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संख्या ३]
मतभेद
२७७
तीन
मुअाफ़ करो, प्रिये । 'अाज अकेले ही चली जाओ। किसी · उन्हें दी तब वे आगबबूला हो गये। गैर ज़ात की लड़की दूसरे दिन तुम्हारे साथ ज़रूर चलूँगा।"
के साथ शादी कर लेने की अनुमति वे अपने एकमात्र "अच्छी बात है, न जानो।” नाराज़ होकर, तेज़ी पुत्र को कैसे देते ? नहीं, यह असम्भव था। उन्होंने उसे से उठकर, आशा कमरे से बाहर हो गई।
अाज्ञा दी कि वह अपना असंगत निश्चय तुरन्त त्याग दे। रमेश ने दीर्घ निःश्वास खींचा। आशा के स्वर ने, उसे यह धमकी भी मिली कि यदि वह अपने निश्चय पर भाव-भंगी ने साफ़ कह दिया था, सँभलो, तुम्हारी खैरियत अड़ा रहा तो उनके वसीयतनामे से उसका नाम काट नहीं। किन्तु रूठी बीबी को मना लेने, उसके मन की दिया जायगा। किन्तु रमेश धमकी में श्रा जानेवाला व्यक्ति करने या अानेवाले झगड़े पर विचार करने के लिए उसके न था । पास समय न था। कलम उठाकर वह अपने अधूरे लेख कुछ समय के बाद उन दोनों का विवाह सिविल पर ध्यान जमाने लगा।
मैरिजेज़ ऐक्ट के अनुसार श्राशा के पिता विनोदचन्द्र' सीधे पोर्टिको में पहुँचकर अाशा मोटर-कार में बैठ तथा कतिपय मित्रों की उपस्थिति में सम्पन्न हो गया। गई। शोफर ने दरवाज़ा बन्द कर दिया।
महाशय विनोदचन्द्र ने उदारता-पूर्वक सहायता दी, दोनों "रीजेंट थियेटर चलो।"
का स्वतन्त्र भवन स्थापित हो गया। रमेश के पिता बटुक"बहुत अच्छा , सरकार ।" वह अपनी सीट पर बैठ नाथ को पुत्र को हर्कत बहुत बुरी लगी। आवेश में गया । कार चल पड़ा।
आकर उन्होंने उसका नाम अपने वसीयतनामे से निकाल रमेश से, उसकी आदतों से, उसकी झक से, उसके दिया। कुछ दिनों के बाद जब उनका क्रोध शान्त हो गया विचारों से वह तंग आ गई थी।
तब उन्होंने उसे क्षमा कर दिया, नया 'विल' लिखा और हए, एक मित्र के घर पर रमेश से उसकी उसे यथेष्ट आर्थिक सहायता देने लगे। पहले-पहल भेंट हुई थी और उसे ज्ञात हुअा था कि सुख के पथ पर उन दोनों का वैवाहिक जीवन बहुत उसके अतिरिक्त वह किसी अन्य पुरुष को प्यार नहीं कर दिनों तक सुव्यवस्थित गति से चलता रहा । । सकती। वह भी उसकी ओर आकृष्ट हुअा था। वह धनी संगति में दोनों को अदभुत आनन्द प्राप्त होता था-ऐसा था, स्वरूपवान् था, लब्धप्रतिष्ठ साहित्यिक था, सुविख्यात अानन्द जैसा उन्हें कभी नहीं प्राप्त हुआ था, वह अानन्द पत्रकार था। वह भी सुन्दरी थी, स्वतन्त्र प्रकृति की नव- जो शारीरिक सीमायें पारकर आध्यात्मिक रस में घुल-मिल युवती थी और उसी वर्ष ग्रेजुएट हुई थी। इस तरह जाना चाहता है। दोनों के बीच पूर्ण सामंजस्य थादोनों एक-दूसरे के सर्वथा उपयुक्त थे । जब रमेश ने अपना शरीर तथा अात्मा में सामंजस्य, विचारों तथा आदशों प्रेम प्रकट किया तब उसने भी अपना हृदय खोलकर में, इच्छाओं तथा अनिच्छात्रों में । रख दिया। दोनों ने विवाह कर लेने का निश्चय कर फिर, प्रतिक्रिया आई--वह भयङ्कर प्रतिक्रिया जो लिया ।
उनके पारस्परिक अस्तित्व को पूर्णतया रस-हीन कर देने ___ जहाँ तक अाशा का सम्बन्ध था, कोई कठिनाई न पर तुली हुई थी। विभेद उठ खड़े हुए। आये दिन थी। उसी की भाँति उसके पिता भी स्वतन्त्र विचारवाले झगड़े होने लगे। नूतन दृष्टिकोण से वे एक-दूसरे को व्यक्ति थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि वह देखने लगे। दोनों की बुराइयाँ दोनों को अतिरञ्जित होकर बदमाश भिखमंगा को छोड़कर जिस किसी से चाहे दिखाई देने लगीं। उनमें निवास करनेवाले प्रेमी दब गये, शादी कर सकती है। किन्तु उसके प्रेमी की दशा और अालोचक उठ खड़े हुए और एक-दूसरे के सिर पर भिन्न थी। उसके पिता पुराने विचार के और कट्टर यथार्थ तथा कल्पित दोष मढ़ने लगे। ऐसा हो गया मानो हिन्दू थे। अपने कुटुम्ब-सम्बन्धी प्रत्येक विषय में अन्तिम दोनों में किंचित्-मात्र भी सामंजस्य न था, मानो कुटिल फैसला देना वे अपना धर्म और अधिकार समझते थे। दुर्भाग्य ने दोनों को ज़बर्दस्ती एक-दूसरे के गले मढ़ रमेश ने जब अपने विवाह-सम्बन्धी निश्चय की सूचना दिया था।
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