थी । घर के काम-काज और रोटी-पानी इस सुलच्छनी बहू के प्रताप से अब सचमुच ही हमारे वह सब अकेले कर लेती थी। देह उसकी सुडौल और . दिन फिर जायँगे । इसी अभिलाषा को हिये में छिपाये स्वस्थ थी; चिड़िया की तरह चहकती-फुदकती वह वे बहू को बड़े जतन से रखने लगे; मगर बहू दिन- बात की बात में घर का सारा काम सँभाल लेती थी। दिन कमजोर होती चली गई। उसके लिए क्या-क्या न 'सती-मण्डल' नामक पुस्तक के दोनों भाग वह पढ़ चुकी किया गया ? न-जाने कितने ताबीज़ बाँधे गये, न-जाने थी, और उसकी एक यह अभिलाषा थी कि वह भी एक कितनी मिन्नतें मानी गई, और न जाने कितनी माड़-फूंक सती बने । माता-पिता ने ब्याह से पहले उसे समझाया थाकरवाई गई। मा के लिए इससे बढ़कर और क्या बात बेटी ! सास का आदर करना, उन्हें खुश रखना; पति की । थी कि बेटे के घर बेटा आवे और पितरों को स्वर्ग में सेवा करना और प्रसन्न रहना; देवरों की मर्जी रखना और शान्ति मिले।
अच्छे रास्ते चलना! हीरा यही साध लेकर ससुराल आई लेकिन कान्ता ऐसी बहू थी जो न खिली, न फूली, न थी कि अपने व्यवहार से वह दोनों कुलों की कीर्ति को फली, और असमय में ही मुरझा कर चली गई एक अन्धी उज्ज्वल बनायेगी। लड़की को जन्म देकर और असह्य वेदना के चीत्कारों से हीरा के राज्य में टीकम का जीवन सचमुच ही बहुत घर को कँपाकर । उसके माता-पिता हाहाकार कर उठे- सुखी रहा । हीरा की संगति से उसकी कई आदतें कुछ-कुछ फूट-फूट कर रोने लगे। और टीकम और उसकी मा मुँह सुधर चलीं। उसकी दुबली देह की सार-सँभाल हीरा के लटकाये, तन-छीन, मन-मलीन, उसी अन्धी बालिका की हाथों बड़े मजे से होने लगी। पिता की मृत्यु के बाद विकट सार-सँभाल के बोझ से दबे, कान्ता बहू की याद में पढ़ना-लिखना छोड़कर वह व्यवसाय में पड़ गया था। फफक-फफक कर रोये।
बचपन की अपनी सभी आदतें भुलाकर इस समय वह टीकम अब इक्कीस वर्ष का था। और इक्कीस वर्ष का घर में बड़े-बूढ़े की तरह गम्भीर बनकर रहने लगा था। नौजबानः अपनी पत्नी का शोक कितने दिन पाल सकता है ? अब वह लोगों के हर्ष-शोक में, जात-बिरादरी में बराबर जब घर-गिरस्ती पीछे पड़ी हो और जवानी माथे चढ़ी हो शामिल होने लगा। जाति की उन्नति के लिए उसने तब कौन है, जो संन्यास ले? और अगर संन्यास ले भी एक-दो भाषण भी किये। उसका एक ही मनोरथ था,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com