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संख्या ३]
जाग्रत नारियाँ
पद्धति के विकास में कभी कभी भाग्य का हाथ भी देख किसी एक की भी उपेक्षा करने से अभिनेत्री का सारा पड़ता है। जिस समय स्त्रियों ने अपना काम करने का काम मिट्टी में मिल जाता है।" अधिकार पुरुषों से बलपूर्वक छीना, ठीक उसी समय अाधु- जब लड़कियाँ फेक्टरियों में मिल कर काम कर रही होती निक टाइप राइटिंग मशीन उपयोगिता और समर्थता की हैं तब उनकी बातचीत के विषय क्या क्या होते हैं, इसका दृष्टि से उच्चता को प्राप्त हुई । इन दो घटनाओं का एक पता लगाने के लिए हाल में इंग्लैंड में अनुसन्धान किया साथ होना पुरुष-जाति के लिए अथवा कम से कम उन गया था। उनमें से तीन-चौथाई की बात-चीत पुरुषों के पुरुषों के लिए जो श्रमजीवी समाज से काम लेते हैं, एक विषय में थी और बाक़ी में से अधिकांश की सिनेमा पर। इन अतीव सुखद घटना थी। यह नई मशीन पत्र लिखने लड़कियों पर वैसी कोई रोक या दबाव नहीं जैसा कि उनकी
और हिसाब-किताब रखने के भारी काम में उन्हें बड़ा दादियों पर था। ये "अार्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर चुकी हैं," काम देनेवाली थी और इधर भाग्य के फेर से उस जिसका अर्थ यह है कि इन्होंने बहुत सस्ते वेतन पर अति मशीन पर काम करने के लिए सस्ती मज़दरनों की भी कठोर श्रम करानेवाली दकान में प्रतिदिन आठ या उससे कुछ कमी न रही, जो इस काम को करने का अधिकार भी अधिक घंटे काम करने का अधिकार पा लिया पाने के लिए ही व्याकुल हो रही थीं।
मनोविज्ञान के सर्वोत्तम अाधनिक सिद्धान्तों के अनुसार. इसके परिणाम स्वरूप आज सहस्रों लड़कियाँ टाइप अपने व्यक्तित्व का विकास करने के लिए स्वतंत्र' हैं; राइटिंग का काम कर रही हैं । यह एक ऐसा काम है जिसे इसका अर्थ, व्यवहार में, यह होता है कि ये किसी प्रिय पहले सीखना पड़ता है और जो कम से कम उतना ही भारी फ़िल्म स्टार के चेहरे, आवाज़, शृङ्गार, भाव-भङ्गी और होता है, जितने दफ्तर में काम करनेवाले पुरुषों के दूसरे काम वेष-भूषा की नकल करने को स्वतंत्र हैं। होते हैं, और जिससे नाड़ियों पर बहुत अधिक ज़ोर पड़ता है। क्षमा याचना करते हुए कहना पड़ता है कि इस प्रकार परन्तु इसके लिए उनको जो पारिश्रमिक मिलता है वह की बातें भी 'स्त्रियों के उद्धार' का एक अंग हैं ! पुरुषों के वेतन से प्रायः श्राधे के करीब होता है। यह हाँ. निस्सन्देह स्त्रियाँ डाक्टर और वकील भी बनी भी 'स्त्रियों के उद्धार' की क्रिया का एक भाग समझा जाता हैं। स्त्रियों के संयुक्त प्रयत्न से संसार में कहीं कहीं एकहै। जब हम फैक्टरियों पर विचार करते हैं तब स्थिति आध स्त्री पार्लियामेंट और असम्बली में भी पहँचा इससे भी कहीं अधिक बुरी जान पड़ती है । सस्ती मज़दूर है। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि इन व्यवसायों में स्त्रियाँ अाधुनिक कल-कारखानों के स्वामियों के लिए ईश्वर स्त्रियों की सफलता कोई आश्चर्यजनक बात है। ऐसी स्त्रियों का वरदान सिद्ध हुई हैं । जिस काम के लिए पुरुष मजदूरों को पुरुषों के समान ही कड़ा श्रम करना पड़ता है । वे को उन्हें एक रुपया रोज़ देना
रोज़ देना पड़ता था, वही काम वे प्रायः उनके समान योग्य नहीं होती; और उनको बहुधा छः-सात पाने में स्त्रियों से क
उन बहुत-सी उचित और अच्छी चीज़ों को छोड़ना पड़ता ___"अाज-कल स्त्रियों ने अपने आर्थिक उद्धार के लिए है जो स्त्रियों की स्वाभाविक भवितव्यता का एक अंश अभिनेत्री बनकर सिनेमा में काम करना प्रारम्भ किया है। होती हैं । वहाँ उनको अच्छा वेतन मिल जाता है, जिसके प्रलोभन इस नमने की स्त्रियों की संख्या बहुत थोड़ी है। जिन से अनेक रूपवती युवतियाँ घर-बार छोड़कर एक्ट्रेस बन स्त्रियों ने 'आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है' उनका अधिगई हैं। परन्तु वहाँ जाकर क्या वे स्वाधीनता का लाभ कर कांश समय फेक्टरियों और दफ़रों में ही काम करते बीतता लेती हैं ? घर में तो केवल एक पति को ही प्रसन्न करना है। स्त्रियों के इस अाक्रमण को रमणियों के चापलूस पड़ता था। परन्तु सिनेमा में अनेक पुरुषों को प्रसन्न रखना उनकी एक बड़ी विजय मानते हैं । परन्तु इस विजय का पड़ता है। सिनेमा के स्वामी के अतिरिक्त उनको साऊंड मूल्य क्या है ? इसका मतलब केवल इतना है कि अतीव रिकार्डर, फोटोग्राफर, डायरेक्टर आदि को प्रसन्न रखना कठोर प्रकार के आर्थिक दबाव के नीचे स्त्रियाँ एक प्रकार पड़ता है। तब कहीं वे सिनेमा में रह पाती हैं। इनमें से की आर्थिक परतंत्रता में से हाँकी ज़ाकर एक ऐसी दूसरे
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