________________
सम्पादकीय
योरप की भयानक स्थिति योरप में इस समय घोर राजनैतिक संकट उपस्थित है और वहाँ के राज्यों के बड़े बड़े क्षमताशाली उच्च राजकर्मचारियों की बुद्धि उसके वारण करने में कुंठित हो रही है । पहली बात तो यह है कि पिछले महायुद्ध के विजेताओं में से ब्रिटेन और फ्रांस युद्ध से ४ हाथ दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं और कदाचित् उनकी इसी नीति की बदौलत ग्राज योरप का जुगोस्लेविया जैसा छोटा राष्ट्र भी १५ लाख सुदृढ़ सेना रखने की घोषणा करने में गर्व का अनुभव कर रहा है। एक यह उदाहरण काफ़ी है । योरप के क्या छोटे और क्या बड़े सभी राष्ट्र अपनी क्षमता के बाहर अपना सामरिक बल या तो बढ़ा चुके हैं या कुछ ही दिनों के भीतर बढ़ा ले जायँगे । और यही अवस्था योरप में विषम राजनैतिक संकट उपस्थित किये हुए है, जिसका हल ढूँढ़े नहीं मिल रहा है। ग्राश्चर्य तो यह है कि इस दशा में भी, चारों ओर वैज्ञानिक ढंग के अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित राष्ट्रों से घिरे हुए होकर भी, इटली और जमनी प्रकट रूप से दिन-प्रति-दिन अपनी मनमानी करते जा रहे हैं। इटली तो बड़े से बड़े राष्ट्र की दाढ़ी नोच लेने का उधार-सा खाये रहता है। उसने बलपूर्वक अबीसीनिया पर क़ब्ज़ा कर लिया है। उसके भय से आस्ट्रिया, हंगेरी और अलबेनिया उसके आज्ञाकारी अनुयायी बन गये हैं और तुर्की एवं मिस्र आदि देश उससे हर समय सशंक रहते हैं । और इस समय तो वह स्पेन के भाग्य निर्णय का खेल खेल रहा है ।
इटली की देखादेखी जर्मनी भी जोर पकड़ गया है और गत ४ वर्षों में उसके भाग्य विधाता हर हिटलर ने उसे इस स्थिति का पहुँचा दिया है कि ग्राज ब्रिटेन के वैदेशिक मंत्री योरप में शान्ति स्थापित रखने के लिए उसकी खुशामद-सी कर रहे हैं । जर्मन ने इतना बल प्राप्त कर लिया है कि आज वह प्रसिद्ध वर्सेलीज़ के सन्धि-पत्र खुल्लमखुल्ला पैरों से रौंद ही नहीं रहा है, किन्तु इटली के कन्धे से कन्धा भिड़ाकर स्पेन के विद्रोही दल की प्रकट
नोट
रूप से सहायता कर रहा है । जर्मनी और इटली का यह निर्वाध सैनिक प्रदर्शन योरप की एक साधारण वस्था है |
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
तथापि यह सब ब्रिटेन और फ्रांस की आँखों के आगे हो रहा है, जो इस समय संसार के सबसे अधिक बलशाली एवं सबसे अधिक सभ्य राष्ट्र माने जा रहे हैं। इन राष्ट्रों के ऐसा होते हुए भी योरप में धींगाधींगी मची हुई है और अन्तर्राष्ट्रीय कानून-कायदों तक की कोई परवा नहीं कर रहा है । निस्सन्देह यही कहा जायगा कि इन दोनों राष्ट्रों में या तो पहले का-सा घनिष्ट सम्बन्ध नहीं रहा है या इन राष्ट्रों के सूत्रधारों में समयानुकूल क्षमता और प्रतिभा का प्रभाव हो गया है । सच है कि इस समय ब्रिटेन जर्मनी की ओर तो फ्रांस इटली और रूस की ओर अधिकाधिक झुक गया है, और यही वह अवस्था है जिसके कारण योरप की समस्या सुलझाये सुलझ नहीं रही है । और अब तो यह स्थिति पहुँच गई है कि बोल्शेविकों का हौग्रा खड़ा करके इटली और जर्मनी स्पेन में उसके विरुद्ध युद्ध-सा घोषित किये हुए हैं। यही नहीं, उनमें से जर्मनी ने एक क़दम आगे रखकर जापान से सहायता की सन्धि भी कर ली है । इस तरह उसने फ्रांस को रूस के साथ सन्धि करने का जवाब सा दिया है । परन्तु जर्मनी - जापान की सन्धि से ब्रिटेन और उसके साथ हालें भी चिन्तित हो उठे हैं । ऐसे ही राजनैतिक पेंच की बातों से आज योरप में जो राजनैतिक सङ्कट उपस्थित हुआ है, उसका प्रतीकार वहाँ के राजनैतिक नेता प्रयत्न करके भी नहीं कर पाते। और उनकी यह असमर्थता यही बात प्रकट करती है कि उसका प्रतीकार बिना युद्ध के नहीं होगा । परन्तु वैसे संसारव्यापी युद्ध की कल्पना करने का साहस योरप का कोई राष्ट्र नहीं कर सकता, क्योंकि वह युद्ध युद्ध नहीं, नरसंहार होगा । आज योरप की सामरिक योजना में विज्ञान की बदौलत तरह तरह की विषैली गैसों की अधिकता हो गई है और सभी प्रमुख राष्ट्रों के सामरिक भाण्डार
३०४
www.umaragyanbhandar.com