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सामयिक साहित्य
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नग्वनऊ को प्रदर्शनी लखनऊ की गोगिक और कृषि प्रदर्शनी की पिछले महीनों अच्छी धम रही। इस प्रान्त में इतन बई विन्नार के साथ की गई यह दूसरी प्रदशनी है। पहली प्रदशनी प्रयाग में मन १९१८ में हुई था। लीडर' के सम्पादक श्रीयत सी. वाई. चिन्तामगि ने प्रयाग की प्रदशनी देखी थी और हम लबान की प्रदर्शनी का भी आपन निरीक्षण किया है। दोनों की तलना करते हुए आपने एक सुन्दर तन्द नीडर में लिखा था। यहाँ हम उसके आवश्यक अंश 'भारत' से उदधृत करते हैं।
हम लेग्य को मैं पहने यही कह कर शुरू करूंगा कि महम बरसनऋन में सरकारी प्रदशनी करने के पन्नाव का समर्थक नहीं था। मंग धागा है कि इस देश
या तथा बड़ी प्रदश नयों की ज्यादती हो गई है। अपने पूर्व अनाव में मैं यद् गी जानता था कि सरकारी पशनी में बहुत समय खर्च होंगे, क्योंकि सरकार जो भी काम करनी है उसमें कपये अधिक खर्च हान हैं। इसके अतिरिक्त यह एक सच्ची बात है कि इसके पहले जो नमाइश हर थी उनमें विदेशी कारखानों का कारवार भारतीय कारखानों की अपेक्षा ज्यादा अच्छा चला था ।
प्रदर्शनी के मुग्य-द्वार (म्मी दरवाजा) पर की गई इसका पहलाकारमा नो यह था कि अभी भारतीय कारखानों
बिजली की रोशनी का दृश्य । का कारया ही बहुत छोटा था और अब भी है और दूसरा बड़े दिन की छुट्टियों के पहले प्रदर्शनी गं जाने का का यह कि विदेशी कारखानों के लोग यह पना मझे अवसर न मिल सका। प्रदर्शनी में में केवल दो बार लगानन कि यहां की जनता किस तरह का माल पनन्द नामका हूं। प्राशनी के सेक्रेटरी मिस्टर शवदासनी नथा की और फिर उसी के अनमार वे चीन भी रखने उसके पब्लिसिटी ग्राफिमर मिस्टर जगगन विहारी माथुर ने
। मैंने अपना यह सम्मान कई बार लेजिस्लेटिव कौमिल ममें प्रदर्शनी का चक्कर लगवाया । इस सौजन्य के लिए में प्रकट की थी और सम्पूमा प्रदर्शनी अथवा उसके अलग मैं उनका याभार्ग है । बंई दिन की छुट्टियों में अवश्य अलग विभागों के लिए कोमिलने जा याथिक सहायता दशकों की संख्या इतनी भारी थी कि उससे कोई भी का मांग की गई थी उसे मंज़र करने के लिए मैंने अपना असन्तुष्ट नहीं हो सकता था। यह स्वाभाविक है कि छुट्टियों वोट नहीं दिया था।
के पहले तथा उसके बाद दर्शकों की संख्या कम होती।
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